जलवायु

हिंदू कुश हिमालय व तिब्बती पठार में तीन गुना बढ़ सकती है बाढ़ की विभीषिका

Dayanidhi

हिंदू कुश-हिमालय, तिब्बती पठार और आसपास की पर्वत श्रृंखलाओं को व्यापक रूप से पृथ्वी के तीसरे ध्रुव के रूप में जाना जाता है। एशिया की ये उच्च पर्वत श्रृंखलाएं, ध्रुवीय क्षेत्रों के बाहर सबसे बड़ी संख्या में ग्लेशियर के रूप में पानी इकट्ठा करते हैं। शोध टीम ने इस क्षेत्र में बाढ़ के खतरे में वृद्धि होने का खुलासा किया है, यह बाढ़ जलवायु परिवर्तन के चलते पृथ्वी के बर्फीले तीसरे ध्रुव पर सकती है।

स्विट्जरलैंड के जिनेवा विश्वविद्यालय (यूएनआईजीई) के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में एक दल ने तेजी से पीछे हटने तथा पिघलने वाले ग्लेशियरों के सामने आने वाली नई झीलों के खतरे की ओर इशारा किया है। शोध दल का मानना है कि यहां रहने वाले लोगों और उनके बुनियादी ढांचे के लिए बाढ़ संबंधी खतरे लगभग तिगुने हो सकते हैं। हिमालय और इसके संवेदनशील क्षेत्रों के भीतर, भविष्य में खतरे वाले नए केंद्र सामने आएंगे।

अगले तीन दशकों में इन खतरों में उल्लेखनीय वृद्धि होने के आसार हैं। इस अध्ययन के परिणाम, क्षेत्र में भविष्य में पड़ने वाले प्रभावों को कम करने के लिए अग्रगामी, सहयोगी, दीर्घकालिक दृष्टिकोण की तत्काल आवश्यकता पर जोर देते हैं। 

स्विस और चीनी पर्वतारोहियों ने सैटेलाइट चित्र (इमेजरी) और स्थानीय आकृतिक मॉडलिंग का उपयोग करके इस तीसरे ध्रुव (थर्ड पोल) में स्थित 7,000 ग्लेशियल झीलों से जुड़े खतरों के बारे में पता लगाया है। इसके आधार पर अध्ययनकर्ता 96 फीसदी हिमाच्छादित झीलों को सटीक रूप से वर्गीकृत करने में सफल रहे हैं, जो अतीत में उच्च या बहुत अधिक बाढ़ का खतरा पैदा कर सकते हैं।

यूएनआईजीई के पर्यावरण विज्ञान संस्थान के शोधकर्ता और अध्ययनकर्ता साइमन एलन बताते हैं हमने तब अपने परिणामों की तुलना पिछले ग्लेशियर के पिघलने से आने वाली बाढ़ की एक सूची से की थी। एक बार जब हमने इस बात का पता लगा लिया कि हमारा दृष्टिकोण वर्तमान खतरनाक झीलों की सही पहचान कर सकते हैं, तो हम भविष्य के परिदृश्यों के लिए इन तरीकों को लागू कर सकते हैं। कुल मिलाकर, अध्ययन से पता चला है कि वर्तमान ग्लेशियर के पिघलने से बनी झीलों से छह (1,203) में से एक में बहाव होने से वहां रहने वाले लोगों के लिए बहुत अधिक खतरा है, जो कि विशेष रूप से पूर्वी और मध्य हिमालयी क्षेत्रों में चीन, भारत, नेपाल और भूटान में है।

भविष्य को देखते हुए, ग्लेशियरों के अपने जगहों से हटने, झीलों का निर्माण और संबंधित बाढ़ के खतरे को तीन अलग-अलग सीओ 2 उत्सर्जन परिदृश्यों के तहत माना जाता था। उच्चतम उत्सर्जन परिदृश्य के तहत, अध्ययन से पता चलता है कि तीसरे ध्रुव का अधिकांश भाग पहले से ही 21वीं सदी के अंत तक चरम जोखिम की स्थिति या मध्य तक पहुंच सकता है।

13,000 से अधिक झीलों के बढ़ने से उत्पन्न होने वाली बाढ़ की मात्राओं के अलावा, समय के साथ झीलें खड़ी अस्थिर पहाड़ी ढलानों की ओर बढ़ती जाएगी जो झीलों में मिल जाएगी और इसकी वजह से छोटी सुनामी सकती हैं। यूएनआईजीई के पर्यावरण विज्ञान संस्थान में प्रोफेसर मार्कस स्टॉफेल कहते हैं कि जिस गति से ये खतरनाक झीलें विकसित हो रही हैं, वह हमें आश्चर्यचकित कर रही है। हम कुछ दशकों से नहीं सदियों से बात कर रहे हैं ये समय-सीमाएं हैं जो अधिकारियों और निर्णय निर्माताओं का ध्यान आकर्षित करती हैं।

यदि ग्लोबल वार्मिंग मौजूदा तरीके से जारी  रहती है, तो पश्चिमी हिमालय, काराकोरम और मध्य एशिया में नए खतरे पैदा होंगे। साथ ही अधिक खतरनाक रूप में वर्गीकृत झीलों की संख्या 1,203 से 2,963 तक बढ़ जाएगी है। इन क्षेत्रों को पहले से ही ग्लेशियल झील के प्रकोपों का सामना करना पड़ा है, लेकिन इन घटनाओं का दुबारा होना निश्चित हो गया है और ग्लेशियर अपनी जगहों से हट रहे है तथा पिघलते जा रहे हैं।

तीसरी ध्रुव की पर्वत श्रृंखलाएं ग्यारह राष्ट्रों की हैं, जो संभावित प्राकृतिक आपदाओं को जन्म देती हैं। अध्ययन के निष्कर्षों से पता चलता है कि भविष्य में ग्लेशियरों से बनी झीलों से आने वाली बाढ़ के स्रोतों की संख्या लगभग दोगुनी हो सकती है (अतिरिक्त 464 झीलें), इनमें से 211 झीलों को उच्चतम जोखिम श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।

नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित इस अध्ययन में कहा गया है कि चीन और नेपाल की सीमा क्षेत्र एक प्रमुख हॉटस्पॉट है जो भविष्य के सभी अंतरराष्ट्रीय सीमा (ट्रांसबाउंडरी) झील स्रोतों का 42 फीसदी रहेगा, जबकि ताजिकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच पामीर पर्वत एक प्रमुख नए ट्रांसबाउंड्री हॉटस्पॉट के रूप में उभरेंगे जो वर्तमान में 5 फीसदी ट्रांसबाउंडरी झील के स्रोत भविष्य में 36 फीसदी तक बढ़ रहे हैं। एलन कहते हैं ट्रांसबाउंड्री क्षेत्र हमारे लिए विशेष चिंता का विषय हैं। राजनीतिक तनाव और विश्वास की कमी एक वास्तविक बाधा हो सकती है जो प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी और आपदा को कम करने के लिए आवश्यक समय पर आंकड़ों को साझा करने, संचार और समन्वय को रोकती है।

शोधकर्ताओं ने जान माल के जोखिम को कम करने और समाज के लिए आपदा जोखिम प्रबंधन रणनीतियों की खोज के महत्व पर बल दिया है। इस शोध के निष्कर्ष प्रासंगिक देशों और अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान समुदायों को तीसरे ध्रुव क्षेत्र में भविष्य की ग्लेशियर की वजह से आने वाली बाढ़ संबंधी आपदाओं को रोकने के लिए तत्काल काम करने के लिए प्रेरित करना है।