एक्सेटर विश्वविद्यालय से जुड़े वैज्ञानिकों के अनुसार 2040 तक उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अल नीनो की घटनाएं काफी बढ़ सकती हैं। जिसके पीछे कहीं न कहीं तापमान में होती वृद्धि का भी हाथ है। गौरतलब है कि अल नीनो वैश्विक मौसम में उतार-चढ़ाव से जुड़ी घटना है। यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर के शोधकर्ताओं द्वारा किया यह अध्ययन अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित हुआ है।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने जलवायु परिवर्तन के चार अलग-अलग परिदृश्यों में बढ़ते कार्बन उत्सर्जन और अल नीनो की जांच की है जिससे पता चला है कि उन चारों ही परिदृश्यों में अल नीनो घटनाओं के जोखिम में इजाफा देखा गया था। ऐसे में वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि जलवायु परिवर्तन और बढ़ते उत्सर्जन से निपटने के लिए अभी जरुरी कदम न उठाए गए तो अल नीनो और चरम मौसमी घटनों की संख्या में कहीं ज्यादा वृद्धि हो जाएगी।
एक्सेटर विश्वविद्यालय और इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता जून यिंग के अनुसार पिछले शोधों से इस बात की पुष्टि हो चुकी है। उनके अनुसार पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में वर्षा में आते बदलावों के आधार पर अल नीनो को मापने पर मॉडल का पूर्वानुमान है कि इन घटनाओं के बारे-बार घटने की संभावनाएं कहीं ज्यादा बढ़ जाएंगी।
अध्ययन में यह भी सामने आया है कि अल नीनो की घटनाओं में यह बदलाव अगले दो दशकों के बाद ही सामने आने लगेंगे। बदलाव की शुरुआत कब होगी इस बारे में अत्याधुनिक जलवायु मॉडल से पता चला है कि सभी चारों उत्सर्जन परिदृश्यों में अल नीनो से जुड़े बारिश के पैटर्न में आते बदलावों को देखते हुए यह माना जा सकता है कि यह बदलाव 2040 में सामने आने लगेंगे।
शोध के मुताबिक 2070 के उत्सर्जन परिदृश्य की परवाह किए बिना अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) से सम्बंधित वर्षा में आते बदलाव 30 साल पहले ही सामने आने लगेंगें। इस बारे में एक्सेटर विश्वविद्यालय और ग्लोबल सिस्टम्स इंस्टीट्यूट से जुड़े मैट कॉलिन्स का कहना है कि उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में वर्षा समुद्री सतह के तापमान (एसएसटी) से जुड़ी होती है। ऐसे में सतह के तापमान में आने वाला सापेक्ष परिवर्तन, पूर्ण परिवर्तन से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण होता है।
जलवायु और समाज को किस तरह प्रभावित करती है यह घटनाएं
गौरतलब है कि अल नीनो एक ऐसी घटना है जिसमें पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर के सतही जल का तापमान असामान्य रूप से 4 से 5 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो जाता है और उसका बहाव पूर्व की ओर होने लगता है।
दुनिया भर में न केवल वैज्ञानिक बल्कि आम लोग भी इस घटना के बारे में अधिक से अधिक जानना चाहते हैं क्योंकि प्रशांत महासागर में घटने वाली यह मौसमी घटना दुनिया भर में जलवायु, पारिस्थितिकी तंत्र और समाज को प्रभावित करती है, जिसमें भारत भी अछूता नहीं है।
यह चरम मौसमी घटनाएं दुनियाभर में न केवल बाढ़ और सूखे के लिए जिम्मेवार होती है साथ ही इनका असर स्वास्थ्य, कृषि और खाद्य सुरक्षा पर भी पड़ता है।
इस बारे में जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में अक्टूबर 2021 में प्रकाशित एक शोध के हवाले से पता चला है कि अल नीनो जैसी मौसमी घटनाएं बच्चों में कुपोषण के खतरे को और बढ़ा सकती हैं। ऐसा ही कुछ 2015 में अल नीनो की घटना के दौरान भी सामने आया था जिसके चलते करीब और 60 लाख बच्चे कुपोषण का शिकार बन गए थे।
इतना ही नहीं चिकनगुनिया, डेंगू, मलेरिया, हंतावायरस, हैजा, प्लेग और जीका जैसी बीमारियां भी अल नीनो के कारण आने वाली मौसमी घटनाओं से प्रभावित होती हैं।