धरती को गर्म करने वाली नाइट्रस ऑक्साइड गैस के उत्सर्जन में 40 फीसदी का इजाफा हुआ है।  फोटो साभार: आईस्टॉक
जलवायु

पिछले 40 सालों में तापमान बढ़ाने वाली नाइट्रस ऑक्साइड गैस का उत्सर्जन 40 फीसदी बढ़ा:अध्ययन

भारत में प्रति व्यक्ति नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन सबसे कम 0.8 किलोग्राम है, अन्य शीर्ष प्रति व्यक्ति उत्सर्जकों में चीन 1.3, अमेरिका 1.7, ब्राजील 2.5 और रूस 3.3 किलोग्राम है।

Dayanidhi

ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट द्वारा किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि साल 1980 से 2020 के बीच धरती को गर्म करने वाली नाइट्रस ऑक्साइड गैस के उत्सर्जन में 40 फीसदी का इजाफा हुआ है। कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन से ज्यादा शक्तिशाली गैस के बड़े पांच उत्सर्जन करने वालों में चीन (16.7 फीसदी), भारत (10.9 फीसदी), अमेरिका (5.7 फीसदी), ब्राजील (5.3 फीसदी) और रूस (4.6 फीसदी) थे।

प्रति व्यक्ति उत्सर्जन की बात करें तो यह अलग-अलग होता है। जबकि भारत में प्रति व्यक्ति नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन सबसे कम 0.8 किलोग्राम है, अन्य शीर्ष  प्रति व्यक्ति उत्सर्जकों में चीन 1.3, अमेरिका 1.7, ब्राजील 2.5 और रूस 3.3 किलोग्राम है।

जर्नल अर्थ सिस्टम साइंस डेटा नामक पत्रिका में प्रकशित अध्ययन में कहा गया है कि वायुमंडल में नाइट्रस ऑक्साइड का उच्च स्तर ओजोन परत को नष्ट कर सकता है और जलवायु में बदलाव के प्रभावों को बढ़ा सकता है। पृथ्वी पर अतिरिक्त नाइट्रोजन मिट्टी, पानी और वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी करता है

अध्ययन में कृषि उत्पादन और पशुपालन नाइट्रस ऑक्साइड के दो प्रमुख मानवजनित स्रोत पाए गए। अध्ययन के अनुसार, पिछले दशक में कृषि उत्पादन, मुख्य रूप से नाइट्रोजन उर्वरकों और पशु खाद के उपयोग के कारण, कुल मानवजनित नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन में 74 फीसदी की बढ़ोतरी करता है।

अध्ययन के मुताबिक, 1980 में दुनिया भर के किसानों ने छह करोड़ मीट्रिक टन व्यावसायिक नाइट्रोजन उर्वरकों का इस्तेमाल किया था। 2020 तक, इस क्षेत्र ने 10.7 करोड़ मीट्रिक टन का इस्तेमाल किया। अध्ययन के अनुसार, उसी वर्ष, पशु खाद ने 10.1 करोड़ मीट्रिक टन का योगदान दिया, जो 2020 में कुल 20.8 करोड़ मीट्रिक टन पहुंच गया।

ग्लोबल एन2ओ बजट

अध्ययन में शामिल 18 क्षेत्रों में से केवल यूरोप, रूस, ऑस्ट्रेलिया, तथा जापान और कोरिया में नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आई है। 1980 से 2020 के बीच यूरोप में कमी की दर सबसे अधिक थी, जिसका कारण जीवाश्म ईंधन और उद्योग उत्सर्जन में कमी थी। दूसरी ओर, चीन और दक्षिण एशिया में 1980 से 2020 के बीच नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन में सबसे अधिक 92 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

शोधकर्ता ने अध्ययन के हवाले से कहा कि पेरिस समझौते के अनुसार, वैश्विक तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए मानवजनित गतिविधियों से नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आनी चाहिए। नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन को कम करना ही एकमात्र समाधान है क्योंकि इस समय ऐसी कोई तकनीक मौजूद नहीं है जो वायुमंडल से नाइट्रस ऑक्साइड को हटा सके।

नाइट्रस ऑक्साइड महासागरों, जल निकायों और मिट्टी जैसे प्राकृतिक स्रोतों से भी उत्सर्जित होता है। इन स्रोतों ने 2010 से 2019 के बीच गैस के वैश्विक उत्सर्जन में 11.8 प्रतिशत का योगदान दिया। अध्ययन में कहा गया है कि कृषि गतिविधियों और संबंधित अपशिष्ट उत्पादन, बायोमास जलाना, जीवाश्म ईंधन और उद्योगों ने मिलकर 2010 से 2019 में वैश्विक नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन में लगभग छह प्रतिशत की बढ़ोतरी की है।