जलवायु

अप्रैल 2024 तक बना रहेगा अल नीनो, तापमान और चरम मौसमी घटनाओं में वृद्धि की आशंका

Lalit Maurya

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने आशंका जताई है कि मौजूदा अल नीनो की घटना अप्रैल 2024 तक जारी रह सकती है। इससे न केवल मौसम के मिजाज पर असर पड़ेगा साथ ही जमीन और समुद्र दोनों के तापमान में वृद्धि होगी। डब्ल्यूएमओ ने इस बात की भी आशंका जताई है कि अल नीनो के कारण 2024 में भी चरम मौसमी घटनाओं में इजाफा हो सकता है।

गौरतलब है कि वर्ष 2016 में अल नीनो और जलवायु परिवर्तन की वजह से वैश्विक तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था। बता दें कि इससे पहले मई 2023 में डब्ल्यूएमओ ने मई से जुलाई के बीच अल नीनो के घटने की 60 फीसदी आशंका जताई थी। वहीं डब्ल्यूएमओ का कहना था कि जून से अगस्त 2023 के बीच इसके बनने की आशंका बढ़कर 70 फीसदी और सितंबर में 80 फीसदी तक पहुंच जाएगी।

ऐसा हुआ भी, हालांकि इस बीच अल नीनो का प्रभाव पहले जितना प्रबल नहीं था लेकिन उसने फिर भी जलवायु पर व्यापक असर डाला है।

डब्ल्यूएमओ ने अपनी नई रिपोर्ट में यह भी जानकारी दी है कि अक्टूबर 2023 के मध्य तक, मध्य-पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में विभिन्न संकेतक अल नीनो के मौजूद होने का सुझाव देते हैं। अल नीनो की यह घटना जुलाई से अगस्त 2023 के बीच तेजी से विकसित हुई और सितंबर 2023 तक मध्यम तीव्रता तक पहुंच गई।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मौसम से जुड़ी अल नीनो और ला नीना की घटनाओं को आमतौर पर अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) के नाम से जाना जाता है। यह दोनों ही घटनाएं प्रशांत महासागर की सतह के तापमान में होने वाले बदलावों से जुड़ी हैं। जहां अल नीनो तापमान में होने वाली वृद्धि से जुड़ा है, वहीं ला नीना तापमान में आने वाली गिरावट को दर्शाता है।

बता दें कि जुलाई, अगस्त, सितम्बर और अब अक्टूबर के रिकॉर्ड में सबसे गर्म रहने के बाद वैज्ञानिकों द्वारा यह करीब-करीब तय माना जा रहा है कि वर्ष 2023, जलवायु इतिहास का अब तक का सबसे गर्म साल होगा। इसकी आशंका कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस के वैज्ञानिकों ने भी जताई है। यदि जनवरी से अक्टूबर के औसत तापमान को देखें तो वो औद्योगिक काल से पहले (1850 से 1900) समान अवधि के औसत तापमान की तुलना में 1.43 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया है। जो उसे इतिहास की अब तक की सबसे गर्म अवधि बनाता है।

इसी तरह आंकड़ों के मुताबिक इस साल 2023 में अक्टूबर का महीना जलवायु इतिहास का अब तक का सबसे गर्म अक्टूबर रहा। जब सतह के पास हवा का औसत तापमान 15.3 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया। यदि 1991 से 2020 के बीच अक्टूबर के औसत तापमान से इसकी तुलना करे तो इस साल अक्टूबर का महीना 0.85 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म रहा। ऐसे में जिस तरह से अल नीनों के प्रबल होने की आशंका जताई जा रही है उससे 2023 के अंत तक और 2024 में भी तापमान कहीं ज्यादा हो सकता है।

अल नीनो की यह घटना औसतन हर दो से सात साल में होती है। आमतौर पर इन दोनों ही घटनाओं का असर नौ से 12 महीने तक रहता है, पर कभी-कभी यह स्थिति कई वर्षों तक बनी रह सकती है। लेकिन जिस तरह से बढ़ते उत्सर्जन के चलते तापमान में बदलाव आ रहे है वो इन घटनाओं के घटने की आशंका को भी प्रभावित कर रहे हैं।

एक्सेटर विश्वविद्यालय से जुड़े वैज्ञानिकों के अनुसार 2040 तक उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अल नीनो की घटनाएं काफी बढ़ सकती हैं। जिसके पीछे कहीं न कहीं तापमान में होती वृद्धि का भी हाथ है।

वैज्ञानिक रूप से देखें तो अल-नीनो प्रशांत महासागर के भूमध्यीय क्षेत्र की उस मौसमी घटना का नाम है, जिसमें पानी की सतह का तापमान सामान्य से अधिक गर्म हो जाता है और हवा पूर्व की ओर बहने लगती है। इसकी वजह से न केवल समुद्र पर बल्कि वायुमंडल पर भी असर पड़ता है। जलवायु वैज्ञानिकों के मुताबिक इस घटना के चलते समुद्र का तापमान चार से पांच डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो जाता है।

देखा जाए तो यह दोनों ही घटनाएं दुनिया भर में मौसम, बारिश, बाढ़, तूफान और सूखा जैसी घटनाओं को प्रभावित करती हैं। इनकी वजह से कहीं सामान्य से ज्यादा बारिश होती है तो कहीं सूखा पड़ता है, और कहीं तूफान आते हैं।

भारत सहित अन्य देशों में गर्मियों में भी दिखेगा अल नीनो का असर

वहीं इसके नवंबर 2023 से जनवरी 2024 के बीच एक शक्तिशाली अल नीनो घटना के रूप में चरम पर पहुंचने की आशंका जताई गई है। साथ ही इसके उत्तरी गोलार्ध में आगामी सर्दियों और दक्षिणी गोलार्ध में गर्मियों के दौरान भी बने रहने की 90 फीसदी आशंका डब्ल्यूएमओ ने जताई है।

इसका मतलब की न केवल इस साल बल्कि 2024 की गर्मियों में भी बढ़ते तापमान से छुटकारा पाने की सम्भावना बिलकुल न के बराबर है। डब्ल्यूएमओ के मुताबिक इस बढ़ते तापमान के साथ गर्मी, लू, बाढ़ जैसी चरम मौसमी घटनाओं में वृद्धि होने की आशंका लगातार बढ़ रही है।

गौरतलब है कि भारत में भी इस साल अल नीनों ने मानसून और तापमान को प्रभावित किया था, जिसकी पुष्टि वैज्ञानिकों ने भी की है।

देखा जाए तो जब अल नीनो आता है तो अक्सर अपने साथ बाढ़, सूखा, बढ़ता तापमान भी साथ लाता है, जो फसलों को खराब और मछलियों की आबादी को खत्म कर देता है। इसके साथ ही कई बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है, जो सब मिलकर अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। यह नुकसान केवल एक नहीं बल्कि इसके घटने के कई वर्षों बाद भी सामने आता रहता है।

2023 में अल नीनो की घटना को लेकर किए एक अध्ययन से पता चला है कि 2023 में बनने वाली अल नीनो की घटना न केवल 2023 में नुकसान पहुंचाएगी, बल्कि इसका प्रभाव अगले पांच-छह वर्षों तक दर्ज किया जाएगा। रिसर्च में यह भी सामने आया है कि इस अल नीनो के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था को 2029 तक करीब 250 लाख करोड़ रुपए (तीन ट्रिलियन डॉलर) तक का नुकसान हो सकता है।

देखा जाए तो यह चरम मौसमी घटनाएं दुनियाभर में न केवल बाढ़ और सूखे के लिए जिम्मेवार होती है, साथ ही इनका असर स्वास्थ्य, कृषि और खाद्य सुरक्षा पर भी पड़ता है। इस बारे में जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित एक अन्य रिसर्च से पता चला है कि अल नीनो जैसी मौसमी घटनाएं बच्चों में कुपोषण के खतरे को  और बढ़ा सकती हैं।

ऐसा ही कुछ 2015 में अल नीनो के दौरान भी सामने आया था, जिसके चलते करीब और 60 लाख बच्चे कुपोषण का शिकार बन गए थे। इतना ही नहीं चिकनगुनिया, डेंगू, मलेरिया, हंता वायरस, हैजा, प्लेग और जीका जैसी बीमारियां भी अल नीनो के कारण आने वाली मौसमी घटनाओं से प्रभावित होती हैं।