जलवायु

कॉप 27: फूड कोल्ड चेन की कमी के कारण हर साल हो रहा है 100 करोड़ मीट्रिक टन उत्सर्जन

Lalit Maurya

वैश्विक स्तर पर प्रभावी फूड कोल्ड सप्लाई चेन की मदद से हर साल 52.6 करोड़ टन खाद्य पदार्थों की हो रही बर्बादी को टाला जा सकता है। यह नुकसान वैश्विक खाद्य आपूर्ति के करीब 12 फीसदी हिस्से के बराबर है। देखा जाए तो इसकी मदद से 100 करोड़ लोगों को पेट भरा जा सकता है।

इतना ही नहीं खाद्य पदार्थों के होते इस नुकसान और पैदा हो रहे कचरे को कम करके ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भी भारी कटौती की जा सकती है। इतना ही नहीं यदि भारत जैसे विकासशील देश, विकसित देशों की तरह यदि फूड कोल्ड सप्लाई चेन विकसित कर लें तो तो उसकी मदद से हर साल बर्बाद हो रहे 14.4 करोड़ टन खाद्य पदार्थों को बचाया जा सकता है।

पता चला है कि 2017 में कोल्ड स्टोरेज की कमी के कारण खाद्य पदार्थों की हुई हानि और पैदा हुए कचरे से करीब 100 करोड़ मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर उत्सर्जन हुआ था। मोटे तौर पर देखें तो यह ग्रीनहाउस गैसों के कुल वैश्विक उत्सर्जन का करीब दो फीसदी है।

हालांकि देखा जाए तो बुनियादी ढांचे की मदद से इसको टाला जा सकता था। वहीं यूनेप फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट 2021 के मुताबिक यदि खाद्य पदार्थों की होती हानि और बर्बादी एक देश होता, तो वो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत होता।

यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप) द्वारा संयुक्त रूप से जारी रिपोर्ट 'सस्टेनेबल फूड कोल्ड चेन' में सामने आई है। इस रिपोर्ट को मिस्र के शर्म अल-शेख में चल रहे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप 27) के दौरान लॉन्च किया गया है।

रिपोर्ट के अनुसार एक तरफ तो दुनियाभर में बढ़ती जरूरतों और संसाधनों की कमी के कारण करीब 82.8 करोड़ लोग आहार की कमी के कारण खाली पेट सोने को मजबूर हैं। वहीं दूसरी तरफ विडम्बना देखिए कि हर साल मानव उपभोग के लिए उत्पादित सभी खाद्य पदार्थों का करीब 14 फीसदी हिस्सा जरूरतमंदों तक पहुंचने से पहले ही खराब हो जाता है । खाद्य पदार्थों की होती बर्बादी का दबाव भूमि के साथ-साथ जल, जीवाश्म ईंधन और ऊर्जा के बढ़ते उपयोग के रूप में भी पड़ रहा है।  

इतना ही नहीं रिपोर्ट से पता चला है कि 2021 में भुखमरी का सामना करने वाले लोगों की संख्या में 4.6 करोड़ का इजाफा हुआ है। वहीं 2020 में करीब 310 करोड़ लोग स्वस्थ आहार का खर्च वहन करने में असमर्थ हैं। देखा जाए तो यह आंकड़ा 2019 की तुलना में 11.2 करोड़ ज्यादा है। महामारी और उसके कारण उपजे संकट ने मुद्रास्फीति को और बढ़ा दिया है। वहीं रूस-यूक्रेन के बीच जारी जंग ने आग में घी डालने का काम किया है, जिसकी वजह से भुखमरी का संकट कहीं ज्यादा गहरा गया है।

खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन का मुद्दा भी है अहम

ऐसे में यदि भोजन की आती कमी पर अभी ध्यान और पर्याप्त निवेश न किया गया तो अगले 28 वर्षों में हम 200 करोड़ लोगों का पेट कैसे भरेंगें, इस चुनौती का सामना करना पड़ेगा। बढ़ती भुखमरी, लोगों को जीविका और जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए इन सस्टेनेबल फ़ूड कोल्ड सप्लाई चेन की कमी को भरने की जरूरत है।

रिपोर्ट में माना है कि भोजन के  नुकसान और पैदा हो रहे कचरे को कम करने से जलवायु परिवर्तन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, लेकिन यह केवल तभी मुमकिन होगा जब इसके लिए ऐसा नया बुनियादी ढांचा तैयार किया जाए, जो ऐसी गैसों पर आधारित हो जो ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा न देती हों।

इन पर किया निवेश न केवल इन समस्याओं को दूर करने में मदद करेगा साथ ही भोजन की गुणवत्ता, पोषण और सुरक्षा को भी बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इस बारे में यूनेप की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन का कहना है कि, “ऐसे समय में जब वैश्विक समुदाय जलवायु और खाद्य संकटों से निपटने के लिए संघर्ष कर रहा है, उसमें यह सस्टेनेबल फूड कोल्ड सप्लाई चेन एक बड़ा अंतर ला सकती हैं।“

उनके अनुसार यह भोजन के होते नुकसान को कम करके खाद्य सुरक्षा में सुधार कर सकती हैं साथ ही इनसे न केवल रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे, साथ ही यह गरीबी को कम करने के साथ-साथ ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन को भी कम करने में मददगार होंगी।

रिपोर्ट में सस्टेनेबल फूड कोल्ड चेन और उसके फायदे के एक उदाहरण के रूप में भारत का भी जिक्र किया है, जहां एक पायलट प्रोजेक्ट ने रेफ्रिजरेटेड ट्रांसपोर्ट के उपयोग के विस्तार से उत्सर्जन को कम करते हुए कीवी फलों के नुकसान को 76 प्रतिशत तक कम किया है।

वहीं इस बारे में एफएओ के महानिदेशक डोंग्यू क्यू का कहना है कि यह सस्टेनेबल फ़ूड कोल्ड सप्लाई चैन, शाश्वत विकास के लक्ष्यों (एसडीजी) को हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। उनके अनुसार इनकी मदद से कृषि खाद्य प्रणालियों को अधिक कुशल, अधिक समावेशी, जलवायु अनुकूल और बेहतर बनाया जा सकता है।  यह पोषण के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद होगा, जिसका फायदा सभी को होगा।