जलवायु

कॉप-26: एशिया के पहाड़ों पर निर्भर लाखों लोगों के भोजन और ऊर्जा पर पड़ रहा है असर

अध्ययन के मुताबिक एशिया में ऊंचे पहाड़ों की नदी घाटियों के बहाव में लगभग 5 फीसदी प्रति दशक की वृद्धि हुई, जबकि गाद या तलछट प्रवाह में लगभग 12 फीसदी प्रति दशक की वृद्धि हुई।

Dayanidhi

तिब्बती पठार और आसपास के ऊंचे एशियाई पहाड़ों से बहने वाली नदियां, जो दुनिया की एक तिहाई आबादी की जीवनदायिनी है। इन नदियों में 1990 के दशक के बाद से तलछट के बहने में तेजी से वृद्धि हुई है। वैज्ञानिकों की एक टीम ने पाया कि नीचे की ओर बहने वाली गाद या तलछट की मात्रा के 2050 तक दोगुनी से अधिक होने के आसार हैं।

इसका कारण बढ़ता तापमान है, 1950 के बाद से एशिया के ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र या तिब्बती पठार के चारों ओर के तापमान में बढ़ोतरी देखी गई है। यहां फैले हिमालय और हिंदू कुश सहित पांच पर्वत श्रृंखलाओं वाले एशिया में तापमान लगभग 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। जो कि दुनिया भर में तापमान की बढ़ने की दर से दोगुना है। वहीं दूसरी और हम वर्तमान में चल रहे कॉप 26 जलवायु शिखर सम्मेलन में पेरिस समझोते के तहत तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने पर जोर दे रहे हैं।

शोधकर्ताओं ने कहा कि तापमान के चलते अधिक तेजी से ग्लेशियर पिघल रहे हैं, पर्माफ़्रोस्ट पिघल रही है जबकि वार्षिक वर्षा की दर भी बढ़ रही है। शोधकर्ताओं ने बताया कि इन निष्कर्षों का क्षेत्र की जलविद्युत, खाद्य और पर्यावरण सुरक्षा के लिए दूरगामी प्रभाव पड़ते हैं। निष्कर्ष भी तलछट के बहने के महत्व को उजागर करते हैं और यह वैश्विक कार्बन चक्र में संभावित परिवर्तनों में अहम भूमिका निभाते हैं।

यह शोध, सिंगापुर के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किया गया है और इसमें कोलोराडो बोल्डर विश्वविद्यालय के तीन शोधकर्ता शामिल हैं। वैज्ञानिकों ने पिछले छह दशकों में 28 हेड वाटर बेसिन और तलछट के बहने के अवलोकन संबंधी आंकड़ों का विश्लेषण किया।

ओवरीम ने कहा कि तलछट या सेडिमेंट फ्लक्स तलछट का द्रव्यमान है, जो एक नदी बेसिन में एक निश्चित समय अवधि में एक बिंदु से गुजरता है, जैसे कि रेत से भरे ट्रकों के बराबर रेत को पानी द्वारा बहा कर ले जाया जाना आदि। हालांकि नदी के बहाव, नदी प्रणाली में प्रवेश करने वाले पानी की मात्रा और तलछट का बहना दोनों में बढ़ोतरी हो रही है। पानी की मात्रा और तलछट दोनों अलग-अलग दरों पर बढ़ रहे हैं। 

वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक नदी घाटियों के बहाव में लगभग 5 फीसदी प्रति दशक की वृद्धि हुई, जबकि गाद या तलछट प्रवाह में लगभग 12 फीसदी प्रति दशक की वृद्धि हुई है।

ओवरीम ने बताया कि परिवर्तनशीलता पर दो तरह से असर पड़ता है, ग्लेशियरों और पर्माफ़्रोस्ट के पिघलने के साथ तलछट के नए स्रोत बन रहे हैं। जो कि पहले अपनी जगह में जमे हुए थे अब वे नदी के साथ बह रहे हैं। इसके अलावा भारी बारिश से बाढ़ इन्हें जन्म देती है, इस दौरान औसत स्थितियों की तुलना में बहुत अधिक तलछट देखा जा सकता है। यदि आप इन चरम घटनाओं में से कुछ के स्रोत और अनुपात में वृद्धि देखते हैं, तो आप अनुपातहीन रूप से बहुत अधिक तलछट देख सकते है।    

नदी से उत्पन्न तलछट बांग्लादेश जैसे अत्यधिक आबादी वाले क्षेत्रों को लाभान्वित कर सकती है, जहां तलछट तटीय क्षेत्र को बनाए रखने में मदद करती है। लेकिन भारत, तिब्बत या नेपाल जैसे अन्य क्षेत्रों में, जहां हाइड्रो-इलेक्ट्रिक पावर प्लांट हैं, तलछट का बढ़ता स्तर बांधों के टरबाइन को खराब कर सकता है और जलाशयों को रेत और गाद से भर सकता है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि बढ़ता तलछट प्रवाह मौजूदा या नियोजित जल विद्युत परियोजनाओं को नुकसान पहुंचाकर और सिंचाई क्षमता को कम कर सकता है। वहीं तलछट प्रवाह बढ़ने से क्षेत्र की खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा को खतरा हो सकता है। इसके अतिरिक्त, तलछट के बढ़ते स्तर, जो पोषक तत्वों, प्रदूषकों और कार्बनिक कार्बन को ले जा सकते हैं, पानी की गुणवत्ता और बाढ़ के लिए अहम हो सकते हैं, लाखों लोगों को यह प्रभावित कर सकते हैं।

ओवरीम ने कहा एशिया में ऊंचे पहाड़ों के वाटरशेड पर शोध को क्षेत्र के असामान्य रूप से अच्छे, धाराप्रवाह और तलछट के बहने के लंबे समय के रिकॉर्ड द्वारा सुगम बनाया गया था। समान गुणवत्ता के डेटासेट ग्रीनलैंड या पूरे आर्कटिक के लिए मौजूद नहीं हैं।

आर्कटिक में, वैज्ञानिकों ने बर्फ के पिघलने और वर्षा में वृद्धि से पानी के बहाव में वृद्धि दर्ज की है लेकिन तलछट प्रवाह के कुछ माप भी किए हैं।

ओवरीम ने कहा तिब्बती पठार पर जो हो रहा है वह आर्कटिक में भी हो रहा है, लेकिन हमारे पास अभी पर्याप्त लंबे समय के रिकॉर्ड नहीं हैं जिससे इसके बारे में पता लगाया जा सके।