जलवायु

जलवायु रोकथाम के लिए अपने योगदान को बढ़ा चढ़ा कर पेश कर रहे हैं अमीर देश

दुनिया भर के तमाम विकसित देशों और संस्थानों ने 146,000 करोड़ रुपए को गलत तरीके से क्लाइमेट अडॉप्टेशन फण्ड का हिस्सा बताया है, जबकि उनका जलवायु अनुकूलन से कोई वास्ता नहीं था

Lalit Maurya

दुनियाभर के तमाम विकसित देशों ने अपने द्वारा जलवायु की रोकथाम के लिए दी जा रही मदद को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया है| इसके चलते जलवायु सम्बन्धी खतरों से निपटने के लिए करीब 146,000 करोड़ रुपए (2,000 करोड़ डॉलर) कम पड़ जाएंगे| यह जानकारी केयर इंटरनेशनल द्वारा आज जरिए रिपोर्ट क्लाइमेट अडॉप्टेशन फाइनेंस: फैक्ट और फिक्शन में सामने आई है| रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि कई जलवायु अनुकूलन परियोजनाओं में लिंग और गरीबी को शामिल करना केवल एक दिखावा है|

गौरतलब है कि 2015 में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पैरिस समझौता हुआ था| जिसमें क्लाइमेट मिटिगेशन और अडॉप्टेशन पर समान रूप से जोर देने की बात कही गई थी| इसी के चलते विकसित देशों ने 2020 तक हर साल जलवायु अनुकूलन के लिए 365,022 करोड़ रुपए (5,000 करोड़ डॉलर) जुटाने का वादा किया था| लेकिन ओईसीडी द्वारा जारी आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि 2018 में जलवायु अनुकूलन के लिए 122,648 करोड़ रुपए (1,680 करोड़ डॉलर) का भुगतान किया था, पर केयर इंटरनेशनल द्वारा जारी रिपोर्ट से पता चला है कि वास्तव में यह आंकड़ें इससे काफी कम थे| अनुमान है कि 2018 में केवल 70,814 करोड़ रुपए (970 करोड़ डॉलर) जुटाए गए थे| 

इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता जॉन नोर्डबो ने बताया कि “दुनिया का सबसे गरीब तबका जलवायु परिवर्तन का जिम्मेवार न होते हुए भी इसका सबसे ज्यादा परिणाम भुगत रहा है| न केवल समृद्ध देश बल्कि ग्लोबल साउथ के भी कई देश जलवायु अनुकूलन की दिशा में योगदान करने में विफल रहे हैं| इसके बावजूद वो ऐसा दिखा रहा हैं कि वो इस फण्ड में अपनी क्षमता से ज्यादा दे रहे हैं| यह सचमुच शर्मनाक है| इस अन्याय को जल्द दूर किया जाना चाहिए| इस बाबत उनके द्वारा एक वास्तविक योजना प्रस्तुत करनी चाहिए, जिसमें वास्तविक रूप से धन दिया जाए| जिससे उन्हें इसे दिखाने के लिए रिपोर्टिंग ट्रिक की मदद न लेनी पड़े|”

इसे समझने के लिए केयर इंटरनेशनल ने घाना, युगांडा, इथियोपिया, नेपाल, वियतनाम और फिलीपींस में अन्य सामाजिक संस्थानों की मदद ली है, और 112 परियोजनाओं का आंकलन किया है| जोकि 2013-17 के बीच अनुकूलन के लिए किए गए कुल योगदान के 13 फीसदी हिस्से को दर्शाते हैं| इससे पता चला है कि इन परियोजनाओं में अनुकूलन सम्बन्धी योगदान को 42 फीसदी बढ़ा कर दिखाया गया है| यदि इस आधार पर देखें तो इस अवधि में करीब 146,000 करोड़ रुपए (2,000 करोड़ डॉलर) से अधिक की धनराशि को अडॉप्टेशन फण्ड के अंतर्गत बढ़ा कर दिखाया गया है|

वर्ल्ड बैंक ने भी की है 6,074 करोड़ रुपए की गलत रिपोर्टिंग

रिपोर्ट के अनुसार क्लाइमेट फाइनेंस के रूप में दी गई बड़ी राशि का जलवायु अनुकूलन से कोई वास्ता नहीं था, लेकिन इसके बावजूद उसे अडॉप्टेशन फण्ड का हिस्सा दिखाया गया है| ऐसा करने वाले देशों और संस्थानों में जापान सबसे ऊपर है, जिसने 9,490 करोड़ रुपए (130 करोड़ डॉलर) को गलत तरीके से जलवायु अनुकूलन फण्ड का हिस्सा बताया है| उदाहरण के लिए वियतनाम में बने नहट-तन मैत्री पुल और उत्तर-दक्षिण एक्सप्रेसवे का अनुकूलन से कोई लेना देना नहीं है इसके बावजूद इसपर खर्च किए गए 3,154 करोड़ रुपए (43.2 करोड़ डॉलर) को इस फण्ड का हिस्सा बताया गया था|

इसी तरह से फ्रांस ने भी गलत तरीके से 760 करोड़ रुपए (10.4 करोड़ डॉलर) की धनराशि को अनुकूलन फण्ड का हिस्सा बताया है| इसी तरह गलत रिपोर्टिंग करने वालों में वर्ल्ड बैंक का नाम प्रमुख है, जिसने कुल मिलकर 6,074 करोड़ रुपए (83.2 करोड़ डॉलर) को जबरदस्ती अडॉप्टेशन फण्ड का हिस्सा बताया था| उदाहरण के लिए उसने नेपाल में भूकंप आवास पुनर्निर्माण परियोजना पर 2,395 करोड़ रुपए खर्च किए थे| हालांकि भूकंप जलवायु से जुड़ी घटना नहीं है उसके बावजूद इस परियोजना पर खर्च की गई राशि के 86 फीसदी बजट को अडॉप्टेशन फण्ड के रूप में दर्शाया गया था|

रिपोर्ट के अनुसार इन देशों में जलवायु अनुकूलन से जुड़ी परियोजनाओं में लैंगिक समानता पर भी ध्यान नहीं दिया गया है| इसके साथ ही इन परियोजनाओं में समाज के गरीब तबके को भी नजरअंदाज किया गया था| यह बात विशेष रूप से बुनियादी ढांचे और बाजार-आधारित परियोजनाओं के लिए सच साबित होती है जिसमें अक्सर इस फण्ड को ऋण के रूप में दिया गया है| यदि घाना और इथियोपिया को देखें तो इनमें घाना में 28 और इथियोपिया में 50 फीसदी वित्त, ऋण के रूप में दिया गया था|

इस अध्य्यन से जुड़े शोधकर्ता बार्ट वीज की मानें तो यह आंकड़ें केवल नंबर मात्रा ही नहीं हैं| यह उन लाखों लोगों से जुड़ा मुद्दा है जिनका जीवन जलवायु परिवर्तन के कारण खतरे में है| यह लोगों के विश्वास से जुड़ा मामला है| यदि हम सब मिल जाएं तो 365,022 करोड़ रुपए (5,000 करोड़ डॉलर) की धनराशि कोई बड़ी चीज नहीं है| 

1 डॉलर = 73 भारतीय रुपए