जलवायु

दिशा रवि की गिरफ्तारी: गूगल व टेक कंपनियों की भूमिका सवालों के घेरे में

Akshit Sangomla

21 वर्षीय जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि की गिरफ़्तारी में टेक्नोलॉजी क्षेत्र की दिग्गज कंपनी गूगल की भूमिका को लेकर इंटरनेट पर जमकर चर्चा हो रही है, खासतौर से माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर। 

इन चर्चाओं में इस बात को लेकर भी चिंता जाहिर की जा रही है कि सरकार अपने विरोध में उठने वाली आवाजों का दमन करने के लिए गैर-कानूनी तरीके अपना रही है। 

रटगर्स विश्वविद्यालय की मीडिया, कल्चर व फेमिनिस्ट स्टडीज की पत्रकार और अध्यक्ष नाओमी क्लेन ने ट्विटर पर लिखा, "दिल्ली पुलिस ने 21 साल की जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि को सिर्फ इसलिए गिरफ्तार किया कि उसने किसानों का समर्थन करती हुई एक हितकारी टूलकिट में बेहद मामूली बदलाव किए, जिसके लिए पुलिस का अजीब दावा है कि ये किसी गुप्त आतंकी षड़यंत्र का हिस्सा है। संभव है कि दिशा को निशाना बनाने में गूगल ने पुलिस की मदद की होगी।"

इसी ट्वीट के आगे क्लेन ने एएनआई के 15 फरवरी के ट्वीट को कोट किया, जिसमें टूलकिट दस्तावेज से जुड़े दिल्ली पुलिस के सवालों पर गूगल ने जवाब दिए थे। 

रवि को दिल्ली पुलिस ने राजद्रोह और आपराधिक षड़यंत्र रचने के आरोप में 13 फरवरी को गिरफ्तार किया था। उन्हें 5 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा गया है। 

दिल्ली पुलिस का कहना है की दिशा रवि ने नए कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन के बारे में टूलकिट प्लान की, उसमें बदलाव किए और स्वीडन की जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग के साथ उन्हें शेयर किया। 

किसान आंदोलन लगभग तीन महीनों से चल रहा है और इसे हाल ही में गायिका रिहाना और थनबर्ग जैसे अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त लोगों का समर्थन मिला है। 

भारत के कानूनी शोधकर्ता रवि की गिरफ्तारी को लेकर चिंतित हैं, खासतौर से तब जब इस गिरफ्तारी में गूगल और ट्विटर जैसी दिग्गज टेक्नोलॉजी कंपनियां शामिल हैं। 

नाम जाहिर न करने की शर्त पर एक कानूनी शोधकर्ता ने बताया कि,"जानकारी का इस तरीके से उपयोग, जहां मध्यस्थ कंपनी (इस मामले में गूगल) से अपने उपयोगकर्ताओं का डाटा शेयर करने को कहा जा सकता है, इसे सूचना व तकनीक कानून के प्रावधानों व आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत नियंत्रित किया जाता है। इनमें से हर एक प्रावधान कानूनी संरक्षण के साथ आते हैं। उदाहरण के तौर पर इसमें डाटा लेने के लिए लिखित में निवेदन देना होता है।"

कठोर शब्द 

रवि पर लगाए गए दिल्ली पुलिस के आरोप काफी गंभीर हैं। 4 फरवरी को टूलकिट दस्तावेज का संज्ञान लेते हुए दिल्ली पुलिस ने ट्वीट किया था: "इसका उद्देश्य आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और क्षेत्रीय युद्ध को शुरू करना था।"

4 फरवरी को किसान आंदोलन के समर्थन में ग्रेटा थनबर्ग के ट्वीट करने के बाद दिल्ली पुलिस ने टूलकिट दस्तावेज बनाने वालों के खिलाफ मामला दर्ज किया। 

दिशा रवि की गिरफ्तारी के एक दिन बाद, 14 फरवरी को, पुलिस विभाग ने एक ट्वीट करके कहा कि, "रवि ने एक व्हाट्सऐप ग्रुप शुरू किया और टूलकिट दस्तावेज बनाने में सहयोग किया। उन्होंने दस्तावेज बनाने वालों के साथ करीबी से काम किया।"  

दिल्ली पुलिस ने यह भी आरोप लगाया कि टूलकिट बनाने वाले लोगों ने "भारत के खिलाफ असंतोष फैलाने के लिए खालिस्तान समर्थक पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन के साथ मिलकर काम किया।"

दिशा ने 14 फरवरी को पटियाला हाउस कोर्ट में दावा किया कि उन्होंने दस्तावेज कि कुछ लाइन में ही बदलाव किया था। इसके जवाब में दिल्ली पुलिस ने कहा कि उन्होंने जो किया, वो एक नहीं कई बार किया गया था। 

कानूनी याचिका 

शोधकर्ता ने इशारा किया कि ट्विटर और गूगल जैसी ऑनलाइन कंपनियों की जिम्मेदारी है कि वे सिर्फ सूचना के उपयोग के लिए कानूनी अनुरोधों का पालन करें। 

"इसका परिणाम यह होना चाहिए कि सरकार द्वारा किए गए ऐसे अनुरोध, जिसमें उपयोगकर्ताओं की सूचना को गैर-कानूनी ढंग से हासिल किया जाना हो, उन्हें यह कंपनियां खुद नकार दें, जैसा कि अमेरिकी सरकार के बारे में स्नोडेन लीक्स ने खुलासा किया था। 

शोधकर्ता ने अमेरिका स्थित गैर लाभकारी संस्था इलेक्ट्रॉनिक फ्रीडम फ्रंटियर (ईईएफ) की रिपोर्ट 'हू हैस योर बैक' का उदाहरण दिया। यह संस्था डिजिटल प्राइवेसी, बोलने की आजादी और नवोन्मेष से जुड़े मसलों पर काम करती है।

यह रिपोर्ट यह आकलन करती है कि क्या कंपनियों में ऐसी कोई सार्वजनिक नीति है जिसके तहत सूचना प्राप्त करने के लिए कानूनी अनुरोध किया जाना ज़रूरी है और वे अपने उपयोगकर्ताओं के साथ धोखा नहीं कर रही हैं।

भारतीय सन्दर्भ में भी इन कंपनियों को अनुपालन और सार्वजनिक दायित्व के उसी स्तर का प्रदर्शन करना चाहिए। 

हाल ही में ट्विटर की आलोचना की गई थी, जब उसने किसान आंदोलन से जुड़े 500 ट्विटर हैंडल डीएक्टिवेट कर दिए थे। 

शोधकर्ता ने ट्विटर जैसे अन्य प्लेटफॉर्म्स को दोष देते हुए कहा कि इन प्लेटफॉर्म्स ने पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और छात्रों की ट्रोलिंग और उत्पीड़न रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए, जिसके चलते लोग खुद ही अपनी सूचना को सेंसर करने लगे हैं।  

खतरे में आंदोलन 

रवि की गिरफ़्तारी से देश में जलवायु न्याय आंदोलन को भी नुकसान पहुंच सकता है। दिशा रवि, थनबर्ग द्वारा शुरू किए गए वैश्विक जलवायु न्याय आंदोलन फ्राइडे फॉर फ्यूचर, इंडिया के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और उसकी अध्यक्ष भी हैं।

स्वीडन से शुरू हुआ यह आंदोलन 215 देशों के 7800 शहरों में फैल गया है और इससे 1.4 करोड़ लोग जुड़े हैं। 

फ्राइडे फॉर फ्यूचर, इंडिया की वेबसाइट के मुताबिक, "मौजूदा जलवायु संकट और पारिस्थितिकी संकट पर ध्यान देने की हमारी मांगों से केंद्रीय और राज्य की सरकारों को अवगत करने के लिए क्लाइमेट स्ट्राइक हमारा शांतिपूर्ण, अहिंसक तरीका है।"

संस्था का दावा है कि दुनियाभर में अब तक 78,000 स्ट्राइक कार्यक्रम आयोजित किए जा चुके हैं। खुद रवि ने भारत में ऐसी कई स्ट्राइक में हिस्सा लिया है और वे अपने गृहनगर बेंगलुरु में अन्य पर्यावरण सम्बन्धी समूहों में भी सक्रिय हैं।  

स्थानीय आवाजें

रवि की गिरफ्तारी के खिलाफ मणिपुर से नौ वर्षीया जलवायु कार्यकर्ता लिसीप्रिया कांगुजम ने गहरी आपत्ति दर्ज कराई है। उन्होंने कहा कि रवि की गिरफ़्तारी देश की बच्चियों और महिलाओं की आवाज दबाने की एक कोशिश है। उन्होंने यह भी कहा कि वे पृथ्वी के लिए अपनी लड़ाई से नहीं हटेंगी। 

प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया (पीटीआई) के मुताबिक, नोएडा स्थित सोशल एक्शन फॉर फॉरेस्ट एंड एनवायरनमेंट के संस्थापक विक्रांत तोंगड़ ने कहा कि, यह गिरफ़्तारी जलवायु  कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ने का काम करेगी। 

अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संस्था की सचिव कविता कृष्णन ने कहा कि, "हमारा देश फिलहाल लोकतंत्र की तरह काम नहीं कर रहा है। अगर हम विरोध प्रदर्शन को षड़यंत्र रचने की नज़र से देख रहे हैं तो यह लोकतंत्र नहीं है।" 

पीटीआई के मुताबिक, कोएलिशन फॉर एनवायरनमेंट जस्टिस इन इंडिया के बैनर तले देश के 50 से भी ज्यादा शिक्षाविदों, कलाकारों और कार्यकर्ताओं ने संयुक्त बयान देते हुए दिशा रवि के समर्थन में आवाज़ उठाई है और उनकी गिरफ्तारी को निराशाजनक, गैर-कानूनी और केंद्र सरकार की तरफ से अनावश्यक प्रतिक्रिया बताया है।  

बयान में यह भी कहा गया है कि केंद्र सरकार कि नीतियां विभाजनकारी हैं, जिससे "लोगों का असली मुद्दों से ध्यान भटकाया जा सके।"