स्वस्थ रहने के लिए किस खाद्य पदार्थ को कितनी मात्रा में खाना चाहिए, इस बारे में उस देश के आहार संबंधी दिशानिर्देशों से पता चलता है। पर क्या वो दिशानिर्देश स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी उतने ही फायदेमंद हैं। इसे समझने के लिए अमेरिका के तुलाने विश्वविद्यालय द्वारा दुनिया के सात देशों के आहार संबंधी दिशानिर्देशों, भोजन की खपत सम्बन्धी पैटर्न और उनसे होने वाले ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है जोकि न्यूट्रिशनल जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इस शोध में भारत के साथ-साथ जर्मनी, नीदरलैंड, ओमान, थाईलैंड, उरुग्वे और अमेरिका के आहार सम्बन्धी दिशानिर्देशों को शामिल किया गया है।
भारत द्वारा आहार के लिए जो दिशानिर्देश जारी किए हैं, उनके अनुसार एक आम भारतीय का कार्बन फुटप्रिंट सबसे कम होगा, जबकि यदि एक अमेरिकी नागरिक अपने देश द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार भोजन करता है तो उसका कार्बन फुटप्रिंट सबसे ज्यादा होगा। शोध के अनुसार यदि भारतीय आहार दिशानिर्देशों के अनुसार भोजन लिया जाए तो उससे प्रतिदिन करीब 0.86 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर उत्सर्जन होगा। वहीं इसके विपरीत अमेरिकी गाइडलाइन के चलते प्रति दिन 3.83 किलोग्राम सीओ2 जितना उत्सर्जन हो सकता है, जोकि भारतीय आहार दिशानिर्देशों के अंतर्गत होने वाले उत्सर्जन से करीब 345 फीसदी ज्यादा है।
शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन में छह प्रमुख खाद्य समूहों के कार्बन फुटप्रिंट का विश्लेषण किया है। इसमें प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ, डेयरी, अनाज, फल, सब्जियों और तेल एवं वसा की खपत के लिए जारी दिशानिर्देशों को शामिल किया गया है। गौरतलब है कि दुनिया के ज्यादातर देश अपने नागरिकों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर उनके लिए आहार सम्बन्धी दिशानिर्देशों को जारी करते हैं। यदि वहां रहने वाले लोग अपने देश की सिफारिशों का पालन करते हैं, तो उनसे होने वाले उत्सर्जन में काफी विभिन्नता देखी जा सकती है।
इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डिएगो रोज के अनुसार पिछले शोधों से पता चला है कि अगर जनता सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार भोजन लेती है तो वो स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद होगा और उनका कार्बन फुटप्रिंट भी कम होगा। लेकिन यह अवधारणा अमेरिका के बारे में सही नहीं है। यदि वहां के लोग सरकारी सिफारिशों का पालन करते है तो उससे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन और बढ़ेगा। उनके अनुसार इसी वजह ने उन्हें इसके बारे में और जानने के लिए प्रेरित किया था।
भारत की तुलना में अमेरिकी आहार दिशानिर्देशों से होगा 345 फीसदी ज्यादा उत्सर्जन
शोध के अनुसार भारत के आहार संबंधी दिशानिर्देशों का कार्बन फुटप्रिंट तुलनात्मक रूप से अन्य देशों के मुकाबले कम था। इन दिशानिर्देशों के अनुसार भोजन लेने से प्रतिदिन तकरीबन 0.86 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर उत्सर्जन होता है। वहीं इसके विपरीत अमेरिकी गाइडलाइन के चलते प्रति दिन 3.83 किलोग्राम सीओ2 जितना उत्सर्जन हो सकता है, जोकि भारतीय दिशानिर्देशों से करीब 345 फीसदी ज्यादा है। वहीं नीदरलैंड द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार प्रति दिन 2.86 किलोग्राम सीओ 2 के बराबर उत्सर्जन होगा, जोकि अमेरिका के मुकाबले 1.2 गुना कम है।
इसी तरह जर्मनी द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अंतर्गत प्रतिदिन करीब 2.25 किलोग्राम सीओ 2 के बराबर उत्सर्जन होगा। हालांकि अमेरिका द्वारा शाकाहारी आहार के लिए जो दिशानिर्देश जारी किए गए हैं उनके अंतर्गत ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करीब 1.80 किलोग्राम सीओ 2 प्रतिदिन के बराबर होगा, जोकि अभी भी भारतीय दिशानिर्देशों की तुलना में अभी भी दोगुने से ज्यादा है। जिसके पीछे की सबसे बड़ी वजह अमेरिका में उच्च मात्रा में प्रोटीन लेने की सलाह है।
क्या है इसके पीछे की वजह
शोधकर्ताओं ने इसके लिए मुख्य रूप से अलग-अलग देशों में प्रोटीन और डेयरी खाद्य पदार्थों की अलग-अलग अनुशंसित मात्रा को माना है। उदाहरण के लिए ओमान में जहां 118 मिली प्रतिदिन डेयरी खाद्य पदार्थों को लेने की सलाह दी है, जिससे करीब 0.17 किलोग्राम सीओ 2 के बराबर उत्सर्जन होता है जबकि उसके विपरीत अमेरिका में 710 मिली प्रतिदिन लेने की सलाह दी है, जिससे करीब 1.10 किलोग्राम सीओ 2 के बराबर उत्सर्जन होता है।
वहीं यदि प्रोटीन के लिए जारी दिशानिर्देशों को देखें तो भारत में 75 ग्राम प्रति दिन प्रोटीन लेने की सलाह दी है जिससे करीब 0.03 किलोग्राम सीओ 2 के बराबर उत्सर्जन होता है जबकि इसके विपरीत अमेरिका में 156 ग्राम प्रति दिन प्रोटीन लेने की सलाह दी है जो कि 1.84 किलोग्राम सीओ2 के बराबर उत्सर्जन करता है।
शोध के अनुसार इसके साथ ही यह इस बात पर निर्भर करता है कि किस खाद्य समूह में किन खाद्य पदार्थों को शामिल किया गया है। उदाहरण के लिए प्रोटीन को देखें तो जर्मनी और उरुगुए ने इसके अंतर्गत केवल जानवरों से प्राप्त होने वाले प्रोटीन को शामिल किया है, जबकि अमेरिका ने इसके अंतर्गत जानवर और पेड़ पौधों से प्राप्त होने वाले प्रोटीन को रखा है। वहीं भारत ने इसमें केवल पौधों से प्राप्त होने वाले प्रोटीन को शामिल किया है।
हालांकि शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन के बारे में यह भी कहा है कि यह केवल आहार और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के बारे में ही बात करता है। इसमें अन्य पर्यावरणीय प्रभावों जैसे भूमि और पानी के उपयोग की बात नहीं की गई है। आहार के पड़ने वाले सम्पूर्ण प्रभाव को समझने के लिए उन्हें भी ध्यान में रखना जरुरी है। साथ ही इसमें केवल सात देशों की ही बात की गई है, इसलिए इसे सम्पूर्ण विश्व के परिप्रेक्ष्य में नहीं देख सकते। लेकिन इतना तो जरूर है कि यह निष्कर्ष भविष्य में आहार सम्बन्धी दिशानिर्देशों को तय करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। जिसमें स्वास्थ के साथ-साथ पर्यावरण को भी ध्यान में रखकर बेहतर विकल्पों को चुना जा सकता है।