जलवायु

कॉप 27: 'चोरी किया जा रहा है हमारा भविष्य', शर्म अल-शेख में गूंजी युवाओं की आवाज

युवा जलवायु वार्ताकारों ने गुरुवार को जलवायु हानि व क्षति के मुद्दे बड़ी बेबाकी से वैश्विक नेताओं के सामने अपनी बात रखी जिसमें उन्होंने इस पर ठोस कार्रवाई करने का भी आह्वान किया

Lalit Maurya

हाथ में बैनर, तख्तियां और लाउडस्पीकर लिए, जलवायु प्रभावों की विचलित करने देने वाली आपबीती के साथ, युवा जलवायु कार्यकर्ताओं ने 11 नवंबर 2022 को कॉप 27 सम्मेलन के दौरान, पुरजोर तरीके से अपनी बात वैश्विक नेताओं के सामने रखी। युवा जलवायु वार्ताकारों ने जलवायु ‘हानि व क्षति’ के मुद्दे पर ठोस कार्रवाई करने का आह्वान किया।

गौरतलब है कि मिस्र के तटीय शहर शर्म अल-शेख में संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन का 27वें सम्मेलन (कॉप-27) चल रहा है। इसके दौरान 11 नवंबर 2022 को अनेक विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं।

इन्ही प्रदर्शनों के दौरान एक युवा अफ्रीकी कार्यकर्ता ने क्षोभ प्रकट करते हुए कहा कि जलवायु आपदाओं की वजह से उनके देश को बर्बादी का सामना करना पड़ रहा है। इससे निपटने के लिए आखिरकार विश्व बैंक और अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से कर्ज लेना पड़ता है। उनका कहना था कि, “जलवायु संकट की जो कीमत चुकानी पड़ रही है उसके चलते हमारे देश विकास नहीं कर सकते… हमसे हमारे भविष्य को चुराया जा रहा है, यह अन्याय है।“  

देखा जाए तो जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा खामियाजा वो देश भुगत रहे हैं, जिसके लिए धनी देश जिम्मेवार हैं। देखा जाए तो पिछले कुछ देशों में समुद्र के बढ़ते जलस्तर और मौसम की चरम घटनाओं का कहर पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा बढ़ गया है। ऐसे में विकाशील देश लम्बे समय से मुआवजे की मांग करते रहे हैं। इसी भुगतान के मुद्दे को 'हानि व क्षति' के तहत उठाया जा रहा है। 

फिलहाल पाकिस्तान, बांग्लादेश, भारत सहित अनेक अफ्रीकी देशों को जलवायु से जुड़े आपदाओं के कारण हुई जान माल की हानि के साथ पुनर्निर्माण की भारी कीमतों से भी जूझना पड़ रहा है। ऐसे में युवाओं का मानना है कि यह समय कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार बड़े प्रदूषक देशों को इस 'इकोलॉजिकल डेब्ट' को चुकाने का है। 

इस वर्ष युवा कार्यकर्ताओं की पुकार बड़ी स्पष्ट है वो ‘हानि व क्षति’ के लिए वित्त पोषण व्यवस्था चाहते हैं, ताकि विकासशील देशों को आसानी से अतिरिक्त वित्तीय संसाधन मिल सकें। इससे जलवायु संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहे देशों को बदलती जलवायु के अनुसार ढलने और युवाओं के जीवन में बदलाव की आशा पैदा होगी।

वहीं फिलिपीन्स के एक कार्यकर्ता का कहना है कि, “हम और ऋण और उधारी नहीं चाहते। 'हानि व क्षति' के लिए अभी भुगतान कीजिए।” युवाओं, किशोरों, और बच्चों ने कॉप 27 सम्मेलन स्थल के लगभग हर कोने, हर हिस्से में अपनी आवाज को बुलन्द किया। उन्होंने ना केवल विरोध प्रदर्शन के जरिए अपनी आवाज उठाई, बल्कि संगीत, नृत्य, रंगबिरंगी पोशाकों और कृतियों के सहारे भी वैश्विक नेताओं तक अपने संदेश पहुंचाए।

तीन गैर-सरकारी संगठनों ने जानकारी दी कि इस सम्मेलन में भाग लेने वाले पंजीकृत प्रतिभागियों में 600 जीवाश्म ईंधन की पैरवी करने भी हैं। देखा जाए तो यह आंकड़ा पिछले वर्ष की तुलना में 25 फीसदी ज्यादा है।

28 वर्षों में जोखिम भरे क्षेत्रों में रहने को मजबूर होंगें 300 करोड़ लोग

गौरतलब है कि कॉप 27 सम्मेलन के दौरान गुरूवार को ‘युवा व विज्ञान दिवस’ की थीम के अवसर पर एक नई जलवायु विज्ञान रिपोर्ट भी जारी की गई है। इस रिपोर्ट में ‘हानि व क्षति’ के मुद्दे पर कारगर कार्रवाई को एक अहम और तात्कालिक अनिवार्यता बताया है।

वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि दुनिया भर जलवायु हानि और क्षति पहले ही हो रही है और मौजूदा अनुमानों के अनुसार वो समय के साथ कहीं ज्यादा बढ़ जाएगी। देखा जाए तो अनेक प्रकार की हानि और क्षति का आर्थिक आंकलन किया जा सकता है, मगर ऐसी गैर-आर्थिक हानि और क्षति भी हैं जिन्हें बेहतर ढंग से समझने और हिसाब रखने की जरूरत है। इसे देखते हुए शोधकर्ताओं ने इस विषय पर समन्वित, वैश्विक नीतिगत उपायों की अहमियत को रेखांकित किया है।

रिपोर्ट से जुड़े शोधकर्ताओं के अनुसार जलवायु में आते बदलावों के चलते होने वाली हजारों लोगों की मौत कोई छलावा नहीं है। जलवायु सम्मलेन में यह विषय चर्चा के केंद्र में होना चाहिए। वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि अगले 28 वर्षों में करीब 300 करोड़ लोग ऐसे स्थानों पर रखें को मजूबर होंगें जो क्षेत्र जलवायु से जुड़े जोखिमों के मामले में सर्वाधिक संवेदनशील हैं। देखा जाए तो यह संख्या मौजूदा आंकड़े से दोगुणी है।

इस बारे में यूएनएफसीसीसी प्रमुख साइमन स्टिले का कहना है कि, “मैं कॉप 27 में 'हानि व क्षति' के मुद्दे को एजेंडा में शामिल करने के लिए पक्षों की सराहना करता हूं।" साथ ही उन्होंने सचेत भी किया है कि 'हानि व क्षति’ के मुद्दे पर कार्रवाई का अर्थ देशों के लिए उत्सर्जन में कटौती की जिम्मेवारी से बचना कतई भी नहीं है।

उनके अनुसार अनुकूलन के लिए की गई कार्रवाई कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिए उठाए जा रख क़दमों की जगह नहीं ले सकती है। इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के कारण पैदा होने वाली प्रवास, स्वास्थ्य जोखिमों और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं को भी साझा किया है।