अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में छपे एक शोध से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के चलते दुनिया भर के शहरों में नमी की मात्रा घट जाएगी। अनुमान है कि सदी के अंत तक यदि उत्सर्जन में वृद्धि जारी रहता है तो तापमान में 4.4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है।
शहर जोकि धरती के केवल तीन फीसदी हिस्से पर फैले हैं, पर उनमें विश्व की 50 फीसदी से ज्यादा आबादी रहती है, जो 2050 तक बढ़कर 70 फीसदी पर पहुंच जाएगी। एक ही जगह पर आबादी का जमावड़ा कई समस्याओं को भी जन्म दे रहा है। इसमें गर्मी से बढ़ता तनाव, पानी की कमी, वायु प्रदूषण और ऊर्जा की कमी जैसी समस्याएं प्रमुख हैं।
दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के असर को समझने के लिए कई मॉडल विकसित किए गए हैं। इस शोध से जुड़े शोधकर्ताओं का मानना है कि उन मॉडलों को बड़े स्तर पर विश्लेषण करने के लिए तैयार किया गया है। इन्हें शहरों को ध्यान में रखकर नहीं तैयार किया गया है। लेकिन इस नए शोध में शोधकर्ताओं ने शहरों पर जलवायु परिवर्तन के असर को करीब से समझने के लिए पारम्परिक क्लाइमेट मॉडल के साथ-साथ आंकड़ों पर आधारित स्टैटिस्टिकल मॉडल का भी प्रयोग किया है। जिसे विशेष तौर पर शहरों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।
इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता ली झाओ के अनुसार ”शहरों में सतह कंक्रीट और डामर की बनी होती है, जो कच्ची जमीन की तुलना में बहुत अधिक गर्मी को सोखती है और उसे बनाए रखती हैं। ऐसे में वातावरण बहुत तेजी से गर्म होता है और नमी खो देता है।” ऊपर से घटते पेड़ इस हीट आइलैंड की समस्या को और बढ़ा रहे हैं। यही वजह है कि शहरों में तापमान कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है। अनुमान है कि शहरों का तापमान अपने आस-पास के ग्रामीण इलाकों से 4 से 5 डिग्री सेल्सियस तक ज्यादा होता है।
क्या है इस समस्या का समाधान
इस मॉडल से पता चला है कि यदि शहरों में ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान दिया जाए तो वह भविष्य के लिए एक अच्छा निवेश होगा। पेड़-पौधे वातावरण में नमी बरक़रार रखते हैं। यह ने केवल प्रदूषण को कम करते हैं साथ ही तापमान को कम करने के साथ-साथ हवा को भी ठंडा करते हैं। मॉडल से पता चला है कि अगली सदी में तट से दूर शहरों की हवा खुश्क हो जाएगी ऐसे में यह पेड़ पौधे और ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर जलवायु परिवर्तन से निपटने में बहुत मददगार होंगे।
ऐसे में झाओ को उम्मीद है कि यह मॉडल शहरों में बढ़ते तापमान से निपटने में मदद करेगा। साथ ही शहरी योजनाकारों और नीति निर्माताओं को भविष्य को ध्यान में रखकर योजना तैयार करने में मददगार होगा।