तिब्बती पठार में जमीन से घिरी झीलों में एकत्रित पानी की मात्रा के 2100 तक चार गुना तक बढ़ने का अनुमान है।  फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, जन रेउरिंक
जलवायु

जलवायु में बदलाव के कारण तिब्बती पठार की झीलें 2100 तक 50 फीसदी तक बढ़ जाएंगी: शोध

Dayanidhi

तिब्बती पठार के नाम से जाने वाले किंघाई-शिजांग पठार पर झीलों का क्षेत्रफल 21वीं सदी में कम उत्सर्जन परिदृश्य के तहत भी 50 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है, जिससे लोगों के रहने वाली जगहों से लेकर खेती की जमीन और पारिस्थितिकी तंत्र के जलमग्न होने का खतरा पैदा हो जाएगा, इस बात की चेतावनी शोधकर्ताओं की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम द्वारा अपने शोध के माध्यम से दी गई है। 

तिब्बती पठार में बड़ी संख्या में झीलें हैं जो इस क्षेत्र के भीतर जल विज्ञान और जैव-रासायनिक चक्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हाल के दशकों में, बदलती जलवायु परिस्थितियों के जवाब में इन झीलों का विस्तार हो रहा है। शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा है कि भविष्य में इन झीलों के रुझान कैसे विकसित होंगे और बुनियादी ढांचे और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरे का आकलन करना, इन्हें कम करने की रणनीतियों को लागू करना बहुत जरूरी है।

शोध के मुताबिक, तिब्बती पठार पर झीलों में भविष्य में होने वाले बदलावों का अध्ययन करने के लिए कुछ मॉडलों का इस्तेमाल किया गया है। लेकिन इन मॉडलों में स्थानीय-समय संबंधी विविधता के कारण अलग-अलग झीलों के भविष्य की भविष्यवाणी करने की सीमाएं हैं। इसके अलावा पिछले कुछ अध्ययनों में केवल कुछ बड़ी झीलों पर ही गौर किया गया, जो पठार पर बनी सभी झीलों में भविष्य में होने वाले व्यापक बदलावों और उनके प्रभावों को कवर करने में विफल रहे हैं।

नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित शोध से पता चलता है कि पिछले तीन दशकों में तिब्बती पठार की झीलों का विस्तार 10,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक हो गया है। साल 2100 तक, कम उत्सर्जन परिदृश्य में भी तिब्बती पठार में झीलों का कुल क्षेत्रफल 2020 की तुलना में लगभग 50 प्रतिशत बढ़ सकता है।

इस वृद्धि के के कारण पठार पर बनी झीलों के स्तर में 10 मीटर की वृद्धि के साथ ये सतह के अतिरिक्त 20,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर सकती हैं। टीम का अनुमान है कि बारिश में वृद्धि और ग्लेशियरों के पिघलने से पानी की मात्रा में लगभग 652 अरब टन बढ़कर चौगुना हो जाएगा, जिससे तिब्बती पठार की जल विज्ञान की स्थिति में भारी बदलाव आएगा।

यदि खतरे को कम करने के उपाय नहीं किए गए तो  झील के विस्तार से 1,000 किलोमीटर से अधिक सड़कें, लगभग 500 बस्तियां और 10,000 वर्ग किलोमीटर के विविध पारिस्थितिकी तंत्र के जलमग्न होने का अनुमान है। झील का विस्तार और परिणामी प्रभाव उच्च उत्सर्जन परिदृश्यों के लिए और भी ज्यादा  होने का अनुमान है।

शोध के अनुसार, झीलों के विस्तार से झील-वायुमंडल विनिमय में वृद्धि होगी, जिससे वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा में वृद्धि हो सकती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग और अधिक बढ़ जाएगी

वैज्ञानिकों ने शोध के हवाले से कहा, भविष्य में, झील के पानी की मात्रा में वृद्धि से झील के पानी की लवणता में कमी आएगी, जिससे झील के पारिस्थितिक तंत्र की प्रजातियों की बहुतायत और पोषक संरचना में और बदलाव आएगा। इसके अलावा झील के बेसिनों के पुनर्गठन के कारण नई नदी चैनलों के निर्माण से पठारी जानवरों के प्रवास में भी बाधा आएगी, जिससे सामाजिक विकास और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव को कम करने के लिए अधिक प्रभावी टिकाऊ प्रबंधन उपायों को लागू करने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।

वैज्ञानिकों ने क्षेत्र में हाइड्रोलॉजिकल बदलावों और बुनियादी ढांचे पर उनके प्रभाव से बचाने के लिए पर्याप्त शमन और अनुकूलन रणनीतियों को बनाने का आह्वान किया है।