जलवायु

क्या कार्बन-कैप्चर मॉडल सही से काम करते हैं या कार्बन क्रेडिट की होड़ में होता है झोल?

शोध में पाया गया कि एक जमीन के मालिक को मिलने वाले कार्बन कम करने की राशि कम से कम 2.76 कारणों से बढ़ा-चढ़ाकर बताई गई है, जो दर्शाता है कि कार्बन में कमी उतनी नहीं होती है जितनी पहले सोची गई थी।

Dayanidhi

जलवायु परिवर्तन से निपटने और पृथ्वी के वायुमंडल से कार्बन को इकट्ठा करने के लिए वृक्षारोपण कर जंगलों को फिर से भरने के प्रयास महत्वपूर्ण हैं। 2023 के रिकॉर्ड पर सबसे गर्म साल साबित होने के बाद कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए इस प्रकार के समाधान जरूरी हैं। हालांकि, शोधकर्ताओं ने शोध में आशंका जताते हुए कहा है कि कार्बन जमा करने को लेकर कुछ मॉडल गलत पाए गए हैं।

मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी के नए शोध में पाया गया है कि कुछ वनों को फिर से लगाने के मॉडल की कार्बन हटाने की क्षमता को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है। यह कोई छोटा मोटा कारण नहीं बल्कि तीन गुना अधिक पाया गया है। 2015 में पेरिस समझौते द्वारा देशों के लिए अपने वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री तक सीमित रखने का लक्ष्य अब पार होने के करीब है।

नए शोध में इस बात की भी पहचान की गई है कि कार्बन-कैप्चर मॉडल में इस बात को शामिल नहीं किया गया है कि पेड़ों को काटने के बाद लकड़ी का क्या होता है।

शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, जलवायु संकट बढ़ता जा रहा है, 2023 रिकॉर्ड पर सबसे गर्म साल रहा। जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों को रोकने में प्रकृति-आधारित समाधानों की महत्वपूर्ण भूमिका है, लेकिन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को विश्वसनीय रूप से कम करने के लिए कठोर रूप से मूल्यांकन किए गए तरीके इससे ज्यादा जरूरी नहीं हो सकते। क्योंकि इस तरीके में तेजी से धन शामिल किया जा रहा है, इसलिए यह जरूरी है कि हिसाब सटीक तरीके से लगाया जाए।

शोधकर्ता ने शोध में बताया कि उन्होंने दक्षिण अमेरिका में एक चीड़ के पेड़ों की खेती की जांच की जिसका प्रबंधन काफी गहनता से किया जा रहा था। इससे जुड़े लोग या व्यवसाई ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने या हटाने पर कार्बन क्रेडिट हासिल कर सकते हैं।

उन्होंने पाया कि एक जमीन के मालिक को मिलने वाले कार्बन कम करने की राशि कम से कम 2.76 कारणों से बढ़ा-चढ़ाकर बताई गई है, जो दर्शाता है कि कार्बन में कमी उतनी नहीं होती है जितनी पहले सोची गई थी। 

विशेष रूप से, पेड़ों को काटे जाने के बाद कार्बन को वायुमंडल में वापस लौटने में लगने वाला समय अलग-अलग लकड़ी के उत्पादों के आधार पर अलग-अलग हो सकता है, चाहे वह कागज हो, प्लाईवुड हो या फर्नीचर। इस प्रकार की लकड़ी अलग-अलग दरों पर खराब होती है और क्रेडिट अर्जित करने के लिए कार्बन को एक निश्चित समयावधि के लिए संग्रहीत किया जाना चाहिए।

ग्लोबल फारेस्ट कार्बन में प्रकाशित शोध के अनुसार, जब वनों को ज्यों का त्यों रखा जाता है, तब भी समस्या उत्पन्न हो सकती है, क्योंकि लोग हमेशा वनों को बनाए रखने की लागत और जीवाश्म ईंधन के स्थान पर लकड़ी का उपयोग करने की क्षमता पर विचार नहीं करते हैं।

कार्बन कैप्चरिंग को लेकर शोध से पता चलता है कि इसकी क्षमता उतनी बड़ी नहीं हो सकती जितनी कुछ विश्लेषकों ने दावा किया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मौजूदा अध्ययन पेरिस समझौते के सिद्धांतों के अनुरूप होने में काफी हद तक विफल रहे हैं, लकड़ी और कार्बन दोनों के उत्पादों के रूप में उचित रूप से मानते हैं और इस बात पर विचार करते हैं कि परिणामी लकड़ी के उत्पादों में से प्रत्येक कितने समय तक अपना कार्बन जमा करेगा।

शोध के निष्कर्ष कार्बन भंडारण के लिए अधिक सटीक और विशिष्ट आकलन की आवश्यकता की ओर इशारा करते हैं, विशेष रूप से, लकड़ी के उत्पादों में जमा कार्बन की मात्रा की गणना करना जो वायुमंडल में वापस लौटने से पहले बनी रहेगी।

कार्बन को अलग करने में जंगल एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे और कंपनियों को कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए पुनर्वनीकरण में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जिसमें वित्तीय प्रोत्साहन हासिल करना भी शामिल है।

इसलिए, शोधकर्ता राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों को मजबूत करने और कार्बन कैप्चरिंग के आकलन को संभालने के लिए आवश्यक कार्यक्रम बनाने की भी सिफारिश करते हैं।