हिमाचल प्रदेश के कुल्लू-मनाली की घाटियों में आपदा ने एक बार फिर कहर बरपाया। 25 व 26 अगस्त 2025 को अतिवृष्टि से न केवल सैकड़ों गांव प्रभावित हुए हैं, बल्कि 3 राजमार्ग सहित लगभग 700 सड़कें जगह-जगह से टूटने के कारण बंद पड़ी हैं।
प्रदेश का सबसे महत्वपूर्ण कीरतपुर से मनाली फोरलेन राजमार्ग एक दर्जन से अधिक स्थानों पर टूट गया है। वहीं, मनाली–कुल्लू–मंडी फोरलेन राजमार्ग जगह-जगह धंस गया है।
बाहंग के पास कई दुकानें और रेस्टोरेंट ब्यास नदी में समा चुके हैं। मनाली वोल्वो बस स्टैंड के पास का बड़ा हिस्सा नदी में बह गया, जहाँ अब नदी का पानी सीधे सड़क से होकर बह रहा है। चौरी बिहाल में कृषि मार्केटिंग बोर्ड की सब्ज़ी मंडी डूबी हुई है जबकि रायसन, सोलंगनाला और डोहलू नाला टोल प्लाजा के पास भी फोरलेन बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुई है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश की 687 सड़कें अवरुद्ध हैं। अकेले मंडी जिले में 319 और कुल्लू में 131 सड़कें बंद हैं। इसके चलते 5 हजार से वाहन अलग-अलग जगह फंसे हुए हैं।
मंडी से कुल्लू का सफर, जो सामान्यत: एक घंटे में तय होता था, जगह-जगह भूस्खलनों के कारण कई बार 24 घंटे से भी अधिक में पूरा हो रहा है। वाहनों में रुके यात्री बरसात और पहाड़ों पर भूस्खलन के बीच जोखिम उठाकर रातें गुजारने को मजबूर हैं।
स्थानीय लोगों की ओर से उनके लिए लंगर की व्यवस्था की गई है।
छोटे ट्रक और कैब चालकों की स्थिति और खराब है क्योंकि उनके पास न तो सामान छोड़कर जाने का विकल्प है और न ही कई दिनों तक टिके रहने का जखीरा।
इस आपदा से किसानों और व्यापारियों की चिंता भी बढ़ गई है। लाहौल-स्पीति की घाटियों से मटर और गोभी की खेप फँस चुकी है। किसानों का कहना है कि सब्जियां सड़ने का खतरा है।
लेह-लद्दाख तक रसद पहुंचाने की “लाइफ लाइन” भी है। सेना को आपूर्ति और सर्दियों की तैयारी भी इस सड़क से प्रभावित होती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह व्यवधान उत्तर भारत के सामरिक स्तर पर भी चिंता का विषय बन सकता है।
कुल्लू निवासी विश्वनाथ बताते हैं, “बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही। नदी-नाले उफान पर हैं और जगह-जगह सड़कें टूटी हैं, कई गांवों का संपर्क कट चुका है, वाहन सड़कों में फँसे हैं और लोग खुले आसमान के नीचे रात काटने को मजबूर हैं।”
पर्यावरणविद कुलभूषण उपमन्यु का कहना है कि विकास की वर्तमान शैली ही आपदाओं को न्योता दे रही है। उनका कहना है कि सड़कों का निर्माण अवैज्ञानिक तरीक़ों से, बड़ी-बड़ी मशीनरी और लगातार ब्लास्टिंग से किया जा रहा है, जिससे पहाड़ों की आंतरिक संरचना कमजोर हो रही है।
उपमन्यु बताते हैं कि इन परियोजनाओं के लिए हजारों-लाखों पेड़ों की अंधाधुंध कटाई ने पर्यावरणीय असंतुलन को और बढ़ा दिया है। उनके अनुसार यह एक मानव निर्मित आपदा है और इससे निपटने के लिए सरकार और समाज दोनों स्तर पर गंभीरता से पहल करनी होगी।
मौसम विभाग के आंकड़े बताते हैं कि हिमाचल प्रदेश में इस बार सामान्य से 29 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है। 1 जून से 26 अगस्त के बीच छह जिले 1000 मिमी से ज्यादा बारिश पार कर चुके हैं।
मंडी में 1477 मिमी बारिश (62% अधिक), कांगड़ा में 1508 मिमी (13% अधिक), कुल्लू में 761 मिमी (77% अधिक), ऊना में 1282 मिमी (68% अधिक) और सोलन में 1026 मिमी (48% अधिक) बरसात हुई है।
सिर्फ पिछले सप्ताह यानी 19 से 26 अगस्त के बीच कुल्लू में 330 प्रतिशत, बिलासपुर में 307 प्रतिशत और चंबा में 319 प्रतिशत तक अधिक बारिश दर्ज की गई। पिछले 24 घंटों की स्थिति और भी गंभीर रही जब चंबा में 1779 प्रतिशत अधिक, कुल्लू में 1624 प्रतिशत अधिक और लाहौल-स्पीति में 1021 प्रतिशत अधिक बरसात हुई।
मौसम विभाग ने चंबा और कांगड़ा में रेड अलर्ट, मंडी और कुल्लू में ऑरेंज अलर्ट और अन्य जिलों में येलो अलर्ट जारी किया है।
इस बीच, इन आपदाओं का मुद्दा हिमाचल प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र में भी छाया रहा। सत्र के पहले ही दिन विपक्ष ने प्रदेश में लगातार हो रही आपदाओं और जलवायु परिवर्तन को लेकर जोरदार हंगामा किया।
विपक्षी दलों ने सदन की सारी कार्यवाही रोककर केवल आपदाओं पर चर्चा की मांग की और जब सरकार ने तुरंत इस पर व्यापक चर्चा के संकेत नहीं दिए तो विपक्षी विधायक नारेबाज़ी करते हुए सदन से वॉकआउट कर गए।
इसके बाद सदन में इस विषय पर विस्तृत बहस हुई। कई विधायकों ने आरोप लगाया कि राष्ट्रीय राजमार्गों और फोरलेन परियोजनाओं में भारी लापरवाहियां बरती जा रही हैं, जिसके कारण आपदाओं का जोखिम और बढ़ रहा है।
विधायकों ने यह भी सुझाव दिया कि राहत एवं पुनर्वास के लिए आने वाली राशि का एक बड़ा हिस्सा केवल तात्कालिक राहत पर न खर्च हो, बल्कि आपदाओं के कारणों का गहन वैज्ञानिक अध्ययन कराने और भविष्य की नीतियाँ बनाने पर भी लगाया जाए। उनका मानना था कि यदि वैज्ञानिक ढंग से कारण और कमज़ोरी की पहचान होगी तभी दीर्घकालिक समाधान निकल सकेगा।