जलवायु

कॉप-26: प्रधानमंत्री मोदी ने भारत की ओर से किए पांच वादे

DTE Staff

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्कॉटलैंड के ग्लासगो में 26वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (कॉप 26) को संबोधित करते हुए भारत की ओर से पांच वादे किए।

उन्होंने कहा, " क्लाइमेट चेंज पर इस वैश्विक मंथन के बीच, मैं भारत की ओर से, इस चुनौती से निपटने के लिए पांच अमृत तत्व रखना चाहता हूं, पंचामृत की सौगात देना चाहता हूं।

पहला- भारत, 2030 तक अपनी गैर जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक पहुंचाएगा।

दूसरा- भारत, 2030 तक अपनी 50 प्रतिशत ऊर्जा की जरूरत अक्षय ऊर्जा से पूरी करेगा।

तीसरा- भारत अब से लेकर 2030 तक के कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक बिलियन (अरब) टन की कमी करेगा।

चौथा- 2030 तक भारत, अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता (इन्टेंसिटी) को 45 प्रतिशत से भी कम करेगा।

और पांचवा- वर्ष 2070 तक भारत, नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करेगा।

इससे पहले प्रधानमंत्री ने कहा, "मैं आज आपके सामने एक, वन वर्ड मूवमेंट का प्रस्ताव रखता हूं। यह वन-वर्ड एक शब्द, क्लाइमेट के संदर्भ में, वन वर्ल्ड-एक विश्व का मूल आधार बन सकता है, अधिष्ठान बन सकता है।

इसके अलावा उन्होंने कहा, "ये एक शब्द है- ...एल, आई, एफ, ई, यानि लाइफस्टाइल फॉर एनवायरमेंट: "

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि विश्व की आबादी का 17 प्रतिशत होने के बावजूद, भारत केवल पांच प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार है। बावजूद इसके भारत ने अपना कर्तव्य पूरा करके दिखाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी है।

उन्होंने कहा कि यह सच्चाई हम सभी जानते हैं कि क्लाइमेट फाइनेंस को लेकर आज तक किए गए वायदे, खोखले ही साबित हुए हैं। जब हम सभी जलवायु कार्रवाई (क्लाइमेट एक्शन) पर अपनी आकांक्षा बढ़ा रहे हैं, तब क्लाइमेट फाइनेंस पर विश्व की आकांक्षा वही नहीं रह सकते जो पेरिस समझौते के समय थे।

प्रधानमंत्री ने कहा कि चूंकि सबसे अधिक कार्बन उत्सर्जन विकसित देश करते हैं, इसलिए उन्हें हर हाल में क्लाइमेट फाइनेंस के अपने वादों को पूरा करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस तरह कार्बन उत्सर्जन को मॉनीटर किया जाता है, ठीक उसी तरह अब क्लाइमेट फाइनेंस को मॉनीटर किया जाएगा, ताकि विकसित देशों पर दबाव बनाया जा सके।

इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'एक्शन एंड सॉलिडेरिटी-द क्रिटिकल डिकेड' कार्यक्रम में कहा कि वैश्विक जलवायु वार्ता में अनुकूलन (एडप्शन) को उतना महत्त्व नहीं मिला है जितना न्यूनीकरण (मिटिगेशन) को। यह उन विकासशील देशों के साथ अन्याय है, जो जलवायु परिवर्तन से अधिक प्रभावित हैं।

उन्होंने कहा कि भारत समेत अधिकतर विकासशील देशों के किसानों के लिए जलवायु बड़ी चुनौती है - फसल चक्र में बदलाव आ रहा है, बेसमय बारिश और बाढ़, या लगातार आ रहे तूफानों से फसलें तबाह हो रही हैं। पेय जल के स्रोत से ले कर सस्ते घरों तक, सभी को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ सक्षम बनाने की जरुरत है।

प्रधानमंत्री ने कहा, "इस संदर्भ में मेरे तीन विचार है। पहला, एडाप्टेशन को हमें अपनी विकास नीतियों और परियोजनाओं का मुख्य अंग बनाना होगा। भारत में नल से जल, स्वच्छ भारत और उज्ज्वला, क्लीन कूकिंग फ्यूल फॉर ऑल जैसी परियोजनाओं से हमारे जरूरतमंद नागरिकों को एडाप्टेशन बेनेफिट्स तो मिले ही हैं, उनकी क्वालिटी ऑफ़ लाइफ भी सुधरी है। दूसरा, कई ट्रेडिशनल कम्युनिटीज में प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहने का ज्ञान है।

हमारी एडाप्टेशन नीतियों में इन पारंपरिक अनुभूवों को उचित महत्त्व मिलना चाहिए। ज्ञान का ये प्रवाह, नई पीढ़ी तक भी जाए, इसके लिए स्कूल के सैलेबस में भी इसे जोड़ा जाना चाहिए। लोकल कंडीशन के अनुरूप लाइफस्टाइल का संरक्षण भी एडाप्टेशन का एक महत्वपूर्ण स्तम्भ हो सकता है। तीसरा, एडाप्टेशन के तरीके चाहे लोकल हों, किन्तु पिछड़े देशों को इनके लिए ग्लोबल सपोर्ट मिलना चाहिए।