जलवायु

2019 का हर महीना बना रहा रिकॉर्ड, चार सबसे गर्म महीने

दुनिया भर में मानव जनित जलवायु परिर्वतन का असर दिख रहा है। 2019 में दुनिया के अलग-अलग भू-भाग पर पारे की चढ़त और गिरावट ने कई नए रिकॉर्ड कायम कर दिए हैं

Vivek Mishra

मौसम की अजीब गतिविधियां 2019 में कुछ ज्यादा ही हो रही हैं। दुनिया भर में इस वर्ष के हर महीने में गर्मी और ठंड के रिकॉर्ड बन रहे हैं। करीब चार सबसे गर्म महीने इसी वर्ष रिकॉर्ड हुए हैं। यहां तक कि 2019 को पांच सबसे गर्म वर्षों में भी गिना जा रहा है। कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज प्रोग्राम की रिपोर्ट और विश्व मौसम संगठन (डब्ल्यूएमओ) के ताजा आंकड़ों के आधार पर यह बात कही गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक जून सबसे गर्म रिकॉर्ड किया गया था, जुलाई भी पूर्व औद्योगिक काल से 1.2 डिग्री सेल्सियस ज्यादा है। 20 सदी के मध्य से मानव जनित जलवायु परिर्वतन ने तापमान की तीव्रता और वेग को बढ़ाकर चरम पर पहुंचा दिया है। जनवरी से चरम तापमान के रिकॉर्ड पूरी दुनिया में दर्ज किए गए।

जनवरी के दौरान ऑस्ट्रेलिया में पहली बार औसत तापमान ने 30 डिग्री सेल्सियस को पार किया। जनवरी का महीना पूरे महाद्वीप के लिए सबसे गर्म रिकॉर्ड किया गया। ठीक इसी तरह न्यूजीलैंड में रिकॉर्ड तापमान 18.8 डिग्री दर्ज किया गया। यह 1981-2010 के औसत तापमान की तुलना में 1.7 डिग्री सेल्सियस अधिक था। यह जनवरी का तीसरा उच्चतम तापमान था। हांग-कांग में भी जनवरी  तीसरा सबसे गर्म महीना दर्ज किया गया। यहां का औसत तापमान औसत से 1.8 डिग्री सेल्सियस अधिक 18.1 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया। अमेरिका में जनवरी सबसे ठंड महीना रिकॉर्ड किया गया जबकि अर्जेंटीना में सबसे ज्यादा  बारिश वाला महीना बना। वहीं, बीते 84 वर्षों में ब्राजील सबसे सूखा महीना भी साबित हुआ।

फरवरी की बात की जाए तो यूनाइटेड किंगडम में 110 वर्षों में दूसरा सर्वाधिक औसत तापमान  दर्ज किया गया जबकि नीदरलैंड में 118 वर्षों का रिकॉर्ड टूटा। स्पेन में बीचे 64 महीने में चौथा सबसे सूखा महीना साबित हुआ। इससे पहले स्पेन में 1997, 2000 और 1990 की फरवरी सूखा महीना साबित हुई थी।

डेनमार्क के लिए मार्च 2019 सबसे अधिक बारिश वाला महीना रहा। डेनमार्क के 1874 से शुरु हुए राष्ट्रीय रिकॉर्ड में यह दर्ज हुआ है। यहां सालाना 106 मिलीमीटर औसत वर्षा होती है। ऑस्ट्रिया में मार्च 2012 के बाद दूसरा सबसे सूखा महीना साबित हुआ। जर्मनी के 138 वर्षों के इतिहास में इस वर्ष मार्च आठवां सबसे गर्म महीना साबित हुआ है। वियतनाम और मलेशिया में भी मार्च महीने में तापमान ने अपनी बढ़त दिखाई है।

स्पेन में अप्रैल, 2019 चौथा सबसे ज्यादा बारिश वाला महीना रिकॉर्ड किया गया है जबकि जर्मनी ने 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक का रिकॉर्ड तापमान देखा गया। वहीं, अ्प्रैल महीने में ही 117 वर्षों में बहरीन में पांचवा सबसे ज्यादा वर्षा दर्ज की गई।

विश्व मौसम संगठन के महासचिव पेटरी टालस ने कहा कि “2019 पांचवा सबसे गर्म वर्ष रिकॉर्ड हो सकता है। वहीं, 2015 से 2019 की अवधि किसी भी पांच वर्ष की अवधि की तुलना पर ज्यादा गर्म वर्ष वाले बन सकते हैं। हमारी पृथ्वी पर बहुस्तरीय प्रभाव के साथ खतरनाक तरीके से तापमान तेजी से चढ़ रहा है।”

जून की बात की जाए यह अब तक का सर्वाधिक गर्म महीना रिकॉर्ड किया गया है। वहीं, जून महीने में दक्षिण-पूर्वी अमेरिका में लू ने शताब्दी पुराने रिकॉर्ड को ध्वस्त किया। फ्रांस, स्विटजरलैंड, जर्मनी, स्पेन और बेल्जियम में जबरदस्त तापमान बढ़ा तो जानलेवा लू ने यूरोप को घेरा। फ्रांस में कई जगह तापमान ने 45 डिग्री सेल्सियस को छुआ।

31 वर्षों में भारत में दूसरा सर्वाधिक लंबे दौर वाला अत्यधिक गर्म तापमान भी दर्ज किया गया। वहीं 7 मार्च से 21 जून तक 23 राज्यों में लू बहती रही जिसके कारण 300 से अधिक लोगों की मौत हुई। देश के कई भू-भाग में मसलन, दिल्ली में रिकॉर्ड तोड़ने वाला तापमान 48 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियों गुटेरेस ने इसी सप्ताह आंकड़े जारी करते हुए कहा कि इसी वर्ष हमने तापमान के कई रिकॉर्ड अलग-अलग स्थानों पर दर्ज किए हैं। नई दिल्ली से एनकोरेज तक पेरिस से सैंटियिगो और एडिलेड से आर्कटिक सर्कल तक उच्च तापमान का रिकॉर्ड दर्ज किया गया। जो भी हमने पीछा किया है इसका मतलब है कि 2015 से 2019 की पांच वर्ष वाली अवधि सबसे गर्म वर्ष दर्ज की जाएगी।

विश्व मौसम संगठन के आंकड़ों के मुताबिक शताब्दी पहले 2019 की जुलाई पूरी दुनिया में सबसे गर्म रिकॉर्ड की गई है। जुलाई ने जलवायु इतिहास को बदल दिया है। दर्जनों उच्च और नए तापमान के आंकड़े स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर दर्ज किए गए हैं।

विश्व मौसम संगठन (डब्ल्यूएमओ) के पेटरी टलास ने कहा कि अत्यधिक ताप के कारण नाटकीय तरीके से आर्कटिक और यूरोप के ग्लेशियर्स व ग्रीनलैंड की बर्फ पिघल रही है। आर्कटिक के जंगलों में अप्रत्याशित आग लगातार दूसरे महीने तक लगी रही, यह न सिर्फ कार्बन सोखने वाले जंगल खत्म कर रही है बल्कि ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन का भी कारण बन रही है।

एंटोनियों गुटेरेस ने कहा कि यदि हम अभी जलवायु परिवर्तन को लेकर कदम नहीं बढ़ाते हैं तो यह अतिशय मौसमों की गतिविधिया एक बड़ी समस्या का सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा भर है। और स्थिति यहां तक भयावह है कि आइसबर्ग खुद तेजी से पिघल रहा है। हमें जलवायु परिवर्तन को सामान्य करने के लिए कदम बढ़ाने होंगे यह हमारी नस्ल और हमारी जिंदगियों के लिए जरूरी है।