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जलवायु

2024 में रिकॉर्ड 877 करोड़ टन पर पहुंच सकती है कोयले की मांग, एक फीसदी का हुआ इजाफा

चीन कोयला क्षेत्र का एक बड़ा खिलाड़ी है, दुनिया का एक तिहाई कोयला इसके बिजली संयंत्रों में जलता है

Lalit Maurya

इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) ने अपनी नई रिपोर्ट में खुलासा किया है कि 2024 में कोयले की वैश्विक मांग नई ऊंचाइयों पर पहुंच सकती है। "कोल 2024: एनालिसिस एंड फॉरकास्ट फॉर 2024" नामक इस रिपोर्ट के मुताबिक 2024 में वैश्विक स्तर पर कोयले की मांग बढ़कर 877 करोड़ टन पर पहुंच जाएगी, जोकि अपने आप में एक नया रिकॉर्ड है।

आंकड़ों के मुताबिक इस साल कोयले की मांग में एक फीसदी की वृद्धि हुई है। हालांकि पिछले वर्षों की तुलना में देखें तो मांग में होने वाली यह वृद्धि उतनी नहीं है, जितने पहले दर्ज की गई थी।

गौरतलब है कि 2021 में कोरोना के बाद गाड़ी के दोबारा पटरी पर लौटने के साथ ही वैश्विक स्तर पर कोयले की खपत में 7.7 की वृद्धि दर्ज की गई। हालांकि 2022 में जहां इसकी खपत में 4.7 फीसदी की वृद्धि हुई जो 2023 में घटकर 2.4 फीसदी रह गई।

देखा जाए तो इस अवधि में कोयले की औद्योगिक खपत में भी वृद्धि हुई है, लेकिन इसकी बढ़ती मांग के लिए मुख्य रूप से बिजली क्षेत्र जिम्मेवार है।

2024 में कोयले से पैदा हो रही बिजली की बात करें तो इसका उत्पादन रिकॉर्ड 10,700 टेरावाट-घंटे तक पहुंच सकता है। हालांकि 2022 से कोयले की मांग में होती बढ़ोतरी लगातार कम हुई है, जो इस बात को भी दर्शाता है कि दुनिया में कोयले की मांग लगातार घट रही है।

रिपोर्ट के मुताबिक इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह दुनिया में अक्षय ऊर्जा का बढ़ता उपयोग है, जो आने वाले समय में बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने में मदद करेगा। इसमें चीन की भी बड़ी भूमिका होगी, जो दुनिया में कोयले का सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है।

भले ही दुनिया में बिजली उपयोग तेजी से बढ़ रहा है, इसके बावजूद आईईए ने उम्मीद जताई है कि आने वाले वर्षों में कोयले की मांग स्थिर रह सकती है।

चीन जो दुनिया में कोयले का सबसे बड़ा खिलाड़ी है। अनुमान है कि 2024 में वहां कोयले की मांग एक फीसदी की वृद्धि के साथ 490 करोड़ टन पर पहुंच सकती है। वहीं भारत से जुड़े आंकड़ों पर गौर करें तो कोयले की मांग में पांच फीसदी की वृद्धि हो सकती है। इसके साथ ही भारत में यह बढ़कर 130 करोड़ टन पर पहुंच सकती है। यह ऐसा स्तर है जो पहले केवल चीन ने ही छुआ है।

वहीं दूसरी तरफ यूरोपियन यूनियन और अमेरिका में कोयले की मांग में गिरावट जारी है, लेकिन गिरावट की रफ्तार पहले से धीमी पड़ गई है। रुझानों के मुताबिक इस साल जहां यूरोपियन यूनियन की कोयले की मांग में 12 फीसदी की वहीं अमेरिका में पांच फीसदी की गिरावट आने की उम्मीद है। हालांकि यह 2023 के मुकाबले कम है जब यूरोपियन यूनियन में 23 फीसदी की और अमेरिका में 17 फीसदी की गिरावट आई थी।

2027 तक स्थिर बनी रह सकती है कोयले की मांग

रिपोर्ट में इस बात की भी उम्मीद जताई है कि 2027 तक कोयले की मांग 2024 के स्तर के आसपास रह सकती है। आंकड़ों के मुताबिक 2020 से 120 करोड़ टन से अधिक की वृद्धि के बाद, वैश्विक कोयले की मांग अगले तीन वर्षों में स्थिर हो जाएगी।

अनुमान है कि यह मांग 2027 तक 887 करोड़ टन के आसपास रह सकती है।

चीन का बिजली क्षेत्र वैश्विक कोयला उपयोग में एक प्रमुख भूमिका निभाता है, दुनिया का एक तिहाई कोयला चीन के बिजली संयंत्रों में जलाया जाता है।

हालांकि 2024 में, चीन ने अधिक परमाणु संयंत्रों का निर्माण करने के साथ-साथ सौर और पवन ऊर्जा का भी तेजी से विस्तार किया है। इसको देखते हुए उम्मीद जताई जा रही है कि 2027 तक कोयले की खपत में हो रही वृद्धि धीमी पड़ सकती है, हालांकि यह अनिश्चितताओं भरा है।

इसके बावजूद चीन सहित कई देशों में बिजली उपयोग तेजी से बढ़ रहा है, जो परिवहन, हीटिंग, कूलिंग की बढ़ती मांग और डेटा सेंटर आदि क्षेत्रों में बिजली की बढ़ती मांग जैसे कारकों से प्रेरित है। इसी तरह मौसम के मिजाज में आता बदलाव भी कोयले की खपत में उतार चढ़ाव की वजह बन सकता है।

ऐसे में रिपोर्ट के मुताबिक अक्षय ऊर्जा उत्पादन में मौसमी बदलावों के पड़ते प्रभावों के कारण चीन की कोयले की मांग अनुमान से 14 करोड़ टन कम या ज्यादा हो सकती है।

इस बारे में आईईए के निदेशक केसुके सदामोरी का कहना है, स्वच्छ ऊर्जा का तेजी से होता विकास, वैश्विक बिजली क्षेत्र को नया आकार दे रहा है, जो दुनिया के दो-तिहाई कोयले का उपयोग करता है।" उनके मुताबिक मॉडल दर्शाते हैं कि 2027 तक कोयले की मांग स्थिर हो जाएगी, भले ही बिजली का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है।

उनके मुताबिक मौसम, खास तौर पर चीन में, जो कोयले का सबसे बड़ा उपभोक्ता है, अल्पकालिक कोयले की मांग को बेहद प्रभावित करेगा। मध्यम अवधि में, बिजली की मांग में होती वृद्धि भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

रिपोर्ट के मुताबिक अधिकांश विकसित देशों में कोयले की मांग पहले ही अपने चरम पर पहुंच चुकी है और 2027 तक इसमें गिरावट जारी रहने की उम्मीद है। इस गिरावट की रफ्तार यूरोपियन यूनियन जैसी मजबूत नीतियों और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों तक पहुंच पर निर्भर करती है, जैसे कि अमेरिका और कनाडा में सस्ती प्राकृतिक गैस।

इस बीच भारत, इंडोनेशिया और वियतनाम जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में कोयले की मांग अभी भी बढ़ रही है। इन देशों में, आर्थिक विकास के साथ-साथ आबादी भी बढ़ रही है, जो सीधे तौर पर बिजली की खपत में इजाफा कर रही है। इसकी वजह से कोयले की मांग भी बढ़ रही है। इसके साथ ही उद्योगों में भी कोयले की खपत बढ़ी है।

रिपोर्ट में कोयले की बढ़ती कीमतों पर भी प्रकाश डाला है जो 2017 और 2019 के बीच देखी गई औसत कीमत से करीब 50 फीसदी अधिक हैं।

अनुमान है कि वैश्विक कोयला व्यापार 2024 में रिकॉर्ड 155 करोड़ टन तक पहुंच जाएगा। हालांकि भविष्य में इसमें गिरावट आने की उम्मीद है, जिसमें थर्मल क्षेत्र में सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिलेगी। रिपोर्ट के मुताबिक एशिया अंतरराष्ट्रीय कोयला व्यापार का केंद्र बना हुआ है। इसमें चीन, भारत, जापान, कोरिया और वियतनाम सबसे बड़े आयातक हैं, जबकि इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया इसके सबसे बड़े निर्यातकों में शामिल हैं।

देखा जाए तो कोयले की यह मांग जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से भी बेहद मायने रखती है, क्योंकि कोयले की वजह से बड़ी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, जो जलवायु में आ रहे बदलावों के लिए जिम्मेवार है। ऐसे में कोयले की मांग और व्यापार में आने वाला बदलाव जलवायु पर भी असर डालेगा।