वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यदि तापमान में होती वृद्धि इसी तरह जारी रहती है तो सदी के अंत तक भारत में 2020 के मुकाबले करीब ढाई गुना यानी 250 फीसदी ज्यादा आबादी शक्तिशाली चक्रवात और उसके कारण आने वाली भीषण बाढ़ की चपेट में होगी, जिसके लिए कहीं न कहीं समुद्र का बढ़ता जलस्तर जिम्मेवार होगा।
ब्रिस्टल विश्वविद्यालय से जुड़े वैज्ञानिकों की मानें तो भविष्य में यह सुपर साइक्लोन दक्षिण एशिया के लिए कहीं घातक सिद्ध होंगें। वैज्ञानिकों का कहना है कि सदी के अंत तक चक्रवाती तूफान ‘अम्फान’ जितने शक्तिशाली तूफानों से होने वाला नुकसान पहले के मुकाबले ढाई गुना ज्यादा बढ़ जाएगा।
गौरतलब है कि हाल ही में दक्षिणी अंडमान सागर से उठा चक्रवाती तूफान 'आसनी' भारत, बांग्लादेश म्यांमार को प्रभावित कर सकता है। इसकी वजह से देश में कई राज्यों में तेज हवाओं के साथ भारी बारिश हो सकती है। अनुमान है कि इस तूफान का असर ओडिशा के अलावा बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, सिक्किम और आंध्र प्रदेश समेत कई राज्यों में देखने को मिल सकता है।
वैज्ञानिकों ने चक्रवातों के बढ़ते खतरे को समझने के लिए सुपर साइक्लोन 'अम्फान' और विभिन्न जलवायु परिदृश्यों में बढ़ते तापमान के चलते समुद्र के जल स्तर में होने वाली वृद्धि का अनुमान लगाया है। इस अध्ययन के निष्कर्ष जर्नल क्लाइमेट रेजिलिएंस एंड सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित हुए हैं।
गौरतलब है कि चक्रवाती तूफान 'अम्फान' और बाढ़ 2020 में आई दुनिया की 10 सबसे महंगी आपदाओं की सूची में शामिल थे। इन आपदाओं के चलते करीब 1.70 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। देखा जाए तो यह तूफान 'अम्फान' बंगाल की खाड़ी में आए अब तक के सबसे शक्तिशाली तूफानों में से एक था, जिसकी वजह से 128 लोगों की जान गई थी, वहीं करीब 49 लाख लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा था। इतना ही नहीं इस आपदा में हजारों मवेशी मारे गए थे। अनगिनत इमारतें क्षतिग्रस्त हो गई थी।
जलवायु परिवर्तन के मामले में बहुत संवेदनशील है दक्षिण एशिया
इस बारे में जलवायु विज्ञानी और शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डैन मिशेल का कहना है कि दक्षिण एशिया दुनिया के सबसे अधिक जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है, जहां शक्तिशाली चक्रवात हजारों लोगों की जान लेते आए हैं। हालांकि इसकी तुलना में दक्षिण एशिया में जलवायु प्रभावों को लेकर बहुत कम अनुसंधान किए गए हैं। गौरतलब है कि आईपीसीसी ने भी जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से दक्षिण एशिया को एक महत्वपूर्ण क्षेत्र माना है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी "एमिशन गैप रिपोर्ट 2020" में भी इस बात की आशंका जताई है कि यदि तापमान में हो रही वृद्धि इसी दर से जारी रहती है, तो सदी के अंत तक यह वृद्धि 3.2 डिग्री सेल्सियस के पार चली जाएगी।
शोध के जो निष्कर्ष सामने आए हैं उसके मुताबिक बांग्लादेश में इसके प्रभाव में मामूली वृद्धि होने का अनुमान है। पता चला है कि भविष्य में वहां इन चक्रवातों के कारण बाढ़ की चपेट में आने वाली आबादी में 60 से 70 फीसदी की वृद्धि हो सकती है। इसके लिए शोधकर्ताओं ने तटीय आबादी में आती गिरावट को कारण माना है।
साथ ही पता चला है कि यदि हम पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल कर पाने में सफल रह पाते हैं और तापमान में होती वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस के भीतर रोक लेते हैं तो बांग्लादेश में बाढ़ की चपेट में आने वाली आबादी लगभग न के बराबर होगी। हालंकि वैज्ञानिकों के मुताबिक इस जलवायु परिदृश्य में भी भारत में बाढ़ की चपेट में आने का खतरा 50 से 80 फीसदी तक बढ़ जाएगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक बंगाल की खाड़ी में, सदी के अंत तक समुद्र का जलस्तर 0.32 मीटर से 0.84 मीटर तक बढ़ सकता है, जो उत्सर्जन परिदृश्य पर निर्भर करेगा।
उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को लेकर जर्नल नेचर में प्रकाशित एक अन्य शोध का अनुमान है कि यदि 2050 तक उत्सर्जन को रोकने पर विशेष ध्यान न दिया गया तो इसके चलते तापमान में होती वृद्धि 2 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच जाएगी, जिसके चलते लोगों के इन तूफानों की जद में आने का खतरा करीब 41 फीसदी बढ़ जाएगा।
इन सुपर साइक्लोन के बारे में बांग्लादेश यूनिवर्सिटी ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (बीयूईटी) में हाइड्रोलॉजी के प्रोफेसर और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता सैफुल इस्लाम का कहना है कि हाल ही में जारी आईपीसीसी रिपोर्ट का भी मानना है कि बढ़ते तापमान के चलते उच्च तीव्र श्रेणी वाले उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की संख्या पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा बढ़ जाएगी।
वहीं इस शोध में जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके मुताबिक यदि उत्सर्जन में इसी तरह तेजी से वृद्धि होती है तो उसके चलते शक्तिशाली चक्रवातों और भीषण बाढ़ के कारण भारत और बांग्लादेश में लोगों पर मंडराता खतरा 200 फीसदी तक बढ़ जाएगा। अनुमान है कि भविष्य में इन चक्रवातों की वजह से तीन मीटर से ज्यादा ऊंची बाढ़ आएंगी। ऐसे में उनके अनुसार यह जरुरी है कि पैरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए बढ़ते उत्सर्जन में तेजी से निरंतर कमी करने की जरुरत है, जिससे बांग्लादेश जैसे कमजोर देशों में इस नुकसान को सीमित किया जा सके।