जलवायु

कॉप-25: जलवायु परिवर्तन से खतरे में है दुनिया की 40 फीसदी दुर्लभ प्रजातियां

दो दिसंबर से शुरू हो रहे जलवायु परिवर्तन पर अंतराष्ट्रीय सम्मेलन (कॉप-25) से पहले बड़ा अध्ययन सामने आया है, जिसमें दुर्लभ प्रजातियों के पौधों पर खतरा मंडराने का अंदेशा जताया गया है

Lalit Maurya

विश्व में जमीन पर पायी जाने वाली पौधों की लगभग 40 फीसदी प्रजातियों को अत्यंत दुर्लभ श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है। जलवायु में आ रहे बदलावों ने इन प्रजातियां को विलुप्ति के कगार पर ला दिया है। यह बात एरिजोना विश्वविद्यालय द्वारा किये गए नए शोध में सामने आयी है। इस शोध के निष्कर्ष जर्नल साइंस एडवांसेज के जलवायु परिवर्तन छपे विशेष अंक में प्रकाशित किए गए हैं। जिसे कॉप-25 के मद्देनजर प्रकाशित किया गया है। गौरतलब है अगले माह 2 से 13 दिसंबर के बीच मैड्रिड में जलवायु परिवर्तन पर अंतराष्ट्रीय सम्मेलन ‘कॉप-25’ होने जा रहा है।

इस अध्ययन के प्रमुख लेखक और यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना में इकोलॉजी के प्रोफेसर ब्रायन एनक्विस्ट ने बताया कि, "जब हम वैश्विक स्तर पर जैव विविधता के बारे में बात करते हैं, तो हमें जमीन पर पायी जाने वाली पौधों की प्रजातियों और उनकी संख्या का अच्छा खासा अनुमान है। पर हमें इस बात की जानकारी नहीं है कि यह वास्तव में कितनी हैं।“

इस विषय पर काम कर रहे दुनिया के अलग-अलग संस्थानों के पैंतीस शोधकर्ताओं ने 10 वर्षों के अथक प्रयास के बाद इस विषय पर जानकारी जुटाई है। उन्होंने दुनिया भर में जमीन पर पाए जाने वाले पौधों के करीब 2 करोड़ अवलोकनों को संकलित किया है। यह नतीजे वनस्पति की जैव विविधता पर अब तक एकत्र किया गया सबसे बड़ा डेटासेट है। शोधकर्ताओं को पूरी उम्मीद है कि इस जानकारी से वैश्विक जैव विविधता को हो रहे नुकसान को कम किया जा सकता है। साथ ही इसकी मदद से उनके संरक्षण में मदद मिल सकती है और उनपर पड़ रहे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को सीमित किया जा सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार दुनिया भर में जमीन पर पाए जाने वाले पौधों की लगभग 435,000 प्रजातियां पायी जाती हैं।

प्रोफेसर एनक्विस्ट के अनुसार "यह संख्या है तो महत्वपूर्ण, पर लेकिन यह सिर्फ आंकड़ें हैं, जिन्हे हमने संकलित कर लिया है। वास्तव में हम इस विविधता की प्रकृति को समझना चाहते हैं और भविष्य में इसका क्या होगा यह जानना चाहते हैं। इनमे से कुछ प्रजातियां बहुत आम हैं, जो हर जगह पायी जाती हैं जबकि कुछ बहुत दुर्लभ है, जो आसानी से देखने को नहीं मिलती| हमने जितना अनुमान लगाया था, दुर्लभ प्रजातियों की संख्या उससे कहीं ज्यादा है।" एनक्विस्ट और उनकी टीम ने खुलासा किया है कि जमीन पर पाए जाने वाले पौधों की 36.5 फीसदी प्रजातियां बहुत दुर्लभ हैं। जिसका अर्थ है कि उन्हें पांच बार से भी कम देखा और रिकॉर्ड किया गया है। शोधकर्ताओं ने पाया कि यह दुर्लभ प्रजातियां कुछ गिने चुने स्थानों पर पायी जाती हैं। जैसे दक्षिण अमेरिका में उत्तरी एंडीज, कोस्टा रिका, दक्षिण अफ्रीका, मेडागास्कर और दक्षिण पूर्व एशिया में कुछ स्थानों पर मिलती हैं। यह वो क्षेत्र हैं जो जलवायु के दृष्टिकोण से पिछले हिम युग से लेकर अब तक स्थिर बने हुए हैं। यही वजह है कि यहां इन दुर्लभ प्रजातियों का विकास संभव हो सका है। लेकिन वैज्ञानिक का मानना है कि यह जरुरी नहीं है की अतीत की तरह भविष्य में भी यह प्रजातियां इसी तरह फल-फूल सकती हैं

दुर्लभ पौधों पर पड़ रही है क्लाइमेट चेंज की काली छाया

शोध में यह भी पता चला है कि इन दुर्लभ प्रजातियों के हॉटस्पॉट पर भविष्य में जलवायु परिवर्तन की काली छाया पड़ सकती है। साथ ही अनुमान है कि आने वाले वक्त में मनुष्यों द्वारा किया जा रहा प्रकृति का विनाश इन्हे भी संकट में डाल सकता है। शोधकर्ताओं ने बताया कि, "अध्ययन में हमने देखा कि इनमें से कई क्षेत्रों में मानवीय हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है। वहां कृषि, शहरीकरण, भूमि उपयोग में किये जा रहे बदलाव और जंगलों के कटाव से समस्या उत्पन्न हो गयी है, जोकि वास्तव में अच्छी खबर नहीं है। अगर हमने इस विषय में कुछ नहीं किया, तो विविधता में उल्लेखनीय कमी आ जाएगी। और वह भी मुख्यतः दुर्लभ प्रजातियों में - क्योंकि उनकी कम संख्या उन्हें विलुप्त होने के और पास ले जा रही है। और यह यह ऐसी दुर्लभ प्रजातियां हैं जिनके बारे में विज्ञान बहुत कम जानता है।"

इस अध्ययन के सह लेखक और कंज़र्वेशन इंटरनेशनल में वैज्ञानिक पैट्रिक रोहदांज ने बताया कि, "चूंकि यह अध्ययन दुर्लभ प्रजातियों पर केंद्रित है। इसलिए यह उन क्षेत्रों पर जलवायु परिवर्तन और मानव प्रभाव के दोहरे खतरों को बेहतर ढंग से उजागर कर सकता है, जहां इन दुर्लभ प्रजातियों का एक बड़ा हिस्सा पाया जाता है। इसके साथ ही यह जैव विविधता को बचाने के लिए संरक्षण सबंधी रणनीति बनाने पर भी जोर देता है।"