जलवायु

क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2021: दुनिया का 7वां सबसे जलवायु प्रभावित देश है भारत

2000 से 2019 के बीच आई 11,000 से भी ज्यादा जलवायु सम्बन्धी आपदाओं में 4.75 लाख लोगों की मौत हुई

Lalit Maurya

भारत दुनिया का 7वां सबसे जलवायु प्रभावित देश है। यह जानकारी आज जर्मनवॉच द्वारा जारी क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2021 में सामने आई है। इस इंडेक्स के मुताबिक 2019 में जलवायु से जुड़ी आपदाओं के चलते भारत में 2,267 लोगों की जान गई थी। वहीं करीब 501,659 करोड़ रुपए (6,881.2 करोड़ डॉलर) का आर्थिक नुकसान हुआ था।

यदि इस इंडेक्स में 10 सबसे ज्यादा प्रभावित देशों को देखें तो इनमें सबसे ज्यादा नुकसान भारत को ही उठाना पड़ा था। गौरतलब है कि पिछले वर्ष जारी क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स में भारत इस लिस्ट में पांचवे नंबर पर था। 

2019 में आई आपदाओं की बात करें तो भारत में इस वर्ष मानसून का मौसम कुछ ज्यादा ही लम्बा था। जिसका असर सामान्य से एक महीना ज्यादा देखने को मिला था। इस मौसम में जून से सितम्बर के अंत तक औसत से 110 फीसदी ज्यादा बारिश हुई थी। जो 1994 के बाद सबसे ज्यादा थी। इसके चलते 14 से भी ज्यादा राज्यों में आई बाढ़ में 1,800 से भी ज्यादा लोगों की मौत हुई थी, जबकि 18 लाख से भी ज्यादा लोगों को इसके चलते अपना घर-बार छोड़ना पड़ा था।

अगर कुल मिलाकर देखे तो पूरे मानसून से करीब 1.18 करोड़ लोग देश में प्रभावित हुए थे। साथ ही 72,902.5 करोड़ रुपए (1,000 करोड़ डॉलर) से ज्यादा का नुकसान हुआ था। उत्तरी हिंद महासागर में आए आठ उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के साथ, 2019 रिकॉर्ड में चक्रवातों के मामले में सबसे ज्यादा सक्रिय वर्ष था। इनमें से 6 काफी गंभीर श्रेणी के थे।

 जिनमें से मई 2019 में आया 'फानी' सबसे ज्यादा विनाशकारी था। इसके कारण भारत और बांग्लादेश में 90 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 2.8 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे। इससे कुल मिलकर अर्थव्यवस्था को करीब 59,051 करोड़ रुपए (810 करोड़ डॉलर) का नुकसान हुआ था।   

सबसे ज्यादा खतरे में है अफ्रीकी देश मोज़ाम्बिक और जिम्बाब्वे

इंडेक्स के अनुसार अफ्रीकी देश मोजांबिक इस लिस्ट में पहले स्थान पर है। जहां 2019 में जलवायु से जुड़ी आपदाओं के चलते 700 लोगों की जान गई थी। वहीं दूसरे स्थान पर जिम्बाब्वे है, जहां 347 लोगों ने इन आपदाओं में अपनी जान गवांई थी। जबकि तीसरे स्थान पर बहामस, इसके बाद जापान, मालावी, अफ़ग़ानिस्तान और फिर भारत का नंबर आता है।   

इस इंडेक्स में 2000 से 2019 के बीच जलवायु सम्बन्धी आपदाओं और उनसे होने वाले नुकसान का भी विश्लेषण किया गया है। इस दौरान दुनिया भर में 11,000 से अधिक जलवायु सम्बन्धी आपदाएं सामने आई थी। इन आपदाओं में 475,000 से भी अधिक लोगों की मौत हुई थी, जबकि 186,63,040 करोड़ रुपए (256,000 करोड़ डॉलर) का नुकसान हुआ था। 

इस अवधि में देशों पर मंडराते खतरे की बात करें तो इसमें प्यूर्टो रिको को पहले स्थान पर रखा गया है, इसके बाद म्यांमार और फिर हैती का नंबर है। यदि 2000 से 2019 के लिए जारी इंडेक्स को देखें तो इसमें सबसे प्रभावित 10 देशों में दक्षिण एशिया के भी तीन देश बांग्लादेश (7) , पाकिस्तान (8) और नेपाल (10) शामिल हैं। 

रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा दंश विकासशील देशों को झेलना पड़ा था। जिसका सबसे बड़ा कारण उनका इन आपदाओं के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील होना है, साथ ही उनकी क्षमता भी इतनी नहीं है कि वो जलवायु सम्बन्धी आपदाओं को झेल पाएं। यही वजह है कि 2019 में इन आपदओं से सबसे ज्यादा प्रभावित 10 देशों में से आठ निम्न से माध्यम आय वर्ग के देश हैं, जबकि आधे सबसे कम विकसित देश हैं।  

तेजी से गर्म हो रही है धरती

हाल ही में नासा ने 2020 को भी दुनिया के सबसे गर्म वर्ष के रूप में मान्यता दी है, जो 2016 के साथ संयुक्त रूप से पहले स्थान पर पहुंच गया है। यह स्पष्ट रूप से दिखता है कि हमारी धरती बहुत तेजी से गर्म हो रही है जिसका असर जलवायु पर भी पड़ रही है। नतीजन बाढ़, सूखा, तूफान जैसी आपदाओं का आना सामान्य सी बात बन गया है। यदि प्राकृतिक आपदाओं से हुए नुकसान को देखें तो 2020 में इनके चलते 15,36,412 करोड़ रुपए (21,000 करोड़ डॉलर) का नुकसान हुआ था, जबकि 2019 में यह नुकसान करीब 12,14,498 करोड़ रुपए का था। 

तापमान बढ़ने के साथ आम बनता जा रहा है आपदाओं का आना

समय के साथ इन आपदाओं से होने वाला नुकसान भी बढ़ता जा रहा है। हाल ही में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा जारी ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट 2021 में भी पर्यावरण से जुड़े मुद्दों जैसे जलवायु परिवर्तन, चरम मौसमी घटनाओं को सबसे आगे रखा गया था। भारत के लिए भी 2020 आठवां सबसे गर्म वर्ष था। इस वर्ष तापमान सामान्य से 0.29 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया था। 

हाल ही में यूएन द्वारा प्रकाशित "एमिशन गैप रिपोर्ट 2020" से पता चला है कि यदि तापमान में हो रही वृद्धि इसी तरह जारी रहती है, तो सदी के अंत तक यह वृद्धि 3.2 डिग्री सेल्सियस के पार चली जाएगी। जिस तरह और जिस रफ्तार से तापमान में यह बढ़ोतरी हो रही है, उसके चलते बाढ़, सूखा, तूफान, हीट वेव, शीत लहर जैसी घटनाएं बहुत आम बात हो जाएंगी और यह हो भी रहा है।