जलवायु

वैश्विक तापमान का 1.5 डिग्री सेल्सियस भी पृथ्वी की तबाही के लिए काफी: वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी

अध्ययन के मुताबिक, गरीब तबके वाले इलाकों में लगभग 20 करोड़ लोगों को असहनीय गर्मी का प्रकोप झेलना पड़ेगा, 50 करोड़ लोग समुद्र स्तरों के बढ़ते जल स्तर के विनाशकारी बर्बादी का सामना करेंगे

Dayanidhi

दुनिया बड़े पैमाने पर जलवायु परिवर्तन के संकट को टालने के लिए विशेषज्ञों द्वारा निर्धारित 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार करने के कगार पर खड़ी है। एक नए अध्ययन में कहा गया है कि, विकासशील देशों को इसके प्रभाव का बड़े पैमाने पर भुगतान करना पड़ेगा।

70 अनुसंधान और नीति केंद्रों की मदद से किए गए इस अध्ययन के मुताबिक, गरीब तबके वाले इलाकों में लगभग 20 करोड़ लोगों को असहनीय गर्मी का प्रकोप झेलना पड़ेगा। 50 करोड़ लोग समुद्र स्तरों के बढ़ते जल स्तर के विनाशकारी बर्बादी का सामना करेंगे, भले ही जलवायु लक्ष्यों को हासिल ही क्यों न कर लिया गया हो।

नई सीमा के लिए आग्रह

वैज्ञानिकों ने दुनिया भर में बढ़ते तापमान को रोकने के लिए एक नया वैश्विक मानक स्थापित करने के लिए आवाज उठाई है।

वैज्ञानिकों ने कहा कि यदि लोगों की बड़ी आबादी को भारी नुकसान से बचाना है, तो उचित सीमा एक डिग्री सेल्सियस या उससे नीचे निर्धारित की जानी चाहिए। हालांकि, इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए कि पृथ्वी का तापमान 150 साल पहले की तुलना में 1.2 डिग्री सेल्सियस पहले ही बढ़ चुका है।

अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि, मानव कल्याण सुनिश्चित करने के लिए पृथ्वी प्रणाली की सभी सीमाओं में सिर्फ एक वैश्विक परिवर्तन से कम कुछ भी जरूरी नहीं है।

इस तरह के बदलाव ऊर्जा, भोजन, शहरी और अन्य क्षेत्रों में व्यवस्थित तरीके से किए जाने  चाहिए। आर्थिक, तकनीकी, राजनीतिक और पृथ्वी प्रणाली के अन्य चीजों का समाधान करते हुए, संसाधनों के उपयोग में कमी और पुनर्वितरण के माध्यम से गरीबों के लिए पहुंच सुनिश्चित की जानी चाहिए।

2100 तक तापमान के 2.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ने तक बढ़ने के आसार हैं

ये भयावह निष्कर्ष हैं क्योंकि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन रिकॉर्ड स्तर पर बना हुआ है और वर्तमान नीतियां सदी के अंत तक तापमान को 2.7 डिग्री सेल्सियस की ओर देखने के लिए अग्रसर हैं।

इस नए अध्ययन के प्रमुख अध्ययनकर्ता जोहान रॉकस्ट्रॉम ने कहा, हम पूरे ग्रह की स्थिरता और लचीलेपन को खतरे में डाल रहे हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि कार्बन डाइऑक्साइड की वायुमंडलीय मात्रा में भी छठा हिस्सा कम होना चाहिए, दुनिया के सबसे अमीर एक प्रतिशत लोग सबसे गरीब 50 प्रतिशत से दोगुना उत्सर्जन करते हैं।

रॉकस्ट्रॉम ने कहा धरती की सीमाओं के आधार पर खीची गई लाल रेखाएं जिन्हें पार नहीं किया जाना चाहिए।

उन्होंने बताया कि, 2009 में उन्होंने और उनके सहयोगियों ने ऐसी नौ सीमाओं की पहचान की और कहा कि हम पहले ही तीनों के सुरक्षित क्षेत्र से बाहर निकल चुके हैं। हवा में ग्रह को गर्म करने वाली गैसें, प्रजातियों के विलुप्त होने में तेजी और पर्यावरण में नाइट्रोजन और फास्फोरस की अधिकता, जो  ज्यादातर उर्वरकों के उपयोग से हुआ है।

आज हमने तीन और का उल्लंघन किया है, जिसमें वनों की कटाई, ताजे पानी का अत्यधिक उपयोग और प्लास्टिक समेत सिंथेटिक रसायनों की व्यापकता।

बाहरी कण प्रदूषण, जो हर साल 40 लाख से अधिक लोगों को समय से पहले काल की गाल में पहुंचा देता है, जिसे इस साल हमारे अपराधों की सूची में जोड़ा जा सकता है और साथ ही समुद्र का अम्लीकरण जो बहुत पीछे नहीं है।

चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंस की अकादमिक समिति के निदेशक तथा सह अध्ययनकर्ता दाहे किन ने कहा, पृथ्वी प्रणाली खतरे में है, कई टिपिंग तत्व अपने टिपिंग पॉइंट को पार करने वाले हैं

उदाहरण के लिए, ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर, पर्माफ्रॉस्ट और अमेजन के जंगलों के बड़े हिस्से, ऐसे दौर में पहुंच गए हैं, जिन्हें पहले जैसा नहीं बनाया जा सकता हैं। जिसके आगे वे महासागरों के जल स्तर को एक मीटर से ऊपर उठाएंगे, अरबों टन सीओ 2 और मीथेन छोड़ेंगे और उष्णकटिबंधीय जंगलों को सवाना में बदल देंगे। 

केवल जीवन-रक्षक ओजोन परत की बहाली-नौवीं सीमा-स्पष्ट रूप से सही दिशा में आगे बढ़ रही है।

पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च के प्रमुख रॉकस्ट्रॉम और उनके सहयोगियों ने एक "न्यायसंगत" दुनिया की सीमाओं को मापने के लिए एक ही मानदंड लागू किया है।

जलवायु परिवर्तन के अलावा, उन्होंने परिवेशीय कण प्रदूषण की सहन करने की सीमा का पता लगाया, खासकर पूरे एशिया में, इनकी सीमाओं को भी कम किया जाना चाहिए।

एम्स्टर्डम विश्वविद्यालय में प्रोफेसर, सह-अध्ययनकर्ता जॉयिता गुप्ता ने कहा, ग्रहों की सीमाओं के भीतर रहने के लिए न्याय जरूरी है। हमारे पास न्याय के बिना ग्रह सुरक्षित नहीं हो सकता है।

दुनिया में 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा पार करने की आशंका

लगभग 200 देशों ने अपनी जलवायु योजनाओं का आधार ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लक्ष्य पर आधारित किया है। हालांकि, बढ़ते कार्बन उत्सर्जन और वैश्विक तापमान के साथ, आसार बढ़ रहे हैं कि यह लक्ष्य पार हो जाएगा।

जलवायु विशेषज्ञ, अक्सर इसे सार्वजनिक रूप से आवाज देने से हिचकते हैं, मानते हैं कि बढ़ते तापमान की वर्तमान दर के कारण 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार करना अटल है।

नेचर नामक पत्रिका में प्रकाशित यह अध्ययन, ग्लोबल कॉमन्स एलायंस की मदद से किया गया। ग्लोबल कॉमन्स एलायंस विश्व आर्थिक मंच, द नेचर कंजरवेंसी और फ्यूचर अर्थ सहित 70 से अधिक अनुसंधान और नीति केंद्रों का गठबंधन है।