जलवायु

रंगीन से सफेद होती मूंगा चट्टानें, वैज्ञानिकों ने की दुनिया की चौथी कोरल ब्लीचिंग घटना की पुष्टि

Lalit Maurya

नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान की वजह से दुनिया चौथी वैश्विक कोरल ब्लीचिंग घटना का सामना कर रही है। यह एक ऐसी घटना है जिसमें ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ से लेकर हिन्द महासागर में तंजानिया, इंडोनेशिया तक फैली दुनिया की रंगीन मूंगा चट्टानें सफेद होती जा रही हैं।

गौरतलब है कि पिछले दस वर्षों में यह दूसरा मौका है जब इस तरह की घटना सामने आई है। वहीं अब तक इस तरह की चार घटनाएं रिकॉर्ड की गई हैं। वैश्विक स्तर पर कोरल ब्लीचिंग यानी मूंगा विरंजन की पहली घटना 1980 के दशक की शुरूआत में दर्ज की गई थी। इन घटनाओं का प्रभाव सैकड़ों से हजारों किलोमीटर तक दर्ज किया जाता है।

एनओएए और इंटरनेशनल कोरल रीफ इनिशिएटिव (आईसीआरआई) ने संयुक्त रूप से वैश्विक स्तर पर हो रही इस कोरल ब्लीचिंग की घटना की घोषणा की है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कोरल ब्लीचिंग यानी मूंगा विरंजन की किसी घटना को वैश्विक घटना के रूप में तभी वर्गीकृत किया जाता है जब 365 दिनों के दौरान अटलांटिक, प्रशांत और भारतीय तीनों महासागरों में ब्लीचिंग की महत्वपूर्ण घटनाएं दर्ज की जाती हैं।

कोरल रीफ वॉच के मुताबिक 2023 के मध्य से कम से कम 53 देशों और क्षेत्रों ने अपनी प्रवाल भित्तियों में बड़े पैमाने पर ब्लीचिंग का अनुभव किया है, क्योंकि जलवायु में आते बदलावों की वजह से समुद्र की सतह का पानी गर्म हो गया है। इस बारे में जारी रिपोर्ट के मुताबिक 2023 की शुरुआत से दुनिया भर के कई उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में मूंगा विरंजन (कोरल ब्लीचिंग) की घटना देखी गई है।

इन क्षेत्रों में फ्लोरिडा, कैरेबियन, ब्राजील, पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में मेक्सिको, अल साल्वाडोर, कोस्टा रिका, पनामा और कोलंबिया के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ और दक्षिण प्रशांत के बड़े हिस्से जिनमें फिजी, वानुअतु, तुवालु, किरिबाती, समोआ और फ्रेंच पोलिनेशिया आदि शामिल हैं।

इसके साथ ही कोरल ब्लीचिंग का सामना करने वाले क्षेत्रों में लाल सागर, फारस और अदन की खाड़ी के बड़े हिस्से शामिल हैं। एनओएए ने तंजानिया, केन्या, मॉरीशस, सेशेल्स, ट्रोमेलिन, मैयट और इंडोनेशिया के पश्चिमी तट सहित हिंद महासागर बेसिन के अन्य क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर हो रही ब्लीचिंग की पुष्टि की है।

इस बारे में एनओएए की कोरल रीफ वॉच (सीआरडब्ल्यू) के समन्वयक, डॉक्टर डेरेक मंजेलो ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से जानकारी दी है कि, “फरवरी 2023 और अप्रैल 2024 के बीच, सभी प्रमुख महासागरों के उत्तरी और दक्षिणी दोनों गोलार्धों में कोरल ब्लीचिंग की महत्वपूर्ण घटनाएं दर्ज की गई है।“ उनके मुताबिक वैश्विक महासागर के 54 फीसदी से अधिक रीफ क्षेत्रों में तापमान ब्लीचिंग के स्तर तक पहुंच गया है।

बढ़ते तापमान का दंश झेलती प्रवाल भित्तियां

उन्होंने जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान के प्रभावों पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि कि जैसे-जैसे समुद्र का तापमान बढ़ रहा है। उसके साथ ही कोरल ब्लीचिंग की इन घटनाओं का होना बेहद आम होता जा रहा है। इसके साथ ही यह घटनाएं पहले से ज्यादा गंभीर होती जा रही हैं।

उनके मुताबिक जब ब्लीचिंग की यह घटनाएं गंभीर या लंबी होती हैं, तो वे प्रवाल भित्तियों की मृत्यु का कारण बन सकती हैं। इससे उन समुदायों पर असर पड़ता है जो अपनी आजीविका के लिए इन मूंगा चट्टानों पर निर्भर हैं।

रिपोर्ट के अनुसार विशेष रूप से व्यापक पैमाने पर होने वाली कोरल ब्लीचिंग की घटनाएं अर्थव्यवस्था, आजीविका और खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ उससे जुड़ी अन्य चीजों को भी प्रभावित करती हैं। हालांकि इस ब्लीचिंग की वजह से हमेशां इन प्रवाल भित्तियों की मृत्यु नहीं होती। ऐसे में यदि इसकी वजह से होने वाला तनाव कम हो जाता है तो यह प्रवाल भित्तियां दोबारा ठीक हो सकती हैं। ऐसे में यह पारिस्थितिकी तंत्र सम्बन्धी आवश्यक सेवाएं प्रदान करना आगे भी जारी रख सकती हैं।

एनओएए के कोरल रीफ कंजर्वेशन प्रोग्राम (सीआरसीपी) के निदेशक जेनिफर कोस का कहना है कि, "प्रवाल भित्तियों को लेकर जलवायु मॉडल के पूर्वानुमान वर्षों से सुझाव दे रहे हैं कि जैसे-जैसे समुद्र गर्म होगा, वैसे-वैसे ब्लीचिंग प्रभाव, उसकी आवृत्ति और परिमाण बढ़ेगा।"

वैज्ञानिकों को अंदेशा है कि यदि बढ़ते उत्सर्जन को न रोका गया तो सदी के अंत तक पूरी यह खूबसूरत प्रवाल भित्तियां पूरी तरह विलुप्त हो जाएंगी। आशंका है कि अगले दो दशकों में इनकी 70 से 90 फीसदी आबादी खत्म हो सकती है।

जानिए क्या होता है कोरल ब्लीचिंग

बता दें समुद्र में बढ़ते तापमान की वजह से दुनिया भर में कोरल्स यानी प्रवाल भित्तियां जिन्हें मूंगे की चट्टानों के नाम से भी जाना जाता है वो अनिश्चितताओं का सामना कर रही हैं। ब्लीचिंग की घटना के दौरान पानी में बढ़ती गर्मी से मूंगे पर जोर पड़ता है, जिससे उनके अंदर रहने वाले सहजीवी शैवाल उनसे बाहर निकल जाते हैं।

यह शैवाल कोरल्स को रंग और ऊर्जा प्रदान करते हैं। ऐसे में इसकी वजह से आमतौर पर रंग बिरंगी दिखने वाली यह प्रवाल भित्तियां  सफेद पड़ने लगती हैं, इसी को ‘कोरल ब्लीचिंग’ कहा जाता है।

हालांकि यह सफेद प्रवाल भित्तियां मृत नहीं होती, लेकिन उनके मरने की सम्भावना सबसे अधिक होती है। अत्यधिक ब्लीचिंग अक्सर इन प्रवाल भित्तियों में बीमारी और मृत्यु का कारण बन सकती है। देखा जाए तो आज जलवायु परिवर्तन वजह से दुनिया भर में ब्लीचिंग की यह घटनाएं बेहद आम, गंभीर और व्यापक होती जा रही हैं।

इसी तरह 2014 से 2017 के बीच सामने आई वैश्विक कोरल ब्लीचिंग की घटना रिकॉर्ड की अब तक की सबसे लंबी, व्यापक घटना थी, जिसने सबसे ज्यादा कोरल्स को नुकसान पहुंचाया था। आज यह घटनाएं उन क्षेत्रों में भी प्रवाल भित्तियों को अपना निशाना बना रही हैं, जहां पहले इनसे खतरा नहीं था।

गौरतलब है कि बढ़ता तापमान और जलवायु में आता बदलाव पहले ही इन प्रवाल भित्तियों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा रहा है। स्टेटस ऑफ कोरल रीफ्स ऑफ द वर्ल्ड: 2020 रिपोर्ट के मुताबिक 2009 से 2018 के बीच करीब 11,700 वर्ग किलोमीटर में फैली प्रवाल भित्तियां अब पूरी तरह खत्म हो चुकी हैं, जिसके लिए हम इंसान ही जिम्मेवार हैं।

वहीं दुनिया के दस क्षेत्रों में मौजूद प्रवाल भित्तियों के विश्लेषण से पता चला है कि जिस तरह से समुद्र के तापमान में वृद्धि हो रही है उससे कोरल ब्लीचिंग की घटनाओं में वृद्धि हुई है, यह प्रवाल भित्तियों को हो रहे नुकसान का सबसे बड़ा कारण है।

ऐसी ही घटना 2023 में फ्लोरिडा में देखने को मिली जब वहां आया लू का कहर बेहद घातक था। यह घटना पहले शुरू हुई और लम्बे समय तक चली, साथ ही इस घटना का असर पहले से कहीं ज्यादा गंभीर था।

पर्यावरण के साथ-साथ इंसानों के लिए क्यों खास हैं यह प्रवाल भित्तियां

एनओएए ने जानकारी दी है कि उसने फ्लोरिडा में प्रवाल भित्तियों पर पड़े वैश्विक जलवायु परिवर्तन और स्थानीय तनाव के नकारात्मक प्रभावों को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण प्रगति की है। इसमें कोरल नर्सरी को गहरे, ठंडे पानी में भेजना और अन्य क्षेत्रों में कोरल की रक्षा के लिए सनशेड तैनात करना शामिल है।  

प्रवाल भित्तियां एक खूबसूरत प्रजाति है जो न केवल समुद्री परिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण है। साथ ही यह हम इंसानों के लिए भी बेहद मायने रखती हैं|  देखा जाए तो 100 से भी ज्यादा देशों में फैली यह भित्तियां समुद्र तल के सिर्फ 0.2 फीसदी भाग को ही कवर करती हैं, पर यह समुद्र में रहने वाली 25 फीसदी प्रजातियों को आधार प्रदान करती हैं। अनुमान है कि यह करीब 830,000 से अधिक प्रजातियों को आवास प्रदान करती हैं।

मूंगा चट्टानें पृथ्वी की सबसे विविध पारिस्थितिक तंत्रों में से एक हैं। जो वैश्विक स्तर पर सालाना 9.8 लाख करोड़ डॉलर के बराबर महत्वपूर्ण पारिस्थितिक, आर्थिक और सामाजिक लाभ प्रदान करती हैं।

वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की गणना के अनुसार धरती पर करीब 85 करोड़ लोग खाद्य सुरक्षा व जीविका के लिए प्रवाल-आधारित इकोसिस्टम पर निर्भर हैं। करीब 100 देश प्रवाल भित्ति की वजह से मौजूद जैव विविधिता के कारण मछली पालन, पर्यटन और तटीय सुरक्षा का लाभ पा रहे हैं।

इन 100 देशों में से एक चौथाई के सकल घरेलू उत्पाद का 15 फीसदी पर्यटन पर निर्भर है। हालांकि आज यह चट्टानें जलवायु परिवर्तन, बेतहाशा पकड़ी जा रही मछलियां और धरती पर इंसानी गतिविधियों के कारण बढ़ते प्रदूषण की मार झेल रही हैं।

यही वजह है कि एनओएए कोरल रीफ कंजर्वेशन प्रोग्राम (सीआरसीपी) ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए इनके प्रबंधन से जुड़ी प्रथाओं को अपनाया है। साथ ही 2018 में बनाई रणनीति में कोरल की बहाली पर अधिक जोर दिया है।

2019 में इनके प्रबंधन और बहाली को लेकर एक रिपोर्ट भी जारी की गई थी। इसमें इनके प्रबंधन और बहाली के लिए सिफारिश की थी। प्रेस विज्ञप्ति में इस बात की भी उम्मीद जताई गई है कि 2024 के मध्य तक अल नीनो, ला नीना में परिवर्तित हो सकता है। यह बदलाव भूमध्यरेखीय प्रशांत जल के तापमान में गिरावट का कारण बन सकता है।

उम्मीद है कि इसकी वजह से प्रवाल भित्तियों पर गर्मी का तनाव कम हो सकता है। इसके अलावा हिंद महासागर डिपोल का एक प्रत्याशित नकारात्मक चरण पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में पानी के ठंडा होने की वजह बन सकता है, जो इन प्रवाल भित्तियों के लिए मददगार साबित हो सकता है।