जलवायु परिवर्तन के कारण 2050 के दशक में बारिश पर निर्भर धान की पैदावार में 20 फीसदी और 2080 के दशक में 10 से 47 फीसदी की कमी आने के आसार हैं।  फोटो साभार: आईस्टॉक
जलवायु

आपदाओं से किसानों को होने वाले नुकसान का आंकड़ा हमारे पास नहीं, सरकार ने दिया जवाब

संसद में आपदाओं की वजह से किसानों को होने वाले नुकसान की जानकारी सरकार से मांगी गई थी

Madhumita Paul, Dayanidhi

आज यानी 25 जुलाई 2025 को संसद में पूछे गए एक और सवाल के जवाब में आज कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने राज्यसभा में बताया कि किसी भी आपदा के कारण किसानों को हुए नुकसान का आंकड़ा केंद्रीय स्तर पर नहीं रखा जाता है। प्रभावित फसलों में धान, गेहूं, जौ, सरसों, ज्वार, बाजरा, मक्का, प्याज और बागवानी फसलें शामिल हैं।

उत्तराखंड में, राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (एसडीआरएफ) के मानदंडों के अनुसार 4774.65 हेक्टेयर क्षेत्र को शामिल किया गया है, जिसकी क्षति राशि 699.72 लाख रुपये है। ओडिशा ने एसडीआरएफ से किसानों को 15.39 करोड़ रुपये का भुगतान किया है।

हालांकि कृषि पर जलवायु परिवर्तन के असर को लेकर सदन में उठाए गए एक सवाल के जवाब में कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी ने राज्यसभा में कहा कि सरकार फसलों, पशुधन, बागवानी और मत्स्य पालन सहित कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए आईसीएआर की प्रमुख नेटवर्क परियोजना 'जलवायु-अनुकूल कृषि में राष्ट्रीय नवाचार' (एनआईसीआरए) लागू कर रही है।

अध्ययन से पता चला है कि अनुकूलन उपायों के अभाव में, जलवायु परिवर्तन के कारण 2050 के दशक में बारिश पर निर्भर धान की पैदावार में 20 फीसदी और 2080 के दशक में 10 से 47 फीसदी की कमी आने के आसार हैं। सिंचाई पर निर्भर धान की पैदावार में 2050 के दशक में 3.5 फीसदी और 2080 के दशक में पांच फीसदी की कमी आने का अनुमान है।

गेहूं की पैदावार में भी 2050 के दशक में 19.3 फीसदी और 2080 के दशक में 40 फीसदी की कमी आने के आसार हैं। खरीफ मक्का की पैदावार में 2050 के दशक में 10 से 19 फीसदी और 2080 के दशक में 20 फीसदी से अधिक की कमी आने का अनुमान है।

चौधरी ने बताया कि जलवायु परिवर्तन, विशेष रूप से अनियमित वर्षा पैटर्न और उच्च तापमान, बागवानी फसलों की उत्पादकता पर असर डाल सकता है। उदाहरण के लिए, प्याज में लगातार छह दिनों तक जलभराव के कारण 36.6 फीसदी उपज का नुकसान होता है, टमाटर में फूल निकलने कसे चरण के दौरान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान के कारण 65 फीसदी उपज की हानि होती है, सर्दियों के तापमान में 1.5-2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के कारण सेब की खेती निचले क्षेत्रों से ऊंचे क्षेत्रों में स्थानांतरित हो जाती है जिसके कारण उपज में 30 फीसदी की कमी आती है।

रेलवे में कचरे का प्रबंधन

सदन में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में आज, रेल, सूचना एवं प्रसारण तथा इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने राज्यसभा में बताया कि रेलवे स्टेशनों, खानपान इकाइयों और कोचों में उत्पन्न कचरे के निपटान सहित प्रभावी प्रबंधन को भारतीय रेलवे द्वारा उपयोगकर्ताओं के बेहतर अनुभव के लिए उच्च प्राथमिकता दी जाती है।

इस संबंध में कई महत्वपूर्ण पहलें की गई हैं - ट्रेनों के अंदर एकत्रित कचरे का निपटान मार्ग में नामित स्टेशनों पर किया जाता है, जिनको कचरे के निपटान के लिए चुना गया है। भारतीय रेलवे में कई स्थानों पर जरूरत के अनुसार, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी), अपशिष्ट उपचार प्लांट (ईटीपी), सामग्री पुनर्प्राप्ति सुविधा (एमआरएफ) जैसी बुनियादी संरचना स्थापित और चालू की गई है।

वर्तमान में, 142 एसटीपी, 86 ईटीपी और 203 एमआरएफ स्थापित हैं। स्थानीय परिस्थितियों, व्यवहार्यता और आवश्यकता के आधार पर, स्थानीय रेलवे अधिकारियों और नगर निकायों के बीच कचरे के निपटान के लिए गठजोड़ किया गया है। रेलवे पटरियों पर मल गिरने से रोकने के लिए सभी यात्री डिब्बों में बायो-शौचालय लगाए गए हैं। भारतीय रेलवे में एक बार उपयोग होने वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। जरूरत के अनुसार 531 स्टेशनों पर प्लास्टिक बोतल क्रशिंग मशीनें (पीबीसीएम) लगाई गई हैं।

आंध्र प्रदेश में फेम के तहत ईवी चार्जिंग

सदन में उठे एक सवाल के जवाब में आज, भारी उद्योग राज्य मंत्री भूपतिराजू श्रीनिवास वर्मा ने राज्यसभा में बताया कि फेम-द्वितीय योजना के तहत, आंध्र प्रदेश राज्य में 60 किलोवाट या उससे अधिक क्षमता वाले कुल 494 फास्ट ईवी चार्जिंग स्टेशन (ईवीसीएस) स्थापित किए गए हैं, जिनमें से एक जुलाई, 2025 तक 95 ईवीसीएस चालू हो चुके हैं।

फेम-द्वितीय के तहत, आंध्र प्रदेश में 60 किलोवाट कम क्षमता वाला कोई चार्जर नहीं है। फेम-द्वितीय योजना के तहत स्थापित सभी चार्जर सार्वजनिक चार्जर हैं अर्थात आम जनता के उपयोग के लिए सुलभ हैं और निजी ईवीसीएसफेम-द्वितीय में शामिल नहीं हैं।

प्रधानमंत्री ई-ड्राइव पहल

सदन में पूछे गए एक और प्रश्न के उत्तर में आज, भारी उद्योग राज्य मंत्री भूपतिराजू श्रीनिवास वर्मा ने राज्यसभा में कहा कि प्रधानमंत्री ई-ड्राइव योजना के तहत, 14,028 ई-बसों की तैनाती के लिए 4,391 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। इससे उत्सर्जन में भारी कमी आएगी।

शुरुआत में, इस योजना के तहत 40 लाख से अधिक आबादी वाले नौ शहरों - मुंबई, दिल्ली, बैंगलोर, हैदराबाद, अहमदाबाद, चेन्नई, कोलकाता, सूरत और पुणे को चुना जाएगा।

देश में जीका वायरस के मामले

सदन में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में आज, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री प्रतापराव जाधव ने लोकसभा में कहा कि राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) के एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (आईडीएसपी) को जीका वायरस सहित 50 से अधिक प्रकोप-प्रवण संचारी रोगों की निगरानी और प्रतिक्रिया का दायित्व सौंपा गया है।

जाधव ने बताया कि भारत में जीका वायरस का पहला मामला 2017 में सामने आया था, जब गुजरात से इसके मामले सामने आए थे। तब से देश के विभिन्न हिस्सों में छिटपुट प्रकोप हुए हैं। एकीकृत स्वास्थ्य सूचना मंच (आईएचआईपी) पोर्टल पर राज्यों द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, 2024 में जीका वायरस के 83 मामले सामने आने की जानकारी है।

वेक्टर जनित रोगों के बढ़ते मामले

देश में वेक्टर जनित रोगों के बढ़ते मामलों को लेकर सदन में उठाए गए एक सवाल के जवाब में आज, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने लोकसभा में बताया कि देश भर में, 2025 (जून तक) में डेंगू और चिकनगुनिया के कुल मामलों की संख्या 2024 की इसी अवधि की तुलना में कम हुई है, लेकिन कुछ राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में मामलों में मामूली वृद्धि हुई है।

पटेल ने कहा एकीकृत स्वास्थ्य सूचना मंच (आईएचआईपी) पर निगरानी बढ़ाने और कागज रहित रिपोर्टिंग के कारण 2025 में 2024 की इसी अवधि की तुलना में कुछ राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में मलेरिया (मई तक) और कालाजार (जून तक) जैसी अन्य वेक्टर जनित बीमारियों के मामलों में मामूली वृद्धि हुई है। उल्लेखनीय रूप से 2024 की इसी अवधि की तुलना में 2025 (जून तक) में जापानी इंसेफेलाइटिस के मामलों की संख्या में कोई वृद्धि नहीं देखी गई है।