अल नीनो मौसम, खाद्य सुरक्षा, आर्थिक उत्पादकता और सार्वजनिक सुरक्षा पर असर डालता है। लेकिन इस बात पर बहस चल रही है कि जलवायु मॉडल उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पहले और भविष्य की जलवायु स्थितियों को कितनी अच्छी तरह दोहरा सकते हैं और पूर्वानुमान लगा सकते हैं।
महासागरीय अम्लता एक ऐसा आंकड़ा है जो जलवायु परिवर्तन का पूर्वानुमान लगाने में मदद कर सकता है। एक शोध टीम ने प्रशांत महासागर की धाराओं में होने वाले बदलावों के संबंध में जलवायु मॉडल के द्वारा एक अहम खोज की है। खोज में कहा गया है कि अल नीनो घटनाओं को चलाने वाले ग्लोबल वार्मिंग की घटनाएं इसमें शामिल हैं।
येल और सेंट एंड्रयूज विश्वविद्यालय की अगुवाई में किए गए इस शोध में कहा गया है कि कठिन पर्यावरणीय बदलावों के बारे में पूर्वानुमान लगाने के लिए जलवायु मॉडल सक्षम हैं। जलवायु मॉडल एक आवश्यक बदलाव के रूप में समुद्र की अम्लता के बारे में भी पता लगाते हैं।
स्कॉटलैंड में सेंट एंड्रयूज विश्वविद्यालय के शोधकर्ता मैडिसन शैंकल ने कहा कि वैश्विक जलवायु मॉडल के द्वारा भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में समुद्र में होने वाले बदलावों को सटीकता से कैप्चर करना, आने वाले गर्म दशकों में क्षेत्रीय जलवायु के पूर्वानुमान लगाने के लिए महत्वपूर्ण है।
पिछले एक दशक में, येल के कला और विज्ञान संकाय (एफएएस) में महासागरीय और वायुमंडलीय विज्ञान के प्रोफेसर एलेक्सी फेडोरोव ने अल नीनो घटनाओं तथा अल नीनो दक्षिणी दोलन के गर्म चरण सहित दुनिया भर में समुद्र में होने वाले बदलावों पर महत्वपूर्ण शोध किया है। दक्षिणी दोलन वह स्थिति है जिसमें प्रशांत महासागर में असामान्य रूप से पानी गर्म होता है।
फेडोरोव और उनके शोध टीम ने जलवायु मॉडल सिमुलेशन का आयोजन किया जो अतीत में समुद्र के तापमान में आए बदलावों के बार में पता लगाते हैं। यह वह समय था जब वैश्विक तापमान कई डिग्री गर्म था, साथ ही वर्तमान में इस बात का पूर्वानुमान लगा सकता है कि भविष्य में कितनी गर्मी बढ़ सकती है और दुनिया भर में इसका क्या असर पड़ेगा।
लेकिन इन वर्षों के दौरान, फेडोरोव के येल सहयोगियों जिनमें जलवायु वैज्ञानिक शामिल हैं, इन्होंने सोचा कि प्राचीन समय के तापमान के अलग-अलग आंकड़े कितने सही हैं और क्या जलवायु मॉडल सिमुलेशन पिछले जलवायु स्थिति का सटीकता से पता लगा सकते हैं।
एफएएस में पृथ्वी और ग्रह विज्ञान के सहायक प्रोफेसर और प्रमुख शोधकर्ता हल ने कहा कि हमने तापमान के बजाय कुछ और मापकर अल नीनो के लिए जिम्मेवार हवाओं और धाराओं में बड़े बदलावों के बजाय समुद्र की अम्लता को मापा है।
महासागरीय अम्लता, महासागरों में पीएच की मात्रा के बारे में बताती है, जो मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा पर आधारित होती है। जिसे महासागर वायुमंडल से अवशोषित करते हैं। जैसे-जैसे समुद्र में कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ता है, पीएच की मात्रा घटती जाती है।
शोधकर्ताओं ने 26 से 53 लाख वर्ष पहले प्लायोसीन युग के दौरान भूमध्यरेखीय प्रशांत पर गौर किया था। प्लायोसीन युग पृथ्वी के अतीत की एक गर्म अवधि थी जिसे जलवायु वैज्ञानिक अक्सर आज के गर्म होने वाले ग्रह के एनालॉग के रूप में उपयोग करते हैं।
शोधकर्ताओं ने तीन चीजों की खोज की। सबसे पहले, उन्होंने आज की तुलना में प्लायोसीन युग के दौरान पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत में बहुत अधिक अम्लता पाई। दूसरा, नए परिणाम सह-शोधकर्ता नताली बर्ल्स के जलवायु मॉडल के पूर्वानुमान से मेल खाते हैं, प्रशांत के इलाके में एक जल परिसंचरण प्रणाली के कारण जो घूमता रहता है अर्थात एक कन्वेयर बेल्ट की तरह काम करता है, जो सतह को गहराई तक जाता है जिसमें पुराना पानी अधिक अम्लीय पाया गया।
कुछ दशक पुराने होने के बजाय, जैसा कि आज पाया जाता है, गर्म प्लायोसीन युग में ऊपर उठा हुआ पानी उत्तरी प्रशांत से लगभग 1,000 मीटर की गहराई पर हजारों मील दूर तक पहुंचता है।
तीसरा, शोधकर्ताओं ने पाया कि इस पुराने, अम्लीय पानी के फैलाव के लिए ‘उलटा परिसंचरण’ की आवश्यकता होती है। यह महासागर कन्वेयर बेल्ट की तरह होता है जिसका बर्ल्स और फेडोरोव द्वारा पहले पूर्वानुमान लगाया गया था।
हल ने बताया कि यह नताली और एलेक्सी के मॉडल की पुष्टि करता है। इसका मतलब है कि जलवायु मॉडल का हमारा वर्तमान संग्रह बहुत अच्छी तरह से काम कर रहा है। यह हमें समुद्र में बड़े, क्षेत्रीय परिवर्तनों और जलवायु में होने वाले बदलाव का पूर्वानुमान लगाने में अधिक विश्वास दिखाता है।
नई जानकारी यह भी बताती है कि समुद्र की अम्लता एक महत्वपूर्ण माप हो सकती है क्योंकि जलवायु मॉडल आज की तुलना में गर्म परिस्थितियों का अनुमान लगाने का प्रयास करते हैं। यह शोध नेचर जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
एफएएस में पृथ्वी और ग्रह विज्ञान के एक सहयोगी प्रोफेसर प्लानवस्की ने कहा, यह मॉडल और विचारों का परीक्षण करने का एक शक्तिशाली तरीका है। यह बताता है कि जलवायु प्रणाली कैसे काम करती है, यह अकेले ही पिछले तापमान के अनुमानों के आधार पर आकलन करने के लिए हमारी वर्तमान तकनीकी क्षमता से बहुत आगे है।