जलवायु

भारत, पाकिस्तान में बढ़ रहा है ग्लेशियरों से बनी झीलों में घातक बाढ़ का खतरा

Dayanidhi

एक नए अध्ययन के मुताबिक जैसे ही ग्लेशियर पिघलते हैं और आसपास की झीलों में भारी मात्रा में पानी पहुंचता है तो इन पर दबाव बढ़ जाता है। पानी के इस बढ़ते दबाव के कारण झीलों के फटने से इलाकों में रहने वाले दुनिया भर में 1.5 करोड़ लोग अचानक आने वाली घातक बाढ़ के खतरे में आ जाते हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि ग्लेशियर वाली झील के फटने से आने वाली बाढ़ से उस इलाके में रहने वाले आधे से ज्यादा लोग सिर्फ चार देशों के हैं, जिसमें भारत, पाकिस्तान, पेरू और चीन शामिल हैं। वहीं एक अन्य अध्ययन में इतिहास और हाल के दिनों में 150 से अधिक ग्लेशियरों की वजह से आने वाली बाढ़ के प्रकोपों ​​को सूचीबद्ध किया है।

अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि लगभग 10 लाख लोग अस्थिर ग्लेशियर से भरी झीलों के सिर्फ 10 किलोमीटर के दायरे में रहते हैं।

अध्ययन ने खुलासा किया है कि 1.5 करोड़ लोग ग्लेशियरों से भरी झीलों के 50 किमी के दायरे में रहते हैं और ऊंची पर्वतीय एशिया (जो किर्गिस्तान से चीन तथा तिब्बती पठार तक फैला है) में सबसे अधिक ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) यानी कि ग्लेशियर वाली झीलों के फटने का खतरा है, जिसमें 93 लाख लोग खतरे में हैं। भारत और पाकिस्तान में लगभग 50 लाख लोग इस तरह के खतरों वाले इलाकों में रहते हैं, जो कि कुल मिलाकर दुनिया भर के कुल हिस्से का लगभग एक तिहाई के बराबर है।

भारी विनाशकारी बाढ़ में से एक 1941 में पेरू में आई थी जिससे 1,800 से 6,000 लोग मारे गए थे। ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडा में 2020 में एक  ग्लेशियर से भरी झील के फटने से आई बाढ़ से लगभग 100 मीटर ऊंची पानी की सुनामी आई, लेकिन इसमें कोई हताहत नहीं हुआ।

भारत में 2013 में भारी बारिश और एक ग्लेशियर से भरी झील के फटने से आई बाढ़ ने हजारों लोगों की जान ले ली थी। भारत में 2021 में एक और घातक बाढ़ जिसे शुरू में एक ग्लेशियर से भरी झील के फटने को जिम्मेदार ठहराया गया था।

वैज्ञानिकों का कहना है कि अब तक ऐसा नहीं लगता है कि जलवायु में बदलाव ने उन बाढ़ों की आवृत्ति को बढ़ा दिया है, लेकिन जैसे-जैसे ग्लेशियर गर्म होते जाते हैं, झीलों में पानी की मात्रा बढ़ती जाती है, जिससे बांधों के फटने पर उन दुर्लभ स्थितियों में वे और खतरनाक हो जाते हैं।

न्यूजीलैंड के कैंटरबरी विश्वविद्यालय में सह-अध्ययनकर्ता टॉम रॉबिन्सन ने कहा, अतीत में ग्लेशियर से भरे झीलों के फटने से विनाशकारी बाढ़ आई थी, जिसने हजारों लोगों की जान ले ली थी। जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं इसलिए ये झीलें बड़ी और अधिक अस्थिर हो रही हैं।

कैलगरी विश्वविद्यालय के एक भू-वैज्ञानिक डैन शुगर ने कहा कि ज्यादातर खतरा इस बात पर निर्भर करता है कि कितने लोग ग्लेशियर के कारण आने वाली  बाढ़ के क्षेत्र में रहते हैं।  

रॉबिन्सन ने कहा कि उनके इस अध्ययन में क्या अलग है, वह यह है कि यह सबसे पहले जलवायु, भूगोल, जनसंख्या, कमजोर और इन सभी कारणों को देखता है ताकि सभी 1,089 ग्लेशियर घाटियों के लिए दुनिया में सबसे खतरनाक जगहें कहां हैं, इनका अच्छी तरह से अवलोकन किया जा सके।

खतरे के सबसे ऊपरी पायदान में पाकिस्तान के इस्लामाबाद के उत्तर में खैबर पख्तूनख्वा बेसिन है। रॉबिन्सन ने कहा यह बहुत सारे लोग और वे बहुत खतरे में हैं, क्योंकि वे झील के नीचे एक घाटी में रहते हैं।

रॉबिन्सन ने कहा मुसीबत यह है कि वैज्ञानिक पाकिस्तान, भारत, चीन और हिमालय पर बहुत अधिक गौर कर रहे हैं, जिसे अक्सर ऊंची पर्वतीय एशिया कहा जाता है और कुछ हद तक एंडीज की अनदेखी कर रहे हैं। अध्ययन में कहा गया है कि दूसरे और तीसरे सबसे बड़े खतरे वाले बेसिन पेरू के सांता बेसिन और बोलीविया के बेनी बेसिन में हैं।

यूनिवर्सिटी ऑफ डेटन जियोलॉजी के प्रोफेसर उमेश हरितश्य ने कहा कि 1940 के दशक में घातक एंडीज बाढ़ के बाद वह क्षेत्र ग्लेशियरों के कारण आने वाली बाढ़ के प्रकोप के खतरों में से एक थे, लेकिन पिछले एक दशक में ऊंचे पहाड़ों पर एशिया ने कब्जा कर लिया है।

अध्ययनकर्ता ने कहा कि प्रशांत नॉर्थवेस्ट से अलास्का तक, अमेरिका और कनाडा में तीन झील वाली घाटियों को खतरों के लिए सबसे ऊंचा स्थान दिया गया है, लेकिन एशिया और एंडीज के क्षेत्रों में कुछ इलाकों में कम लोगों खतरा है। वे अलास्का के केनाई प्रायद्वीप में हैं, जूनो के पास मेंडेनहॉल ग्लेशियर से अलग - पूर्वोत्तर वाशिंगटन और पश्चिम मध्य ब्रिटिश कोलंबिया में है। यह अध्ययन नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।