जलवायु

जीवन में बदलाव ही जलवायु परिवर्तन से बचाव संभव

केरल स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के मेंबर सेक्रेटरी शेखर लुकोस कुरीकोस ने कहा कि केरल की घटनाओं को दूसरे नजरिए से देखने की जरूरत है।

Anil Ashwani Sharma

केरल स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के मेंबर सेक्रेटरी शेखर लुकोस कुरीकोस से केरल में पिछले नौ माह से हो रही मौसम की अतिशय घटनाओं पर डाउन टू अर्थ ने बातचीत की। बातचीत के प्रमुख अंश-

क्या केरल में हो रही मौसम की अतिशय की घटनाओं में कहीं न कहीं जलवायु परिवर्तन का असर है?

मुझे लगता है कि हमें इसे थोड़ा अलग ढंग से देखने की जरूरत है। यहां यह धारणा कि जलवायु परिवर्तन यह सब पैदा कर रहा है शायद थोड़ा गलत है। यह भी सही है कि जलवायु परिवर्तन के निशान दुनिया भर में अधिक दिखाई देते हैं और ध्यान से देखने पर केरल में भी हमें इसके उदहारण मिलेंगे।

क्या केरल की आपदाओं के पीछे कोई और वजह है?

राज्य में आईएमडी के साथ दीर्घकालिक और घने अनुसन्धान  की कमी का पुराना  मुद्दा अभी भी प्राकृतिक प्रभावों बनाम मानवजनित प्रभावों को सटीक रूप से निर्धारित करने की राह में  चिंता का विषय है। मेरी व्यक्तिगत राय में दो पहलू हैं जो हमें नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं और वे बहुत हद तक व्यक्तिगत विकल्प हैं, वे हैं अनिश्चित लैंडयूज और जीवन शैली।

केरल के ग्रीन कवर की गुणवत्ता पर किस प्रकार से असर पड़ा है?

जैसा कि आप जानते हैं, केरल देश में सबसे घनी आबादी वाला राज्य है। जनसंख्या के इस घनत्व और जनता की आकांक्षाओं के कारण उन जमीनों पर भी  कब्जा हो गया है जो अन्यथा जीवन जीने के लिए उपयुक्त नहीं हैं। इन निर्जन क्षेत्रों के लिए आवश्यक सेवाओं की आवश्यकता ने भी ग्रीन कवर की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। आप ध्यान दें कि मैं ग्रीन कवर के तहत क्षेत्र के बारे में बात नहीं कर रहा हूं बल्कि ग्रीन कवर की की गुणवत्ता की बात कर रहा। इसलिए उच्च जीवन स्तर को ध्यान में रखते हुए (ध्यान दें कि केरल में देश का सर्वोच्च मानव विकास सूचकांक है), हम इन दिनों धूप में बाहर निकलने के आदी नहीं रहे हैं। इसलिए पिछली एक से दो पीढ़ियों को देखें तो हमारी उच्च तापमान को सहन करने की क्षमता धीरे-धीरे कम होती जा रही है। 

इसे एक बार फिर से केरलवासी किस प्रकार से हासिल कर सकते हैं?

अब  जबकि हम जानते हैं कि जलवायु में तेजी से बदलाव हो रहे हैं, हमें और अधिक सुरक्षित रहने के लिए और नए वातावरण में खुद को ढालने के लिए  तैयार रहना चाहिए। हमारी  तैयारी अधिक एयर कंडीशनर और पंखे खरीदने के माध्यम से नहीं बल्कि जीवनशैली में बदलाव लाकर गर्मी का सामना करने की होनी चाहिए। केरल के निवासी जून से दिसंबर तक अपने पास छाता रखा करते थे। अब उन्हें फरवरी से ही ऐसा करना पड़ रहा है। यही नहीं, अब लोगों को फरवरी के महीने से ही पानी की बोतल रखने की आवश्यकता महसूस हो रही है। 

जलवायु परिर्वन के असर को कम करने के लिए क्या उपाय करने होंगे?

मेरी बात सीधी सी है। हाई फंडा विज्ञान में समाधान खोजने के बजाय, हमें आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता है। हमें अपने सामजिक जीवन में ऐसे बदलाव लाने होंगे जिससे कि जलवायु परिवर्तन का बुरा असर हम पर न पड़े। इस तरह के अनुकूलन में  हमेशा लैंडयूज पैटर्न्स और जीवन शैली में परिवर्तन लाना शामिल होगा जो हमारे लिए असुविधाजनक हो सकता है।