बीमा उद्योग के लिए संभाव्यता (प्रॉबिबिलिटी) का सिद्धांत व्यवसायिक रूप से महत्वपूर्ण है। बीमाकर्ता जोखिमों का मूल्यांकन करने और उनका आकलन करने के लिए “संभावना” कारक का प्रयोग करता है और प्रीमियम को ऐसी दर पर निर्धारित करता है जिससे दावों का भुगतान करने के बाद भी उसे लाभ प्राप्त हो।
जब व्यक्ति या व्यवसाय बड़ी संख्या में बीमा पॉलिसी लेते हैं तो जोखिम उन सबमें बराबर बंट जाता है जिससे बीमा प्रीमियम वहनीय हो जाता है। लेकिन तब क्या होता है जब “संभावना” अपना अर्थ खो देती है या फिर “किसी चीज के होने की कितनी संभावना है” से बढ़कर हालात “सबसे अधिक संभावना” तक पहुंच जाएं? ऐसे में बीमा का व्यवसाय ध्वस्त हो जाता है। भुगतान में हुए भारी खर्चे के कारण बीमाकर्ता प्रीमियम बढ़ा देते हैं। यह व्यक्तियों और व्यवसायों के लिए बीमा को कम वहनीय तो बनाता ही है, साथ ही उन्हें पॉलिसी खरीदने से भी हतोत्साहित करता है। लगातार घाटे के बाद बीमाकर्ता भी व्यवसाय छोड़ देते हैं। वर्तमान में बीमा उद्योग में एक नए जोखिम पैटर्न के कारण इसी तरह की मंदी का अनुभव किया जा रहा है। संभाव्यता के खेल को फिर से परिभाषित करने वाला यह जोखिम है जलवायु परिवर्तन।
तेजी से गर्म होती दुनिया में तूफान, चक्रवात, बाढ़ और जंगल की आग जैसी चरम मौसम की घटनाएं न केवल लगातार और भयंकर बल्कि अत्यधिक हानिकारक भी होती जा रही हैं। किसी क्षेत्र में आपदा की आशंका अब पहले की तरह दशकों में एक बार नहीं बल्कि सालाना हो चुकी है। इसने उन बीमा कंपनियों को प्रभावित किया है जो मौसम संबंधी घटनाओं से होने वाले नुकसान के लिए कवरेज या वित्तीय सुरक्षा प्रदान करती हैं। यहां यह तर्क भी दिया जा सकता है कि बीमा जलवायु परिवर्तन का अपरंपरागत “टिपिंग पॉइंट” है। अमेरिका स्थित बीमा कंज्यूमर एडवोकेसी ग्रुप यूनाइटेड पॉलिसी होल्डर्स की कार्यकारी निदेशक एमी बाख कहती हैं, “जलवायु परिवर्तन की वास्तविकता हमारे सामने है और असुविधाजनक सच्चाई यह है कि यह केवल एक वैचारिक और राजनीतिक बहस नहीं है। इसका प्रभाव सब पर पड़ रहा है और बीमा उद्योग उन जगहों में से एक है जहां हम दर्द महसूस करना शुरू कर रहे हैं।” इस साल जनवरी में अमेरिका के कैलिफोर्निया के लॉस एंजलिस काउंटी में लगी जंगल की आग बदलती जलवायु में बीमा संकट की दुखद छवि प्रस्तुत करती है।
कैलिफोर्निया के बाजार में 80 प्रतिशत का योगदान देने वाली बारह महत्वपूर्ण बीमा कंपनियों ने नई पॉलिसी जारी करने से मना या उन्हें प्रतिबंधित कर दिया है
7 जनवरी से लेकर तीन सप्ताह से अधिक समय तक लॉस लॉस एंजलिस और उसके आसपास के इलाकों में कई जंगल भीषण आग का शिकार हो गए जिसमें 23,000 हेक्टेयर जमीन पर आग ने अपना तांडव दिखाया और इससे कम से कम 29 लोग मारे गए। इस आपदा में 16,000 संरचनाएं नष्ट हो गईं जिनमें घर, कार्यालय, दुकानें और सार्वजनिक स्थल भी शामिल थे। यही नहीं कई हजार निवासियों को विस्थापित होना पड़ा। हालांकि तटीय दक्षिणी कैलिफोर्निया में विनाशकारी जंगल की आग कोई अभूतपूर्व घटना नहीं है लेकिन जनवरी की आग दुर्लभता और गंभीरता दोनों के मामले में एक अपवाद रही।
तटीय दक्षिणी कैलिफोर्निया में जंगल की आग का मौसम आमतौर पर शुष्क जून के महीने से शुरू होता है और अक्टूबर तक जारी रहता है। जनवरी से मार्च तक का समय बरसाती और ठंडा होता है इसलिए यह अवधि आग के लिए अनुकूल नहीं होती। हालांकि इस साल वैश्विक शोध संस्था वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट के एक विश्लेषण से पता चलता है कि 7 से 22 जनवरी के बीच लॉस एंजलिस में 200 से अधिक आग की चेतावनियां पाई गईं जो 2012-2024 के दौरान वर्ष के पहले चार हफ्तों के औसत से 130 गुना अधिक हैं। वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन (डब्ल्यूडब्ल्यूए) एक अकादमिक सहयोग समूह है जो चरम मौसम की घटनाओं पर जलवायु परिवर्तन के संभावित प्रभाव का विश्लेषण करता है। उनका अनुमान है कि मानव प्रेरित जलवायु परिवर्तन ने गर्म, शुष्क और तेज हवा वाली परिस्थितियों को बढ़ावा दिया जिससे लॉस एंजलिस में आग लगने की संभावना लगभग 35 प्रतिशत बढ़ गई।
हालांकि नुकसान की भयावहता का निर्धारण करना अभी जल्दबाजी होगी लेकिन न्यूयॉर्क स्थित उद्योग संघ इंश्योरेंस इंफॉर्मेशन इंस्टीट्यूट का अनुमान है कि लॉस एंजलिस के जंगल की आग वैश्विक इतिहास की 10 सबसे महंगी प्राकृतिक आपदाओं में शुमार है।
14 जनवरी को जब दक्षिणी कैलिफोर्निया में आग अभी भड़क ही रही थी तब निजी पूर्वानुमानकर्ता एक्यूवेदर ने अनुमान लगाया था कि विध्वंस और आर्थिक नुकसान 250 बिलियन डॉलर से 275 बिलियन डॉलर के बीच होगा जो पूरे 2020 के जंगल की आग के मौसम के आंकड़ों को पार कर गया। रिस्क मॉडलिंग कंपनी कोरलॉजिक ने कहा कि अनुमानित बीमित नुकसान (बीमा द्वारा कवर की गई घटना के कारण होने वाली वित्तीय क्षति) 35 बिलियन से 45 बिलियन डॉलर के बीच होने का अनुमान है। जल्द ही इस क्षेत्र की प्रमुख बीमा कंपनियों के शेयरों में गिरावट आई जिससे पिछले कई वर्षों से चल रहा संकट सबके सामने आ गया है। तथ्य यह है कि लॉस एंजलिस में जंगल की आग तब भड़की जब कैलिफोर्निया के अधिकारी बीमा कंपनियों को राज्य से अपना व्यवसाय समेटकर जाने से रोकने की कोशिश कर रहे थे।
वायु प्रदूषण को कम करने के लिए काम करने वाले कैलिफोर्निया एयर रिसोर्सेज बोर्ड के अनुसार, “1950 से कैलिफोर्निया में हर साल जंगल की आग से जलने वाले क्षेत्र में वृद्धि हो रही है क्योंकि वसंत और गर्मियों के तापमान में वृद्धि हुई है और वसंत में बर्फ जल्दी पिघल रही है।” कैलिफोर्निया के इतिहास की 20 सबसे बड़ी आगों में से आठ 2017-2020 के दौरान लगी थीं। बीमित नुकसान के आधार पर देखें तो दुनिया की 10 सबसे महंगी जंगल की सभी आग अमेरिका में लगी हैं जहां नियमित जंगल की आग ने हाउसिंग बीमा कंपनियों के लिए जोखिम के परिदृश्य को बदलकर रख दिया है। वहीं गृह स्वामियों के दावों में हुई वृद्धि ने बीमा कंपनियों के मुनाफे को लगभग खत्म ही कर दिया है। इससे कैलिफोर्निया और पूरे अमेरिका में इन कंपनियों की स्थिति खराब हो गई है।
इसके फलस्वरूप बीमा कंपनियों ने कैलिफोर्निया से पलायन शुरू कर दिया है। कम से कम एक दर्जन प्रमुख बीमाकर्ता जो बाजार के 80 प्रतिशत हिस्से पर स्वामित्व रखते हैं, या तो बीमा उद्योग से बाहर निकल गए हैं या फिर उन्होंने नई नीतियों के जारी करने पर प्रतिबंध लगा दिया है।
कैलिफोर्निया बीमा विभाग के आंकड़े दिखाते हैं कि 2020 और 2022 के बीच बीमा कंपनियों ने राज्य में 2.8 मिलियन “होम ओनर” पॉलिसी को नवीनीकृत करने से इनकार कर दिया। लॉस एंजिल्स काउंटी के 5,31,000 मामले इसमें शामिल हैं। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, राज्य के सबसे बड़े संपत्ति और ऑटो बीमा प्रदाताओं में से एक स्टेट फार्म ने जुलाई 2024 में लगभग 1,600 पॉलिसी को रद्द कर दिया। न्यूयॉर्क टाइम्स की दिसंबर 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, 18 अमेरिकी राज्य इसी तरह के बीमा संकट का सामना कर रहे हैं और उन राज्यों में 1.9 मिलियन गृह बीमा पॉलिसी वर्ष 2018 से ही नवीनीकृत नहीं हुई हैं।
बीमाकर्ता इस पलायन के लिए प्राकृतिक आपदाओं के साथ-साथ पुनर्बीमा की बढ़ती लागतों को जिम्मेदार बताते हैं। वैसे क्षेत्रों में जहां प्राकृतिक आपदाओं का उच्च जोखिम है, वहां अपने कुल नुकसान और संभावित दुर्घटना से बचने के लिए बीमा कंपनियां अपने उत्पादों और होने वाले नुकसान का भी पुनर्बीमा करती हैं। ऐसा वे स्विस रे और म्यूनिख रे जैसी पुनर्बीमा कंपनियों के माध्यम से करते हैं। बीमाकर्ताओं के लिए ऐसे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में कवरेज लेने का दूसरा तरीका प्रीमियम लागत में वृद्धि करना है। अमेरिका में गृह बीमा के प्रीमियम अभूतपूर्व दर से बढ़ रहे हैं। जलवायु जोखिम वित्तीय मॉडलिंग एजेंसी फर्स्ट स्ट्रीट के अनुसार, 2000-2013 के दौरान बीमा लागत गृह ऋण का केवल 8 प्रतिशत तक थी। 2022 तक यह बढ़कर 22 प्रतिशत हो गई थी।
हालांकि कैलिफोर्निया के बीमा आयुक्त रिकार्डो लारा ने बीमा कंपनियों द्वारा सभी पॉलिसी गैर-नवीनीकरण और रद्दीकरण को एक साल के लिए निलंबित करने के लिए अपनी स्थगन शक्तियों का इस्तेमाल किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जंगल की आग से बचे लोग अपने घरों का पुनर्निर्माण कर सकें। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यह नुकसान कैलिफोर्निया के नाजुक बीमा बाजार को प्रभावित कर सकता है। कैलिफोर्निया के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में जलवायु और ऊर्जा विषय के वरिष्ठ शोधकर्ता एवं विशेषज्ञ माइकल वारा ने चेतावनी देते हुए कहा, “आग से होने वाले नुकसान कैलिफोर्निया में बीमा बाजारों को विध्वंस के कगार पर पहुंचा सकते हैं।” माइकल लॉस एंजलिस के एक समृद्ध इलाके पेसिफिक पैलिसेड्स में रहते हैं जहां इस बार जंगल की आग ने विध्वंस मचाया है।
इस घटना के संभावित परिणाम सर्वव्यापी हैं। पत्रकारिता सहयोग समूह कवरिंग क्लाइमेट नाउ के कार्यकारी निदेशक मार्क हर्ट्सगार्ड कहते हैं, “जिस संपत्ति का बीमा नहीं किया जा सकता उसे किश्तों पर खरीदा अथवा बेचा नहीं जा सकता। ऐसी संपत्ति को बिना कीमत कम किए बेचना लगभग असंभव है और चूंकि घर अमेरिका में अधिकांश परिवारों के लिए सबसे बड़ी संपत्ति है इसलिए उनके पुनर्विक्रय मूल्य में कटौती से आवास बाजार में गिरावट आ सकती है।” वह आगे कहते हैं, “यह उभरते जलवायु बीमा बबल वैश्विक वित्तीय प्रणाली को खतरे में डालने वाले नॉक-ऑन प्रभावों को ट्रिगर कर सकते हैं। ठीक वैसे ही जैसे दुनिया के विभिन्न हिस्सों में हुए हाउसिंग मार्किट क्रैश ने 2008 में वैश्विक अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर दिया था।”
बढ़ते प्रीमियम और निजी बीमा कंपनियों के पलायन के कारण कैलिफोर्निया में घर के मालिक अब फेयर प्लान (फेयर एक्सेस टु इंश्योरेंस रिक्वायरमेंट्स) का विकल्प चुन रहे हैं। यह संपत्तियों के लिए राज्य समर्थित एक बुनियादी बीमा कार्यक्रम है जिसे अंतिम उपाय के तौर पर देखा जाता है। फेयर प्लान कैलिफोर्निया के वैसे निवासियों और व्यवसायों के लिए एक सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करता है जो पारंपरिक प्रदाताओं के माध्यम से बीमा की सुविधा प्राप्त नहीं कर सकते। 2024 तक इस इलाके के 9,000 घरों में से लगभग 1,400 इस योजना के अंतर्गत बीमाकृत थे जो 2020 की संख्या से चार गुना अधिक हैं। 2019 के बाद से राज्य में फेयर योजना की मांग में 164 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और यह संख्या जून 2024 तक लगभग आधा मिलियन पॉलिसी धारकों तक पहुंच गई है। हालांकि कैलिफोर्निया फेयर योजना के अंतर्गत प्राकृतिक आपदाओं से हुए भुगतान को प्रति आवासीय पॉलिसीधारक 3 मिलियन डॉलर तक सीमित किया गया है जिससे नुकसान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बिना बीमा कवरेज के रह जाता है।
गृहस्वामियों के लिए फेयर प्लान का विकल्प भी अव्यवहारिक होता जा रहा है। कई राज्यों में फेयर प्लान के पास अब इन जोखिमों को खरीदने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं हैं। कैलिफोर्निया में फेयर प्लान के अपने नकद भंडार में केवल 700 मिलियन डॉलर बचे हैं। जैसे-जैसे फेयर प्लान बनाने वाली कंपनियां बर्बाद होंगी, वैसे-वैसे यह दबाव अंततः अमेरिकी करदाताओं पर पड़ता जाएगा।
दिसंबर 2024 में जारी अमेरिकी सीनेट बजट समिति की “स्टाफ रिपोर्ट” इस चिंता को दर्शाती है। इस समिति ने 2018-2023 के दौरान गृहस्वामियों के बीमा संबंधित आंकड़ों का विश्लेषण किया और जिन कंपनियों ने इसके विचार-विमर्श में हिस्सा लिया वे हाउसिंग बीमा बाजार का 65 प्रतिशत हिस्सा हैं।
इसके निष्कर्ष में कहा गया है, “जलवायु से संबंधित चरम मौसम की घटनाएं बढ़ेंगी और उनका प्रभाव हिंसक होता जाएगा जिसके परिणामस्वरूप बीमा में कमी आएगी और प्रीमियम में वृद्धि होगी। यह अनुमान लगाया गया है कि इससे उन समुदायों में संपत्ति के मूल्यों में भारी गिरावट आएगी जहां बीमा मिलना लगभग असंभव या बहुत महंगा हो जाएगा। इसके फलस्वरूप संपत्ति के मूल्यों में गिरावट आएगी जिससे 2008 की तरह बड़े पैमाने पर वित्तीय संकट पैदा होने की संभावना है।” एसएंडपी ग्लोबल की “सी दी बिग पिक्चर: थीम्स शेपिंग 2025” रिपोर्ट कहती है, “फ्लोरिडा में हाउसिंग बीमा की उच्च लागत के कारण यहां के कुछ निवासी उत्तरी कैरोलिना जैसे “जलवायु के लिए स्वर्ग कहे जाने वाले इलाके में” चले गए। उन्होंने यह सोचा था कि तट से दूर पहाड़ी इलाकों में उन्हें तूफान और अन्य गंभीर मौसम की घटनाओं का खतरा नहीं रहेगा।” यकीनन यह उच्च बीमा लागतों से प्रेरित पहला मानव विस्थापन हो सकता है और इसकी जड़ में निश्चित रूप से जलवायु परिवर्तन है।
द्वितीयक आपदाओं से होने वाले नुकसान प्राथमिक घटनाओं जैेसे चक्रवात इत्यादि से होेने वाले नुकसान से अधिक हो गए हैं। यह एक चिंताजनक स्थिति है
दुनिया की सबसे बड़ी पुनर्बीमा कंपनियों में से एक स्विस रे के अनुसार, पिछले 30 वर्षों में बीमित घाटे में 5-7 प्रतिशत की वार्षिक दर से वृद्धि हुई है जो 2017 और 2022 के बीच औसतन 110 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष है। बार्कलेज इन्वेस्टमेंट बैंक ने चेतावनी दी है कि 2030 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि के मद्देनजर बीमित प्राकृतिक आपदा से होने वाले नुकसान में 68 प्रतिशत की वृद्धि होगी। इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि “द्वितीयक खतरों” से होने वाले नुकसान (छोटे से मध्यम आकार की घटनाएं) अथवा प्राथमिक खतरे के बाद होने वाले द्वितीयक प्रभाव, यह दोनों ही प्राथमिक घटनाओं जैसे कि तूफान या चक्रवात से होने वाले नुकसान से आगे निकल गए हैं।
लेज इन्वेस्टमेंट बैंक के एक आकलन के अनुसार, “2020 में 70 प्रतिशत आर्थिक नुकसान” चरम मौसम की घटनाओं से होने वाले द्वितीयक नुकसान के फलस्वरूप हुआ है। अलग-अलग घटनाओं की लागत अपेक्षाकृत कम हो सकती है लेकिन इनसे 2010 से 2020 तक कुल मिलाकर 450 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है जो पिछले दशक से दोगुना से भी अधिक है। यह प्रवृत्ति चिंताजनक है क्योंकि द्वितीयक खतरों को प्राथमिक खतरों की तुलना में कम सुसंगत और व्यवस्थित रूप से मॉडल किया जाता है और संभव है कि उनके जोखिम का कमतर आकलन किया जाए।
वर्ल्ड इकनोमिक फोरम ने 17 जनवरी को प्रकाशित श्वेत पत्र “इंस्योरिंग अगेंस्ट एक्सट्रीम हीट: नेविगेटिंग रिस्क्स इन अ वार्मिंग वर्ल्ड” में कहा है कि अगले दशक में अत्यधिक गर्मी से सबसे अधिक नुकसान होगा। 2035 तक वार्षिक उत्पादकता में 2.4 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान संभावित है और सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध कंपनियों की भूमि, मशीनरी और उपकरण जैसी अचल संपत्तियों को 445 बिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ेगा।
विकासशील देशों में जोखिम परिदृश्य विशेष रूप से बढ़ रहा है और इसका कारण है ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में पलायन। संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में रहने वाली वैश्विक आबादी का हिस्सा 1950 के दशक के 30 प्रतिशत से बढ़कर अब 50 प्रतिशत से अधिक हो गया है। 2050 तक वैश्विक आबादी का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा शहरी केंद्रों में निवास करेगा। ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की तरफ जाने वाली आबादी उस वर्तमान आबादी में जुड़ती जाती है जिस पर चरम मौसम की घटनाओं का सर्वाधिक खतरा है।
स्विस रे के मोहित पांडे “दी स्टेट ऑफ रीइंश्योरेंस प्रॉपर्टी कैटस्ट्रोफी मार्केट” नामक अपने लेख में लिखते हैं, “यह दुनियाभर में 33 मेगा-शहरों के विकास से स्पष्ट होता है, जिनमें से 26 विकासशील देशों में हैं जबकि 2030 तक बनने वाले 10 मेगा शहरों में से नौ विकासशील देशों में होंगे। अपने विशाल आकार के अलावा अधिकांश मेगा शहर जलमार्गों, तटीय या नदी के किनारे के शहरों के ऐतिहासिक केंद्र के आसपास विकसित होते हैं जहां हवा, तूफान और नदी की बाढ़ के जोखिम के कारक मौजूद हैं।”
अमेरिका की नॉर्थ ईस्टर्न यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान और सार्वजनिक नीति के प्रोफेसर डैनियल एल्ड्रिच मार्केटप्लेस डॉट ओआरजी पर एक पॉडकास्ट में कहते हैं, “हमारे पास अभी जो भी बीमा कंपनियां हैं, उनमें से अधिकांश “शांति काल” के दौरान बनाई गई थीं। तब जलवायु परिवर्तन के परिणाम स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहे थे।” अब चूंकि बीमा कंपनियों के लिए जोखिम परिदृश्य पूरी तरह से बदल गया है इसलिए उनकी आगे की राह स्पष्ट नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका के लुइसियाना और फ्लोरिडा में दो दर्जन बीमा कंपनियों के दिवालिया होने की खबरें आई हैं। ब्रिटेन के बीमा नियामक प्रूडेंशियल रेगुलेटरी अथॉरिटी ने अधिक वित्तीय लचीलापन हासिल करने हेतु बीमा कंपनियों के तनाव परीक्षणों में जलवायु जोखिम को भी शामिल कर लिया है।
हर्ट्सगार्ड कहते हैं, “यूरोप की बीमा कंपनियां 1990 के दशक से ही चेतावनी दे रही हैं कि अनियंत्रित ग्लोबल वार्मिंग से इतने अधिक विनाशकारी तूफान, आग और अन्य चरम घटनाएं हो सकती हैं कि कंपनियों को अपने बीमा की सीमा तय करनी होगी।” डेव जोन्स ने 2011 से 2018 तक कैलिफोर्निया के बीमा आयुक्त के रूप में काम किया है और अब बर्कले के स्कूल ऑफ लॉ में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में जलवायु जोखिम पहल का निर्देशन करते हैं। वह कहते हैं, “दुनियाभर के वित्तीय नियामकों के बीच इस बात को लेकर व्यापक सहमति है कि जलवायु परिवर्तन वैश्विक वित्तीय प्रणाली, अमेरिकी वित्तीय प्रणाली और वित्तीय संस्थानों के लिए प्रणालीगत वित्तीय जोखिम पैदा करता है।” जोंस आगे कहते हैं, “ये विनाशकारी घटनाएं पूरे अमेरिका में हो रही हैं। वास्तव में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जो इससे अछूता हो। अतः हम अमेरिका और दुनियाभर में एक बीमा-रहित भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं।”
मौसम संबंधी घटनाओं से होने वाले नुकसान की भरपाई करने के लिए प्राथमिक हथियार होने के चलते फसल-बीमा, जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनने के तरीकों में से एक है
ज्यादातर वैश्विक वार्ताओं और समझौतों में बीमे पर पॉलिसी के तौर पर फोकस किया गया है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के अनुच्छेद 4.8 के मुताबिक, “बीमा जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल-प्रभावों और प्रतिक्रिया उपायों के प्रतिकूल प्रभावों यानी कि दोनों के संबंध में विकासशील देशों की खास जरूरतों व चिंताओं को पूरा करने” के लिए की जाने वाली “कार्रवाइयों” में एक है। इसीलिए नई वास्तविकताओं के लिहाज से बीमा को और प्रभावी बनाने के लिए इसके नए प्रारूपों को तैयार किया जा रहा है।
इनमें से प्रमुख है पैरामीट्रिक और इंडेक्स आधारित बीमा पॉलिसी, जहां भुगतान एक पूर्व-निर्धारित मौसम पैरामीटर (जैसे लू के मामले में तापमान, बाढ़ के मामले में बारिश और चक्रवात के मामले में हवा की गति) के आधार पर शुरू और निर्धारित किया जाता है। यह एक खास सीमा तक पहुंचता है। यह पारंपरिक क्षतिपूर्ति बीमा से अलग है जो नुकसान के आकलन की लंबी प्रक्रिया के बाद किया जाता है। इसमे बीमा करने वाला जोखिम का आकलन करने वाली एजेंसी की मदद से आपदा के एक मॉडल का उपयोग करके भुगतान की राशि तय करता है। यह मॉडल नुकसान के ऐतिहासिक कारकों जैसे, उस क्षेत्र में चरम मौसम की घटना और पॉलिसी धारक की जोखिम का मुकाबला करने की क्षमता व चरम मौसम घटना के प्रति उसके जोखिम की आशंका पर निर्भर होता है।
दुनिया का पहला पैरामीट्रिक बीमा समाधान, कैरेबियन क्षेत्र में 2007 में कैरेबियन आपदा जोखिम बीमा सुविधा (सीसीआरआईएफ) द्वारा लागू किया गया था, जिसके फिलहाल कैरेबियन और मध्य अमेरिकी क्षेत्रों में 30 सदस्य हैं। इसे दूसरी राष्ट्रीय सरकारों और कैरेबियन विकास बैंक जैसे बैंकों से मदद के अलावा सदस्य देशों द्वारा सदस्यता शुल्क के माध्यम से फंड दिया जाता है।
सीसीआरआईएफ उष्णकटिबंधीय चक्रवातों, भूकंपों, अत्यधिक वर्षा और मत्स्य पालन, बिजली और जल उपयोगिता जैसे क्षेत्रों को होने वाले नुकसान के लिए पैरामीट्रिक बीमा प्रदान करता है। हवाओं, बारिश, लहरों और तूफान यानी तीन वजहों से होने वाली हानि से जहां पर जिस चीज का प्रभाव रहा हो, वहां पैरामीट्रिक बीमा लागू होता है। इसकी वेबसाइट के अनुसार, संगठन अब तक 78 भुगतानों के लिए 39 करोड़ डालर दे चुका है। इसमें से 63 फीसदी राशि आपदाओं के तत्काल बाद की गतिविधियों के लिए, 19 फीसदी लंबे समय की आधारभूत संरचनाओं के लिए और तीन फीसदी भविष्य में होने वाली आपदाओं के नुकसान को कम करने के लिए दी गई।
हालांकि हाल के सालों में चरम मौसम की घटनाओं विशेषकर उष्णकटिबंधीय चक्रवातों से इस क्षेत्र को जिस तरह का नुकसान हुआ है, उसकी तुलना में ये भुगतान न्यूनतम है। एक हद तक इसका मुकाबला करने के लिए सीसीआरआईएफ लगातार अपने सदस्यों के लिए सहायता और कवरेज बढ़ाकर अपने उत्पादों को जलवायु में तेजी से होने वाले बदलावों के प्रति ज्यादा संवेदनशील बना रहा है। उदाहरण के लिए सीसीआरआईएफ की वार्षिक रिपोर्ट 2023-2024 के अनुसार, 2023-24 में कैरेबियाई क्षेत्र में व सीसीआरआईएफ के सदस्य देशों को उष्णकटिबंधीय चक्रवात और अधिक वर्षा पैरामीट्रिक नीतियों के लिए उनके प्रीमियम पर 14.14 फीसदी और 14.23 फीसदी की छूट प्रदान की गई थी।
2018 में जर्मनी के स्वामित्व वाले निवेश और विकास बैंक केएफडब्ल्यू, ने भी एक पैरामीट्रिक बीमा पॉलिसी, इंश्योरेजिलेंस सोल्यूशंस फंड (आइएसएफ) स्थापित की, जो जलवायु परिवर्तन के अनुकूल विकासशील और उभरते देशों के लचीलेपन और उनकी क्षमता को बढ़ाने का प्रयास करती है। यह 110 सरकारी संस्थाओं, बीमाकर्ताओं, गैर-सकरारी संगठनों और शैक्षणिक समुदायों को बीमा समेत उन वित्तीय उपायों के विकास के लिए एक साथ लाया है जो जलवायु परिवर्तन के खतरों से लड़ सकें। आईएसएफ फिलहाल 27 जलवायु-जोखिम बीमा उत्पादों पर काम कर रहा है। इसका 2025 के अंत तक विकासशाील देशों के साढ़े तीन करोड़ संवेदनशील लोगों तक बीमा कवरेज पहुंचाने का लक्ष्य है। कोलम्बियाई शहर मेडेलिन में जो बाढ़ और भूस्खलन के लिए अत्यधिक संवेदनशील है, आईएसएफ अत्यधिक बारिश, बाढ़ और परिणामी भूस्खलन के लिए अपनी तरह का अनोखा पैरामीट्रिक जोखिम कवरेज प्रदान करता है।
बाढ़-बीमा दो घंटे की अवधि में अत्यधिक बारिश पर आधारित है, जबकि भूस्खलन की हालत में यह 15 दिनों की अवधि में बारिश पर आधारित है, जिसमें भूस्खलन की तारीख के करीब की बारिश पर ध्यान केंद्रित किया गया है। स्विस रे में जलवायु जोखिम समाधान की प्रमुख एनेमेरी बटनर के मुताबिक, “हम पैरामीट्रिक बीमा उत्पादों को कई अन्य क्षेत्रों में बढ़ते हुए देख सकते हैं जहां पारंपरिक बीमा बहुत महंगा है और उन संपत्तियों के लिए भी जिनका बीमा करना मुश्किल है।”
कोलंबो में स्थित अंतरराष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान (आईडब्ल्यूएमआई) ने अफ्रीका के कृषि और जलवायु जोखिम उद्यम (एसीआरई) और जाम्बिया की व्यावसायिक बीमा कंपनी लिमिटेड के साथ जाम्बिया के मागोय नदी बेसिन में एक सूचकांक आधारित बाढ़ बीमा (आईबीएफआई) परियोजना लागू की है। यहां किसानों को बार-बार बाढ़ का सामना करना पड़ता है। इसमें बीमा के भुगतान बाढ़ की गहराई के आधार पर तय किए जाते हैं। जब बाढ़ की गहराई पिछली बाढ़ की गहराई से 80 फीसदी से ज्यादा हो तो बीमा कवरेज का 25 फीसदी भुगतान किया जाता है। जब बाढ़ की गहराई पिछली बाढ़ की गहराई से 99 फीसदी से ज्यादा हो तो बीमा कवरेज का सौ फीसदी यानी पूरा भुगतान किया जाता है। बाढ़ बीमे का भुगतान करने की दो श्रेणियां और हैं, जब बाढ़ की गहराई पिछली बाढ़ की गहराई से 85 फीसदी से ज्यादा हो तो बीमा कवरेज का पचास फीसदी भुगतान किया जाता है और बाढ़ की गहराई पिछली बार से 95 फीसदी होने पर 75 फीसदी भुगतान किया जाता है।
समय पर भुगतान करने के लिए हर दस दिनों में नदियों की निगरानी की जाती है। बीमा का ऐसा मॉडल किसानों के बीच भरोसा पैदा करता है जबकि बीमाकर्ता को ज्यादा भुगतान या कम भुगतान की स्थितियों से बचाता है। आईडब्ल्यूएमआई ने उप-सहारा अफ्रीका के अन्य देशों में इसके आईबीएफआई परियोजना का विस्तार करने और सूखा सूचकांक बीमा उत्पाद भी विकसित करने की योजना बनाई है जो बाढ़ और सूखे दोनों के साथ एक व्यापक जलवायु जोखिम प्रबंधन प्रणाली बना सकता है।
प्रारंभिक अनुभवों से पता चलता है कि पैरामीट्रिक बीमा कार्यक्रम चरम मौसम से होने वाले कष्टों को कम करने में मददगार हैं
भारत भी पैरामीट्रिक बीमा कार्यक्रमों का प्रयोग कर रहा है। बीते एक साल में कम से कम तीन संगठनों- महिला हाउसिंग ट्रस्ट (एमएचटी), क्लाइमेट रेजिलिएंस फॉर ऑल और विमोसेवा ने चरम मौसम के खिलाफ कमजोर समुदायों को सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से गुजरात में पैरामीट्रिक बीमा लागू किया है। जमीनी स्तर के विकास समूह एमएचटी द्वारा लागू किया जा रहा बीमा शहरी क्षेत्रों में अनौपचारिक महिला श्रमिकों को उच्च तापमान से पहुंचने वाले नुकसान को कवर करने के लिए डिजाइन किया गया है। यह बीमा को पायलट आधार पर लागू कर रहा है। इसमें हाउडन इंडिया बीमाकर्ता (इंश्योरर) और डिजिमैक्स पुन: बीमाकर्ता (रीइंश्योरर) के रूप में काम कर रहा है। अब तक इस कार्यक्रम का प्रदर्शन उत्साहजनक रहा है।
गुजरात के अहमदाबाद शहर में रहने वाली 57 वर्षीय निर्माण मजदूर रमीलाबेन जाधव को एक अच्छे महीने में औसतन 15-20 दिन काम मिल जाता है। इससे उन्हें 8,000 से 10,000 रुपए की आमदनी होती है। लेकिन हाल के वर्षों में गर्मियों के दौरान तापमान में वृद्धि से जाधव और उनके मजदूर पति को हफ्तों काम नहीं मिलता। 2024 में उनके शहर में अभूतपूर्व हीटवेव (लू) देखी गई और मई के मध्य में तापमान 43.7 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। ये पिछले आठ वर्षों में शहर के सबसे गर्म दिन थे। जाधव को मई और जून में 20 दिन काम नहीं मिला। उस दौरान जाधव के बैंक खाते में 750 रुपए आए। हालांकि यह राशि मामूली थी, लेकिन भोजन जैसे बुनियादी खर्चों को पूरा करने में बड़ी मददगार साबित हुई।
उन्हें यह राशि पैरामीट्रिक बीमा कार्यक्रम के माध्यम से मिली, जिसे एमएचटी द्वारा 2024 की गर्मियों में लागू किया गया था। कार्यक्रम के तहत अहमदाबाद, सूरत और वडोदरा में जाधव सहित लगभग 26,000 महिला श्रमिकों को चार महीने (मार्च से जून तक) के बीमा कवरेज के लिए नामांकित किया गया था। अहमदाबाद की सभी 2,000 महिला श्रमिकों को 750 रुपए का भुगतान हुआ। रमीलाबेन की पड़ोसी और स्ट्रीट वेंडर 42 वर्षीय लताबेन सोलंकी कहती हैं, “मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि गर्मी से रक्षा के लिए भी कुछ है।”
एमएचटी की प्रोग्राम मैनेजर भावना महेरिया कहती हैं कि यह पायलट वर्ष था, इसलिए संगठन ने 2,000 रुपए के अधिकतम कवरेज के लिए प्रति महिला 354 रुपए के प्रीमियम का भुगतान किया। 2025 में महिला श्रमिक आधा प्रीमियम वहन करेंगी। महेरिया का कहना है कि चूंकि सभी पॉलिसी धारक जीविका के लिए दैनिक मजदूरी पर निर्भर हैं, इसलिए यह प्रक्रिया शीघ्र भुगतान सुनिश्चित करती है।
भुगतान राशि की गणना के लिए एमएचटी ने शहरों के लिए अलग-अलग तापमान सीमाएं तैयार की हैं और उन्हें दो श्रेणियों-उच्च और निम्न में विभाजित किया है। उदाहरण के लिए अहमदाबाद में तापमान की सीमाएं 43.7 डिग्री सेल्सियस और 44.1 डिग्री सेल्सियस तय की गई हैं। यदि दो दिनों तक 43.7 डिग्री सेल्सियस का तापमान जारी रहता है, तो 750 रुपए का भुगतान किया जाता है और यदि तापमान 44.1 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है तो 1,250 रुपए दिए जाते हैं। यदि गर्मियों के महीने में तापमान उच्च और निम्न दोनों सीमाओं को पार करता है तो कुल भुगतान 2,000 रुपए होगा। महेरिया ने बताया कि एमएचटी के मॉडलिंग के अनुसार, 22-23 मई 2024 को अहमदाबाद में तापमान 43.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया, इसलिए शहर में बीमाधारकों को 750 रुपए का भुगतान शुरू कर दिया गया। कुल 15 लाख रुपए का भुगतान हुआ।
क्लाइमेट रेजिलिएंस फॉर ऑल की मुख्य कार्यकारी अधिकारी कैथी बॉघमैन मैकलॉयड कहती हैं, “पैरामीट्रिक बीमा लचीला है। इसमें कोई भी ट्रिगर निर्धारित किया जा सकता और भुगतान भी तुरंत होता है।” क्लाइमेट रेजिलिएंस फॉर ऑल का पैरामीट्रिक बीमा राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात के 23 जिलों में अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाली सेल्फ इंप्लॉयड विमेंस असोसिएशन (सेवा) की 50,000 महिलाओं को कवरेज देता है। सेवा द्वारा प्रमोटेड विमोसेवा ने गर्मी से बचाने के लिए 2,400 असंठित कामगारों (महिला एवं पुरुष) का बीमा किया है। इसमें 3,000 रुपए की बीमित राशि के लिए मजदूरों ने 350 रुपए के प्रीमियम का भुगतान किया है।
नागालैंड अगस्त 2024 में भारत का पहला राज्य बन गया, जिसने डिजास्टर रिस्क ट्रांसफर पैरामीट्रिक इंश्योरेंस सॉल्यूशन (डीआरटीपी) के तहत अपने पूरे क्षेत्र का बीमा किया। इसका उद्देश्य राज्य के बुनियादी ढांचे की रक्षा करना और आपदा के कारण लोगों को होने वाले आर्थिक नुकसान को कम करना है। नागालैंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनएसडीएमए) के संयुक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी जॉनी रुआंगमेई कहते हैं, “भारत में राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ) हैं। लेकिन उन्होंने प्रभावित समुदाय को राहत देने के लिए मानदंड तय कर रखे हैं। उदाहरण के लिए, यदि पहाड़ी इलाकों में कोई घर प्राकृतिक आपदा से नष्ट हो जाता है तो पूरी तरह से क्षतिग्रस्त घर (चाहे वह महंगा हो या कम लागत वाला) के लिए अधिकतम 1 लाख 30 हजार रुपए का भुगतान होता है। आधारभूत ढांचे को नुकसान की स्थिति में हमें मरम्मत कार्यों के लिए प्रति किलोमीटर एक लाख रुपए से कुछ अधिक का भुगतान होता है। ऐसा तब होता है कि जब प्रभावित समुदाय की आवश्यकता इससे कहीं अधिक होती है।” राज्य की नई बीमा योजना इसे ठीक करती है। एनएसडीएमए ने अगस्त 2024 में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के जनरल इंश्योरेंस के साथ तीन साल के लिए एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत पूरे राज्य का चरम बारिश से कवरेज के लिए 150 करोड़ रुपए का बीमा किया गया है। इस राशि का उपयोग आपदा की स्थिति में राज्य के बुनियादी ढांचे की मरम्मत या प्रभावित लोगों को मुआवजा देने के लिए किया जा सकता है।
रुआंगमेई कहते हैं, “हमारे पास वर्षा के लिए एक सीमा है। यदि यह सीमा पार होती है तो नुकसान होने या न होने की स्थिति में भी एनएसडीएमए भुगतान का दावा कर सकता है।” मॉनसून सीजन (1 मई से 31 अक्टूबर) के दौरान वर्षा की सीमा 1,500 मिमी (कुल वर्षा) है और गैर-मॉनसून महीनों (1 नवंबर-30 अप्रैल) के लिए सीमा 130 मिमी (लगातार सात दिनों की कुल वर्षा, इससे अधिक या बराबर) है।
राज्य ने विकेंद्रीकृत भुगतान प्रणाली अथवा डीआरपीएस विकसित की है जिसके तहत प्रभावित व्यक्ति एक फॉर्म भर सकता है और गांव स्तर पर हुए नुकसान की तस्वीरें जमा कर सकता है। दावों को गांव आपदा प्रबंधन प्राधिकरण या गांव विकास बोर्ड के अध्यक्ष या गांव परिषद द्वारा प्रमाणित किया जाएगा। रुआंगमेई कहते हैं, “फिर यह एक सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म पर जाता है जो ब्लॉकचेन तकनीक और जियो-टैगिंग के विकल्प द्वारा संचालित होता है। इसके बाद भुगतान सीधे व्यक्ति के खाते में जाता है।” 2024 के माॅनसून के महीनों के दौरान राज्य को बुनियादी ढांचे के नुकसान के रूप में 480 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ और एनएसडीएमए को इस अवधि के लिए 30 प्रतिशत दावा राशि मिलने की संभावना है।
हालांकि, पैरामीट्रिक बीमा के तहत सबसे बड़ी चुनौती पेआउट-ट्रिगर सीमा निर्धारित करने से संबंधित है जो डेटा के सही चयन पर निर्भर करती है। नागालैंड ने 2021 में पहली बार पैरामीट्रिक बीमा लागू करने के अपने कड़वे अनुभव के बाद इस समस्या को ठीक कर लिया है। रुआंगमेई बताते हैं कि नागालैंड ने सबसे पहले 2021 से 2023 तक बीमाकर्ता के रूप में टाटा एआईजी और पुनर्बीमाकर्ता के रूप में स्विस रे के साथ एक पायलट पैरामीट्रिक बीमा समझौता किया था। इसके अंतर्गत राज्य सरकार ने 5 करोड़ रुपए के कवरेज के लिए 70 लाख रुपए का वार्षिक प्रीमियम दिया और पेआउट-ट्रिगर सीमा 290 और 350 मिमी वर्षा के बीच निर्धारित की गई थी।
इस काम के लिए नासा के क्लाइमेट हैजार्ड्स ग्रुप इन्फ्रारेड प्रेसिपिटेशन विद स्टेशन डेटा (सीएचआईआरपीएस) का उपयोग किया गया था। उक्त अवधि में नागालैंड ने भारी वर्षा और बाढ़ का सामना किया लेकिन भुगतान कभी नहीं मिला। वह कहते हैं, “हमें यह एहसास हुआ कि उपग्रह से प्राप्त डेटा और भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के ग्रिडेड डेटासेट के साथ-साथ हमारे अपने मौसम स्टेशनों द्वारा कैप्चर किए गए डेटा में बहुत अंतर है। इसलिए उपग्रह डेटा के आधार पर हमारे बीमा उत्पादों का निर्माण करना विश्वसनीय नहीं था।” नए समझौते के लिए राज्य ने 50 साल के ऐतिहासिक आंकड़ों को देखा और चरम मौसम की घटनाओं के कारण हुए नुकसान की सीमा की जांच की। वह बताते हैं, “हमने पाया कि सिर्फ 2018 में ही नागालैंड को मॉनसून के दौरान 800 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। इसलिए मौजूदा बीमा योजना में हम आईएमडी और हमारे ग्राउंड वेदर स्टेशन के डेटा का उपयोग कर रहे हैं।”
हालांकि जमीनी स्तर के संगठनों के लिए अपने पैरामीट्रिक बीमा उत्पादों को डिजाइन करने के लिए आईएमडी डेटासेट तक पहुंच बनाना आसान नहीं रहा है। उदाहरण के लिए एमएचटी का बीमा भुगतान की गणना के लिए यूरोपीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र (ईसीएमडब्ल्यूएफ) द्वारा एकत्रित इआरए5 वैश्विक डेटासेट का उपयोग करता है। 1940 के बाद से मुफ्त में उपलब्ध यह डेटा सेट पिछले आठ दशकों के लिए वैश्विक जलवायु और मौसम का पुनः विश्लेषण है। इसी डेटा का उपयोग करके अहमदाबाद की 2,000 महिलाओं को भुगतान शुरू किया गया।
हालांकि महेरिया कहती है कि अगर एमएचटी ने आईएमडी डेटा का इस्तेमाल किया होता तो अन्य दो शहरों के लिए भी भुगतान शुरू हो जाता। वह बताती हैं, “हमने दोनों डेटा की तुलना की और 3-3.5 डिग्री सेल्सियस का अंतर पाया। यही हमारी सीख थी। दुर्भाग्यवश हम बिना पैसे दिए लंबे समय तक आईएमडी के डेटा का प्रयोग विश्लेषण के लिए नहीं कर सकते हैं।”
बीमा के नए मॉडल भी उन्हीं चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जिसका पुराने बीमाकर्ता पहले से करते आ रहे हैं। इनमें सबसे अहम है जोखिम आकलन का मॉडल। यह मॉडल बीमाकर्ताओं को खास क्षेत्रों में विभिन्न चरम मौसम आपदाओं से जुड़े जोखिमों के बारे में जानकरी देता है। बट्नर कहते हैं, “जिस बात को ध्यान में रखना चाहिए वह यह है कि भविष्य की परिस्थितियां और जोखिम सटीक नहीं हो सकते क्योंकि हम यह मॉडल नहीं बना सकते कि भविष्य में अर्थव्यवस्था और राजनीति कैसे बदलेंगी।”
बहरहाल वैज्ञानिक यह समझने की ज्यादा कोशिश करते हैं कि भविष्य में जलवायु परिदृश्य कैसे बदलेंगे। इसके लिए जोखिम मॉडल का इस्तेमाल किया जाता है। ये मॉडल अलग-अलग मौसम पूर्वानुमान मॉडलों और जलवायु मॉडलों के साथ मिलकर काम करते हैं। भविष्य के परिदृश्यों को समझने के लिए इस अध्ययन को इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के तहत निर्धारित शेयर्ड सोशियो इकोनॉमिक पाथवेज (एसएसपी) के तहत किया जाता है। एसएसपी अलग-अलग सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय परिस्थितियों के आधार पर जलवायु परिवर्तन के संभावित प्रभावों को दर्शाते हैं। इस अध्ययन से यह पता चल पाएगा कि वर्ष 2030, 2050 और 2100 तक अत्यधिक मौसमीय घटनाओं (जैसे बाढ़, सूखा, तूफान, लू आदि) के खतरे किस तरह से बदलेंगे और इनसे निपटने की तैयारी कैसे की जा सकती है।
बीमा कंपनियों को जोखिम से बचाने का काम करने वाली कंपनी स्विस रे विशेष रूप से अपने भविष्य के मॉडलिंग के लिए विभिन्न उत्सर्जन परिदृश्यों का उपयोग करती है। आईएसएफ, सीसीआरआईएफ और इंटनेशनल एसोसिएशन ऑफ इंश्योरेंस सुपरवाइजर्स (आईएआईएस) जैसी संस्थाएं भी क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहलों के माध्यम से कमजोर देशों को बेहतर जोखिम आकलन वाला मॉडल बनाने में सहायता कर रही हैं। आईएसएफ दरअसल ग्लोबल रिस्क मॉडलिंग अलायंस (जीआरएमए) की मेजबानी करता है, जो एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी है और जो देशों को ओपन-सोर्स मॉडल, डेटा सहायता और जोखिम विश्लेषण में क्षमता निर्माण प्रदान करती है। वहीं, आईएआईएस क्लाइमेडा टेक्नोलॉजी के सहयोग से राष्ट्रीय बीमा पर्यवेक्षकों जैसे बीमा नियामक प्राधिकरणों को दीर्घकालिक जलवायु परिदृश्यों के तहत क्षेत्रीय जोखिमों का मूल्यांकन करने के लिए एक उपकरण प्रदान करता है।
जोखिम विश्लेषण के अनुसार, पाकिस्तान, मेडागास्कर, घाना, नाइजर, नाइजीरिया और कोस्टा रिका जैसे देशों में जोखिम मूल्यांकन की सबसे बड़ी चुनौतियां उनके यहां मौजूद संवेदनशीलता और जोखिम के आंकड़ों की जबरदस्त कमी, मौजूदा जोखिम आकलन की निम्न गुणवत्ता, सरकारी विभागों की कमजोर तकनीकी क्षमता और मंत्रालयों के बीच समन्वय की कमी है।
आईडब्ल्यूएमआई के गिरीराज अमरनाथ कहते हैं, “जोखिम आकलन को एक के बाद एक होने वाली (कास्केडिंग) और एक साथ होने वाली (कंपाउंडिंग) जोखिमों को भी शामिल करने में सक्षम होना चाहिए जो दरअसल गर्म होते जलवायु में अधिक आम होते जा रहे हैं।” वह आगे कहते हैं, “यदि ये जोखिम मूल्यांकन मॉडल सटीक होंगे तो वे पैरामीट्रिक और इंडेक्स आधारित बीमा समाधानों के लिए सही ट्रिगर प्रदान कर सकते हैं।”
इस मामले में जोन्स कहते हैं, “लेकिन मुझे लगता है कि यह ध्यान रखना अहम है कि हम इस समस्या को मॉडलिंग से हल नहीं कर सकते। वास्तव में बेहतर मॉडलिंग हमें केवल अधिक बुरी खबर देती है कि सबसे खराब जोखिम कहां आ रहे हैं और इससे बीमाकर्ता और भी अधिक जोखिमों को चुनिंदा रूप से लेने लगते हैं और अधिक लोगों को निष्पक्ष योजनाओं में धकेलते हैं।” इसके अलावा वे मॉडल हैं जो व्यापार स्तर पर उपयोग किए जाते हैं, जिन्हें अमेरिका में जोखिम-स्कोर मॉडल कहा जाता है। इन मॉडलों में बीमाकर्ता लैंडस्केप-स्केल और समुदाय-स्तर या यहां तक कि संपत्ति-स्तर की रोकथाम के उपायों को ध्यान में नहीं रखते। तकनीकी रूप से ये मॉडल इस डेटा को शामिल कर सकते हैं लेकिन उन्हें अंडरराइटिंग पक्ष पर अनुकूलन कार्रवाइयों को ध्यान में रखना जरूरी नहीं होता। अंडरराइटिंग पक्ष यानी वह संस्था, कंपनी या व्यक्ति जो जोखिम का विश्लेषण करके यह तय करता है कि किसी व्यक्ति, व्यवसाय या संपत्ति को बीमा या वित्तीय सेवा दी जाए या नहीं। इसका नतीजा यह होता है कि लोग अपने घरों को सुरक्षित बनाने और फायर-वाइज समुदाय बनाने के लिए निवेश करते हैं लेकिन उन्हें इसके लिए बीमा कंपनियों से कोई लाभ नहीं मिलता। फायर वाइज समुदाय एक ऐसा संगठन या समूह होता है, जो जंगल की आग से सुरक्षा के लिए सक्रिय रूप से काम करता है।
जोन्स कहते हैं, “वे अपने संघीय, राज्य और स्थानीय करों के माध्यम से वाइल्डफायर के संदर्भ में लैंडस्केप स्तरीय जंगल के उपचार या अन्य रोकथाम उपायों के लिए भुगतान करेंगे और उन्हें मॉडल में इसके लिए कोई श्रेय नहीं मिलेगा। यह कुछ ऐसा है जिसे इंश्योरेंस कमिश्नर्स बदल सकते हैं क्योंकि वे अमेरिका में रेटिंग को नियंत्रित करते हैं।” हालांकि अमेरिका में केवल स्टेट लेजिसलेटर्स ही बीमा अंडरराइटिंग में बदलाव कर सकते हैं। जोन्स कहते हैं कि अन्य न्यायालयों में बीमा नियामक के पास मॉडल में रोकथाम को शामिल करने की आवश्यकता का अधिकार होता है।
अमरनाथ के अनुसार, “बीमा लेने वालों के बीच जोखिमों के बारे में अधिक जागरुकता और उपलब्ध बीमा उत्पादों की जानकारी होनी चाहिए।” वह आगे कहते हैं, “हालांकि बाजार तंत्र महत्वपूर्ण हैं, लेकिन बदलती जलवायु को ध्यान में रखते हुए बीमा नीतियों से जुड़ी सरकारी नीतियां भी उतनी ही या उससे भी ज्यादा जरूरी है।”