जलवायु

कॉप-26: क्या है वन और भूमि उपयोग पर ग्लासगो संकल्प, आइए जानते हैं

Dayanidhi

ग्लासगो में चल रहे कॉप-26 जलवायु शिखर सम्मेलन में नेताओं ने वनों और भूमि उपयोग को लेकर संकल्प लिया है। संकल्प में कहा गया है कि 2030 तक दुनिया भर में जंगलों के नुकसान को रोकने और उन्हें बहाल करने के लिए उपाय करने की जरूरत है। सम्मेलन में वनों की कटाई पर रोक लगाने के लिए तत्काल काम करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।

क्यों अहम है जंगलों की भूमिका?
जंगल जलवायु संकट से निपटने में अहम भूमिका निभाते हैं। स्वयंसेवी संगठन - विश्व संसाधन संस्थान के अनुसार, वन लगभग 30 फीसदी कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को अवशोषित करते हैं। वन वातावरण से उत्सर्जन को बाहर निकालते हैं और उन्हें जलवायु को गर्म करने से रोकते हैं।

ग्लासगो में कॉप-26 जलवायु वार्ता में जारी एक संयुक्त बयान में किए गए वादे को ब्राजील, इंडोनेशिया और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य सहित कई देशों के नेताओं का समर्थन प्राप्त है, जो सामूहिक रूप से दुनिया के 85 फीसदी जंगलों का हिस्सा हैं।

नेताओं की ओर से यूके के प्रधान मंत्री कार्यालय द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, वन और भूमि उपयोग पर ग्लासगो नेताओं की घोषणा में कुल 1.3 करोड़ वर्ग मील से अधिक के जंगल शामिल होंगे।

संकल्प का समर्थन कौन कर रहा है?
दुनिया भर के 130 से अधिक देशों के नेताओं ने दशक के अंत तक वनों की कटाई और भूमि क्षरण को रोकने का संकल्प लिया है। जोकि वनों की रक्षा और पुनर्स्थापना में निवेश करने के लिए सार्वजनिक और निजी स्तर पर 19 बिलियन डॉलर रखने की बात कही गई है।  

शिखर सम्मेलन में नेताओं द्वारा कहा गया कि हमें यह स्वीकार करना होगा कि हमारे भूमि उपयोग, जलवायु, जैव विविधता और सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए यह आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि विश्व स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर, स्थायी उत्पादन और खपत के परस्पर जुड़े क्षेत्रों में बदलाव करने की आगे की कार्रवाई की आवश्यकता है। इसमें बुनियादी ढांचे का विकास, व्यापार, वित्त और निवेश और छोटे किसानों, स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों के लिए समर्थन हासिल करना है, जो अपनी आजीविका के लिए जंगलों पर निर्भर हैं और इनको बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।   

क्या भारत इस संकल्प में शामिल हैं?
दुनिया के 10 सबसे अधिक वन-समृद्ध देशों में से एक, भारत ने इस संकल्प से दूर रहने का विकल्प चुना है। भारतीय प्रतिनिधि के अनुसार, भारत ने स्पष्ट रूप से यह कदम उठाया क्योंकि वह बुनियादी ढांचे के विकास और संबंधित गतिविधियों को वनों के संरक्षण के साथ जोड़ने के प्रयास से खुश नहीं है।

संकल्प में किस तरह प्रयास होंगे?
वनों और अन्य स्थलीय पारिस्थितिक तंत्रों का संरक्षण और उनकी बहाली में तेजी लाना

अंतरराष्ट्रीय और घरेलू स्तर पर व्यापार और विकास नीतियों को सुगम बनाना, जो सतत विकास, और टिकाऊ वस्तु उत्पादन और खपत को बढ़ावा देते हैं। जो देशों के पारस्परिक फायदे के लिए काम करते हैं और जो वनों की कटाई और भूमि क्षरण पर रोक लगाने की बात करते हैं।

यह स्वदेशी लोगों के साथ-साथ स्थानीय समुदायों के अधिकारों को मान्यता देते हुए, समुदायों को सशक्त बनाने, लाभदायक, टिकाऊ कृषि के विकास और ग्रामीण आजीविका को बढ़ाना। इसका उपयोग राष्ट्रीय कानून और अंतरराष्ट्रीय उपकरण की तरह हो

इसे लागू करने, यदि आवश्यक हो, स्थायी कृषि को प्रोत्साहित करने, खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने और पर्यावरण को लाभ पहुंचाने के लिए कृषि नीतियों और कार्यक्रमों को नया स्वरूप देना है।

इससे स्थायी कृषि, टिकाऊ वन प्रबंधन, वन संरक्षण और बहाली, स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों के लिए समर्थन हासिल करने के लिए इसकी प्रभावशीलता और पहुंच में सुधार करना है।

वन हानि और क्षरण को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ वित्त को सुगम बनाना, जबकि मजबूत नीतियों और प्रणालियों को सुनिश्चित करना। यह वन, टिकाऊ भूमि उपयोग, जैव विविधता और जलवायु लक्ष्यों को आगे बढ़ाता है।

सम्मेलन में कहा गया कि यह पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक है। इसमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति संवेदनशीलता को कम करना और वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना शामिल है। उन्होंने कहा कि हम जलवायु परिवर्तन से लड़ने, समावेशी विकास करने और वन हानि और भूमि क्षरण को रोकने में सफल हो सकते हैं।

क्या हैं आशंकाएं?
हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि सरकारें और वित्तीय संस्थान इन नए वादों को कैसे निभाएंगे, इस तरह की जवाबदेही अतीत में विफल रहीं हैं। इसके अलावा, वित्तीय सहायता वैश्विक बैंकों और निवेशकों से वनों की कटाई से जुड़ी कंपनियों की कमाई वाली बड़ी रकम की तुलना में कम है।