जलवायु

कॉप-26 का रिपोर्ट कार्ड: वनों को सिर्फ घोषणाओं की नहीं, क्रियान्वयन की जरूरत है

जितना फंड लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए चाहिए उससे कई गुणा ज्यादा फंड वनों की कटाई करने वाली कंपनियों पर खर्च किया जा रहा है

Richard Mahapatra

ग्लासगो में आयोजित संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कंवेशन ऑन क्लाइमेट (यूएनएफसीसी) कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज (कॉप-26) का जो सबसे प्रमुख परिणाम सामने आया है, वो यह कि पृथ्वी पर 85 प्रतिशत वनों की हिस्सेदारी वाले 105 देशों के नेताओं ने ग्लासगो घोषणा पर हस्ताक्षर किए हैं। यह घोषणा वनों की कटाई और भूमि क्षरण को 2030 तक पूर्ण रूप से रोकने के लिए हस्ताक्षर करने वाले देशों को बाध्य करती हैं।

यह ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के साथ साथ समुदायों के वन आधारित अस्तित्व को बनाए रखने के लिए पोषित किया जाने वाला समझौता है, जिसमें दुनिया की 25 प्रतिशत आबादी शामिल है। प्रत्येक साल जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न होने वाले कार्बन डाई आक्साइड के एक तिहाई हिस्से को वन अवशोषित कर लेते हैं। लेकिन इस विशाल कार्बन अवशोषक सिंक को हम प्रति मिनट 27 फुटबॉल के आकार के मैदानों के बराबर की दर से सोखते जा रहे हैं।

वर्तमान में कुल कार्बन उत्सर्जन का 23 प्रतिशत भूमि उपयोग गतिविधियों जैसे लॉगिंग (पेड़ों की कटाई)वनों की कटाई और खेती से आता है। 2015 में हस्ताक्षरित पेरिस समझौते का अनुच्छेद पार्टियों को वन संरक्षण और सुरक्षा के द्वारा वनों की कटाई और वन क्षरण से होने वाले उत्सर्जन’ को रोकने के लिए बाध्य करता है। नया समझौता इसी जनादेश के विस्तार के तर्क के रूप में देखा जा सकता है।

इस घोषणा पर हस्ताक्षर करने वालों में वे देश भी शामिल हैं जो वनों की कटाई के लिए जिम्मेदार होने के साथ साथ उन वन उत्पादों के उपभोक्ता भी हैंजो जंगलों के सफाये के लिए जिम्मेदार हैंजैसे- ब्राजीलचीनयूरोपीय यूनियनरूस और संयुक्त राज्य अमेरिका। उदाहरण के लिए, यूनाइटेड किंगडम और यूरोपीय संघ के कई देश उर्जा उत्पादन के लिए वुडी बायोमास के सबसे बड़े उपभोक्ता हैंजिसका महत्वपूर्ण हिस्सा स्थानीय जंगलों से आता है।

इसी तरह अमेरिकाकनाडा और रूस जैसे हस्ताक्षरकर्ता देश निर्यात के लिए लकड़ी के छर्रो के अग्रणी उत्पादक देश हैंजो कि कोयले के विकल्प के रूप में जलाये जाते हैं।

इससे आगे बढ़ते हुए वनों की कटाइ के लिए जिम्मेदार प्रमुख उत्पादों के वैश्विक व्यापार में 75 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने 28 देशों ने एक नए वनकृषि और उपभोक्ता वस्तु व्यापार (एफएसीटीआईस्टेटमेंट पर हस्ताक्षर किपा है। एफएसीटी (एफएसीटीस्टेटमेंट स्थायी व्यापार देने और जंगलों पर दबाव कम करने के लिए छोटे किसानों के समर्थन और आपूर्ति श्रृंखला की पारदर्शिता में सुधार सहित” सामान्य कार्यों को निर्धारित करता है।

इसमें उत्याद की वैश्विक श्रृंखला में वनों की कटाई को कम करना शामिल है। इसी को जारी रखते हुए 30 वित्तीय संस्थानों ने भीजिनकी कुल संपत्ति 8-7 खरब डालर से अधिक हैउत्पाद-संचालित वनों की कटाई में निवेश को समाप्त करने की सहमति प्रदान कर दी है।

इसके साथ ही इसे संभव बनाने के लिए 2021- 2025 के दौरान 19 अरब डालर की निजी और सार्वजनिक फंड की उपलब्धता की प्रतिबद्धता प्रदर्शित की गई है।।इसमें से 12 अरब डालर 12 देशों के सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों से और शेष 30 वित्तीय संस्थानों से उपलब्ध होंगे। लेकिन संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुंटारेस ने चेतावनी देते डुए कहा है “ घोषणा पर हस्ताक्षर करना आसान काम था परन्तु इस ग्रह और इसपर निवास करने वाले लोगों के लिए इस घोषणा को जल्द से जल्द लागू करना सबसे जरूरी है।

2014 में भी वनों के लिए न्यूयॉर्क घोषणा परजिसमें 2020 तक वनों की कटाई को 50 प्रतिशत काम करने और 2030 तक इसे पूरी तरह से रोकने पर सहमति हुई थी, 200 से अधिक सार्वजनिक एवं सिविल सेवा समर्थकों ने हस्ताक्षर किए थे। इस स्वैच्छिक राजनीतिक घोषणा को संयुक्त राष्ट्र महासचिव के जलवायु शिखर सम्मेलन में शामिल किया गया था।

ब्राजीलरूस और चीन ने इस घोषणापत्र पर हस्ताक्षर नहीं किया था लेकिन ग्लास्गो घोषणा पर ये भी सहमत हैं। याद रखने के लिए हमारे पास ऐसे कई वादे हैं: 2005 में संयुक्त राष्ट्र वन फोरम ने 2015 तक दुनिया भर में वनों के नुकसान को उलटने के लिए प्रतिबद्धता दर्ज कराई थी; 2008 में 67 देश 2020 तक वनों की कटाई को शून्य तक पहुंचाने पर सहमत हुए थे।

इससे पूर्व बैंकों ने स्वैच्छिक सॉफ्ट कमोडिटीज कंपैक्ट पर भी हस्ताक्षर किए थे जिसमें उन्होंने वनों की कटाई को वास्तविक रूप में शून्य तक पहुंचाने के लिए तार के तेललकड़ी के उत्पादों और सोया जैसे वनों की कटाई क्षेत्रों में निवेश कम करने की प्रतिबद्धता जताई थी।

अगर 2014 के वादों पर अमल किया जाता तो 2020 तक 150 मिलियन हेक्टेयर खराब भू-भाग और वन भूमि की पुर्नबहाली हो जाती और 2030 तक 350 मिलियन हेक्टेयर जिससे 2030 तक प्रति वर्ष 70 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के बराबर कमी आ जाती। लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा। इस वादे के वर्ष के आकलन के अनुसार 2019 में सकल वृक्ष आवरण हानि की वैश्विक दर में 43% की वृद्धि हुई।

इसका परिणाम यह हुआ कि 2014 से 2018 के बीच उष्णकटिबंधीय वनों के आवरण के नुकसान के कारण प्रतिवर्ष 4.7 गीगा टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ। एक मूल्यांकन के अनुसार यह उत्सर्जन 2017 में यूरोपीय यूनियन के द्वारा किए गए कुल उत्सर्जन से भी अधिक है। इनमें से लगभग आधा उत्सर्जन आद्र उष्णकटिबंधीय प्राथमिक वनों के भीतर हुआ।

ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच ने सूचित किया कि 2020 में वनों की कटाई से दुनिया को लगभग 25.9 मिलियन हेक्टेयर (लगभग 100,000 वर्ग मील) के वृक्ष आवरण (लगभग कोलाराडो के क्षेत्रफलके आकार के बराबर) क्षेत्र का नुकसान हुआ जिसका अधिकांश हिस्सा उष्ण कटिबंध में पड़ता है।

ग्लोबल विटनेस में फॉरेस्ट पॉलिसी एंड एडवोकेसी के प्रमुख जो ब्लैकमैन के कथनानुसार – “हालांकि ग्लासगो घोषणा में समृद्ध देशों बड़े उपभोक्ता बाजारों और वित्तीय केंद्रों के हस्ताक्षर कर्ताओं की एक प्रभावी श्रृंखला है फिर भी पहले की असफल घोषणाओं की तरह इसके भी असफल होने का खतरा बरकरार है अगर इसमें का काटने वालों दांतों की कमी रही तो।

ब्लैकमैन ने सुझाव दिया कि घोषणाओं के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाते हुए देशों को ऐसे मजबूत और बाध्यकारी कानून बनाने चाहिए जो कंपनियों और वित्तीय संस्थाओं के लिए वनों की कटाई को बढ़ावा देने की प्रक्रिया को अवैध बनाए ।

निजी और सार्वजनिक के साथ-साथ स्वतंत्र रूप से वित्तीय संस्थानों से प्राप्त निधि का उपयोग इस तरह से किया जाना चाहिए जो यह सुनिश्चित करें कि घोषणा अपने उद्देश्य को प्रभावी रूप से प्राप्त करें। इसके उलट अधिक से अधिक धन उन संगठनों में डाला जा रहा है जो वनों की कटाई के कारण बनते हैं। ताजा आकलन में पाया गया कि वनों की कटाई में लगी कंपनियों में पहले की अपेक्षा 10 गुना अधिक राशि डाली जा रही है।

पेरिस क्लाइमेट समझौते के समय से ही यूकेयूएसए और चीन में स्थित बैंकों ने एग्रो बिजनेस से जुड़ी वैसी कंपनियों में जो वनों की कटाई से संबंधित थी और मानवाधिकार हनन से जुड़ी थी में 157 बिलियन डॉलर का निवेश कर 1.74 बिलियन डॉलर की कमाई की। इन बैंकों में से बहुत सारे बैंकों की क्न कटाई पर रोक की नीति रही है या यह सॉफ्ट कमोडिटीज काम्पैक्ट के हस्ताक्षरकर्ता हैं।

विभिन्न देशों ने नई घोषणा पर भी चिंता जताई है खासकर उन्होंने जिन पर विकास के लिए वनों की कटाई का आरोप लगाया जा रहा है। इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोगे ने सीओपी26 में कहा; “लाखों इंडोनेशियाई अपनी जीविका के लिए वानिकी क्षेत्रों पर निर्भर करते हैं। कोई भी नई घोषणा बाजार प्रोत्साहन के साथ होनी चाहिए ना कि अमीर देशों

2030 तक इंडोनेशिया को शून्य वन कटाई के लक्ष्य के लिए मजबूर करना सर्वथा अनुचित और अन्याय पूर्ण है। इंडोनेशिया के पर्यावरण मंत्री नूर बाया बकर ने ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन को बताया अगर हम चाहते हैं कि हमारे जंगल बचे रहें तो उन्हें मूल्यवान बना रहना चाहिए। विकसित दुनिया ने हमारे जंगलों को लूटा है।

घोषणा पर हस्ताक्षर करने वाले देशों में से एक गेबॉन के राष्ट्रपति अली बोंगोजोकि लकड़ी के निर्यात के लिए जंगलों की कटाई पर जोर देने के लिए खबरों में रहेने कहा हम संतुलित रूप से निर्यात जारी रखते हुए जंगलों को बचाने की योजना बना रहे हैं।

भारत इस घोषणा से दूर ही रहा है। नाम ना छापने की शर्त पर डाउन टू अर्थ से बात करने वाले एक भारतीय प्रतिनिधि के अनुसार जाहिर तौर पर हमने यह कदम इसलिए उठाया है क्योंकि हम घोषणा के तैयार पाठ में बुनियादी ढांचे के विकास और संबंधित गतिविधियों को वनों के संरक्षण से जोड़ने के प्रयास से खुश नहीं थे।

घोषणापत्र के अंतिम पाठ में अस्थाई उत्पादन और खपत बुनियादी ढांचे के विकास व्यापार के साथ-साथ वित्त और निवेश से संबंधित क्षेत्रों में परिवर्तनकारी कार्रवाई को जोड़ा गया। उन्होंने कहा व्यापार जलवायु परिवर्तन और जंगल के मुद्दों के बीच प्रस्तावित संबंध भारत के लिए और अस्वीकार्य थे जो कि विश्व व्यापार संगठन के अंतर्गत आता है।

भारत वन संरक्षण अधिनियम 1980 में बदलाव के लिए विचार कर रहा है ताकि वह अपने प्रमुख परियोजनाओं को समायोजित करने के लिए और अधिक खिड़कियों की व्यवस्था कर सके। भारत अगर इस घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करता तो उसे इस अधिनियम में बदलाव से पीछे धकेला जा सकता था।