भारत द्वारा राष्ट्रीय निर्धारित योगदान यानी एनडीसी में जो अपडेट किए हैं वो केवल कागजी शेर हैं। बल्कि वो पिछली प्रतिबद्धता की तुलना में उत्सर्जन को कम करने के लिए कहीं ज्यादा नाकाफी हैं।
यह जानकारी जलवायु परिवर्तन पर मिस्र के शर्म अल-शेख में चल रहे संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के 27वें सम्मेलन (कॉप 27) में जारी एक रिपोर्ट में सामने आई है।
इस बारे में क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर (कैट) ने रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि भारत ने पिछले साल कॉप-26 में 2070 के लिए घोषित शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य की जानकारी इसमें नहीं दी है।
इस बारे में क्लाइमेट एनालिटिक्स की वरिष्ठ जलवायु नीति विश्लेषक क्लेयर स्टॉकवेल ने डाउन टू अर्थ (डीटीई) से हुई बातचीत में बताया कि “इसमें कोई शक नहीं कि भारत न केवल अपने लक्ष्यों पर पहुंचेगा, बल्कि उससे कहीं ज्यादा हासिल कर लेगा। हालांकि इसके बावजूद 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल करने के लिए उसके लक्ष्यों को और अधिक महत्वाकांक्षी होने की आवश्यकता है।“
पेरिस समझौते के तहत औद्योगिक काल से पहले की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे और 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। हालांकि इस बारे में उनका कहना है कि यदि निष्पक्ष तरीके से देखें तो भारत को स्वतंत्र रूप से ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है। इसके लिए देश को अंतरराष्ट्रीय फण्ड की मदद मिलनी चाहिए।
उन्होंने इस बारे में समझाते हुए कहा कि, “हम भारत सरकार से जो उम्मीद कर रहे हैं, वह यह है कि वे अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को आगे बढ़ाएं और समर्थन के लिए अधिक अंतर्राष्ट्रीय कोष प्राप्त करें।“ ग्लासगो में कॉप-26 के दौरान भारत ने पांच नए लक्ष्यों की घोषणा की थी। उनमें से कुछ तो 2022 में अपडेट किए एनडीसी में प्रस्तुत किए गए हैं।
इनमें 2005 के स्तर से अपनी जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता को 2030 तक 45 फीसदी करना और 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित कुल ऊर्जा क्षमता को 50 फीसदी तक करना शामिल है। इस बारे में स्टॉकवेल का कहना है कि, “हमें उत्सर्जन में और कमी लाने के लिए इन लक्ष्यों को और मजबूत करने की जरूरत है।“
रिपोर्ट के अनुसार भारत ने अपनी अक्षय ऊर्जा की स्थापना में प्रगति दिखाई है, लेकिन सरकार की योजना ऊर्जा क्षेत्र में कोयला क्षमता में इजाफा करने और जीवाश्म गैस को बढ़ाने की है।
गौरतलब है कि भारत और 27 अन्य देशों ने इस साल अपने एनडीसी को अपडेट किया है, जिनमें से 10 का विश्लेषण कैट ने किया है। इनमें से पांच देशों ने अपने एनडीसी लक्ष्यों को मजबूत किया है, जबकि भारत सहित बाकी देशों ने अपनी महत्वाकांक्षा में कोई इजाफा नहीं किया है।
इस बारे में न्यू क्लाइमेट इंस्टीट्यूट की मिया मोइसियो ने एक प्रेस वार्ता में कहा कि सबसे बड़े उत्सर्जक देशों अमेरिका, यूरोपीय संघ और चीन ने अपने अपडेट लक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए हैं।
वहीं ऑस्ट्रेलिया, थाईलैंड, संयुक्त अरब अमीरात और नॉर्वे ने अपनी अपडेटेड प्रतिबद्धताओं में महत्वाकांक्षा दिखाई है, लेकिन इसके बावजूद वो अभी भी पेरिस समझौते के लक्ष्यों के अनुरूप नहीं हैं। इस बारे में विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि 2030 के लिए जो मौजूदा लक्ष्य हैं उनके तहत दुनिया तापमान में 2.4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि की ओर अग्रसर है।
स्टॉकवेल का कहना है कि, “यह पिछले साल की तरह ही है, ग्लासगो के बाद से इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है।” हालांकि, कुछ देशों ने बाध्यकारी लक्ष्यों की घोषणा की है। लेकिन इसके बावजूद हम 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के रास्ते पर हैं।
कैट के सहयोगी संगठन न्यूक्लाइमेट इंस्टीट्यूट से जुड़े निकोलस होह्नेस ने अपने एक बयान में कहा है कि, “यह जलवायु पर बहुत कम कार्रवाई का वर्ष रहा है। 2030 के लिए करीब-करीब कोई अपडेटेड राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्य जारी नहीं किया गया और कोयला कोयला मुक्त, स्वच्छ कारों और मीथेन जैसे मुद्दों पर ग्लासगो पहल की भागीदारी में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है।“
कैट ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि विकसित देशों से जलवायु वित्त मिल रहा है वो विकासशील देशों के उत्सर्जन में कटौती करने के लिए नाकाफी है। साथ ही रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अमेरिका, रूस और ऑस्ट्रेलिया से इसके लिए मिल रहा फण्ड बहुत ज्यादा कम है।
वहीं यूरोपीय संघ, जर्मनी, नॉर्वे और स्विट्जरलैंड से भी जो मिल रहा है, वो इसके लिए अपर्याप्त है। केवल चार देशों कनाडा, न्यूजीलैंड, जापान और यूनाइटेड किंगडम ने ही अपने हिस्से का पर्याप्त फंड उपलब्ध कराया है।
2009 में, विकसित देशों ने विकासशील देशों में जलवायु कार्रवाई का समर्थन करने के लिए क्लाइमेट फण्ड में करीब 8 लाख करोड़ रुपए (10,000 करोड़ डॉलर) जुटाने का वचन दिया था, लेकिन यह लक्ष्य भी अब तक पूरा नहीं हुआ है। मोइसियो का कहना है कि "क्लाइमेट फाइनेंस में नेतृत्व की कमी है।" उन्होंने कहा कि वे यहां कॉप 27 में 10,000 करोड़ डॉलर के लक्ष्य को हासिल किए बिना आए हैं।
1 डॉलर = 80.88 भारतीय रुपए