जलवायु

बढ़ते तापमान के मामले में अव्वल है यूरोप, दो डिग्री सेल्सियस की सीमा को कर चुका है पार

Lalit Maurya

बढ़ता तापमान यूं तो पूरी दुनिया के लिए खतरा बन चुका है, लेकिन अन्य महाद्वीपों की तुलना में यूरोप कहीं ज्यादा तेजी से गर्म हो रहा है। यह जानकारी विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) और कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस द्वारा जारी नई रिपोर्ट "द स्टेट ऑफ क्लाइमेट इन यूरोप 2022" में सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिक यूरोप में बढ़ता तापमान पहले ही दो डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर चुका है।

1980 के दशक से देखें तो यूरोप में तापमान वैश्विक औसत की तुलना में दोगुना गर्म हो गया है। वहीं यदि सिर्फ 2022 के आंकड़ों को देखें तो यूरोप के तापमान में औद्योगिक काल (1850 से 1900) से पहले की तुलना में 2.3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गई है। जबकि यदि वैश्विक तापमान में होती वृद्धि की बात करें तो वो 2022 में औसत से 1.15 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज की गई है, जोकि पिछले कुछ वर्षों की तुलना में कम है।

देखा जाए तो ऐसा काफी हद तक 2022 की शुरूआत और अंत में बनी ला नीना की स्थिति की वजह से हुआ था। हालांकि यदि 2016 से जुड़े आंकड़ों पर गौर करें तो वैश्विक तापमान में होती वृद्धि 1.2 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच चुकी है। 

गौरतलब है कि 2015 में हुए पैरिस समझौते के तहत तापमान में होती वृद्धि को 1.5 से दो डिग्री सेल्सियस के बीच रोकने का लक्ष्य रखा गया था, जिससे जलवायु में आते बदलावों के दुष्प्रभावों को सीमित किया जा सके। लेकिन जिस तरह वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है उसे देखते हुए नहीं लगता की ऐसा हो पाएगा।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने आशंका जताई है कि पांच वर्षों में 2023 से 2027 के बीच वैश्विक तापमान में होती वृद्धि रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच जाएगी। हालांकि यूरोप इस सीमा को पहले ही पार कर चुका है।

यूरोप में लू से गई 16,000 लोगों की जानें

यूरोप को लेकर डब्ल्यूएमओ के महासचिव पेटेरी तालास ने अपने एक बयान में कहा था कि, "2022 के दौरान पश्चिमी और दक्षिण-पश्चिमी यूरोप के कई देशों में तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच सकता है। वहां गर्मियों का मौसम भी अब तक का सबसे गर्म था।"

देखा जाए तो आंकड़े भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि यूरोप में जून से अगस्त के बीच अब तक का सबसे गर्म गर्मियों का मौसम दर्ज किया गया था। 2022 के दौरान यूरोप में लू से 16,000 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। वहीं बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, आयरलैंड, इटली, लक्जमबर्ग, पुर्तगाल, स्पेन, स्विट्जरलैंड और यूनाइटेड किंगडम के लिए 2022 अब तक का सबसे गर्म वर्ष था।

मौसम की चरम घटनाओं से क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को करीब 200 करोड़ डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा था। रिपोर्ट के मुताबिक तूफान और बाढ़ से सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था। साथ ही इन घटनाओं ने सीधे तौर पर यूरोप में 156,000 लोगों को प्रभावित किया था।

ऐसा नहीं है कि यूरोप में तापमान सब जगह एक ही रफ्तार से बढ़ रहा है, कहीं इसकी रफ्तार तेज तो कहीं धीमी है। लेकिन ज्यादातर क्षेत्रों में इसमें वृद्धि दर्ज की गई है। 2022 में जहां बारिश की कमी से कई जगहों पर सूखा पड़ गया था वहीं कहीं इतनी बारिश हुई थी कि बाढ़ के हालात बन गए थे।

हालांकि यूरोप के ज्यादातर क्षेत्रों में 2022 के दौरान औसत से कम बारिश दर्ज की गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक यह इबेरियन प्रायद्वीप के लिए लगातार चौथा शुष्क वर्ष था, जबकि आल्प्स और पाइरेनीज के पर्वतीय क्षेत्रों में लगातार तीसरा शुष्क वर्ष था। इसके चलते यूरोप के नदियों में पानी का स्तर भी घट गया था।

ऐसा ही कुछ यूरोप की सबसे बड़ी नदी राइन के साथ भी देखने को मिला था। जहां बढ़ते तापमान और बारिश की कमी के चलते जलस्तर काफी गिर गया था। इसी तरह बारिश की कमी के चलते पो नदी भी सिकुड़ गई थी। पानी की इस कमी ने कृषि, ऊर्जा जैसे क्षेत्रों पर व्यापक असर डाला था।

तेजी से पिघल रही है बर्फ

ऐसा ही कुछ वहां जमा बर्फ के साथ भी देखने को मिला। देखा जाए तो पिछले दो दशकों के दौरान सितम्बर के दौरान ग्रीनलैंड में जमा इतनी बर्फ नहीं पिघली जितनी सितम्बर 2022 में दर्ज की गई थी। 1997 से 2022 के बीच देखें तो यूरोप के ग्लेशियरों में जमा करीब 880 क्यूबिक किलोमीटर बर्फ कम हो गई है। इससे आल्प्स सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। जहां बर्फ की मोटाई में औसतन 34 मीटर की कमी आई है।

इसकी वजह से समुद्र का जलस्तर भी तेजी से बढ़ रहा है। 1993 के बाद से देखें तो वैश्विक स्तर पर समुद्र का औसत जलस्तर 3.4 मिलीमीटर प्रति वर्ष की दर से बढ़ा रहा है। वहीं यूरोप के ज्यादातर हिस्सों में इसके बढ़ने की दर दो से चार मिलीमीटर प्रति वर्ष दर्ज की गई है।

रिपोर्ट के अनुसार तापमान में आता यह बदलाव न केवल स्वास्थ्य, कृषि और बिजली की मांग पर असर डाल रहा है, इसकी वजह से कई जीवों का विकास चक्र भी गड़बड़ा गया है। हालांकि इस रिपोर्ट में जो एक अच्छी बात सामने आई वो यह रही की यूरोप ने अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन किया है। आंकड़ों के मुताबिक पिछले वर्ष सौर और पवन ऊर्जा की मदद से यूरोप ने करीब 22.3 फीसदी बिजली पैदा की थी। जो प्राकृतिक गैस (20 फीसदी) और कोयले से पैदा की गई बिजली (16 फीसदी) से ज्यादा रही।

इस बारे में डब्ल्यूएमओ प्रमुख पेटेरी तालास का कहना है कि, यूरोप में जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने के लिए अक्षय ऊर्जा और कम उत्सर्जन करने वाले स्रोतों का बढ़ता उपयोग महत्वपूर्ण है।"

हाल ही में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्लूईएफ) द्वारा जारी 'ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट' ने भी माना था कि जलवायु परिवर्तन दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा है। रिपोर्ट की मानें तो केवल यूरोप ही नहीं दुनिया में करीब 360 करोड़ लोग ऐसे क्षेत्रों में रह रहे हैं जो जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से अत्यंत संवेदनशील हैं। ऐसे में न केवल उत्सर्जन में कमी महत्वपूर्ण है बल्कि साथ ही लोगों को मौसम की चरम घटनाओं से बचाने के लिए जलवायु की इन घटनाओं के प्रति कहीं ज्यादा अनुकूल होने की भी जरुरत है।