जलवायु

कॉप-26: दुनिया भर के देश तापमान के लक्ष्य को हासिल करने से कोसों दूर: संयुक्त राष्ट्र

रिपोर्ट के मुताबिक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए, उत्सर्जन में 55 फीसदी तक की कमी करने की आवश्यकता है।

Dayanidhi

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने कॉप 26 जलवायु शिखर सम्मेलन से पहले एक आकलन पेश किया है। आकलन में कहा गया है कि देशों की नवीनतम जलवायु योजनाएं वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने से कोसों दूर है। आकलन के मुताबिक आवश्यक उत्सर्जन में कटौती का केवल एक छोटा हिस्सा शामिल है। इसमें यह भी कहा गया कि पेरिस जलवायु समझौते के कार्बन प्रदूषण को कम करने के राष्ट्रीय वादे, अभी तक पूरे नहीं किए गए है।  

वार्षिक उत्सर्जन गैप मूल्यांकन रिपोर्ट में देशों द्वारा जारी किए जाने वाले उत्सर्जन की गणना की गई है। तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस सीमित करने के लिए उत्सर्जन पर लगाम लगाना आवश्यक है, जो पेरिस समझौते का महत्वाकांक्षी लक्ष्य भी है। शिखर सम्मेलन के आयोजकों का कहना है कि वे चाहते हैं कि देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं को डीकार्बोनाइज करने के लिए दोगुनी ताकत लगाए। ताकि पृथ्वी के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य तक सीमित रखा जा सके।

लेकिन संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के अनुसार, लगभग 120 देशों की सबसे नए और महत्वाकांक्षी योजनाएं भी दुनिया को 2.7 डिग्री सेल्सियस तक गर्म होने से नहीं रोक सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने कहा वार्षिक उत्सर्जन गैप मूल्यांकन की रिपोर्ट से पता चलता है, कि दुनिया अभी भी जलवायु आपदा की जद में है।

2015 के पेरिस समझौते के तहत, हस्ताक्षरकर्ताओं को नए उत्सर्जन में कटौती करने संबंधी योजनाओं को प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान या एनडीसी के रूप में जाना जाता है।

यूएनईपी की रिपोर्ट में कहा गया कि सबसे हालिया वादों में पहले से अनुमानित 2030 के उत्सर्जन स्तरों से 7.5 फीसदी कमी आएगी। जबकि तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए, उत्सर्जन में 55 फीसदी तक की कमी करने की आवश्यकता है।

तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए उत्सर्जन में 30 प्रतिशत की कटौती की आवश्यकता है। पेरिस समझौते की एक सीमा देशों को तापमान नीचे रखने के लिए प्रतिबद्ध करती है। यूएनईपी के कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए हमारे पास ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को लगभग आधा करने के लिए आठ साल का समय है।

यूएनईपी की रिपोर्ट में कहा गया है कि कि कोविड-19 महामारी के कारण 2020 में वैश्विक उत्सर्जन में 5.4 फीसदी की गिरावट आई है। हालांकि यह भी वर्तमान उत्सर्जन ट्रेजेक्टरी या प्रक्षेपवक्र और 1.5 डिग्री सेल्सियस दुनिया के बीच की खाई को कम करने के लिए काफी नहीं था।

चुनौती को ध्यान में रखते हुए, देशों को 2030 तक अतिरिक्त 2,800 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों को कम करने की आवश्यकता है। केवल कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के 2021 में 33 अरब टन तक पहुंचने का अनुमान है।

रिपोर्ट के सह-लेखक ऐनी ओहलॉफ ने बताया कि इससे पता चलता है कि पेरिस समझौते के बाद से उत्सर्जन पर कुछ प्रगति हुई है। उन्होंने कहा, नई (एनडीसी) प्रतिबद्धताएं पिछले वाले की तुलना में 2030 तक सालाना 4 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर कम करती हैं। लेकिन यह निश्चित रूप से लक्ष्य से बहुत दूर है। कुल मिलाकर हम उस स्थान से बहुत दूर हैं जहां हमें होना चाहिए।

अगस्त में इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज(आईपीसीसी) की रिपोर्ट के मुताबिक पृथ्वी 2030 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा तक पहुंच सकती है और सदी के मध्य तक लगातार इससे अधिक हो सकती है।

यूएनईपी की रिपोर्ट में कहा गया है कि भले ही सभी कुल शून्य उत्सर्जन के वादे को पूरा कर ले, लेकिन 66 फीसदी तक संभावना है कि तापमान में वृद्धि को 2.2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित किया जा सकता है।

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में जियोसिस्टम साइंस के प्रोफेसर माइल्स एलन ने कहा कि हमारे जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए वैश्विक स्तर पर जीवाश्म ईंधन की खपत को कम करने की कोई इच्छा नहीं है। इस साल की एमिशन गैप रिपोर्ट सबसे शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस, मीथेन द्वारा दुनिया भर में तापमान बढ़ाने की भूमिका पर केंद्रित है।

यह पाया गया कि मौजूदा तकनीकी उपाय मानव निर्मित मीथेन उत्सर्जन को प्रति वर्ष 20 फीसदी तक कम कर सकते हैं। इसमें यह भी कहा कि जिन 49 देशों ने नेट-जीरो प्रतिज्ञा की है, उनमें से कई की योजनाएं अस्पष्ट हैं और एनडीसी में इसका असर नहीं दिखता हैं।

कैम्ब्रिज सेंटर फॉर एनवायरनमेंट, एनर्जी एंड नेचुरल रिसोर्स गवर्नेंस के जोआना डेप्लेज ने कहा कि कुल मिलाकर, एक कुल शून्य लक्ष्य के साथ महत्वाकांक्षी 2030 लक्ष्यों की दिशा में तत्काल नीतिगत कार्रवाई होनी चाहिए।