जलवायु

कॉप-26: कोविड-19 के दौरान विकासशील देशों में जलवायु वित्त में गिरावट आई

महामारी से संबंधित व्यय और आय में कमी होने से देशों को जलवायु-संबंधित कई क्षेत्रों के लिए धन में कटौती करनी पड़ी

Kiran Pandey, Madhumita Paul

कई विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई के लिए आवंटित किए जा रहे जलवायु वित्त में कोविड-19 से पहले और उसके दौरान कमी देखी गई। गैर-लाभकारी संगठन वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआरआई) द्वारा किए गए एक अध्ययन से यह बात पता चली है।

डब्ल्यूआरआई ने 2018 और 2020-21 के बीच 17 विकासशील देशों में उनकी जलवायु वित्त आवश्यकताओं, व्यय या आवंटन के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इस अध्ययन में पाया गया कि महामारी से संबंधित खर्च और आय में कमी के कारण के इन देशों को कई जलवायु-संबंधित क्षेत्रों के लिए आवंटित धन में कटौती करनी पड़ी। 

इन देशों में जलवायु अनुकूलन या शमन की जिम्मेवारी जिन मंत्रालयों जैसे पर्यावरण सहित परिवहन और ऊर्जा मंत्रालयों के पास थी, उनके बजट में कमी कर दी गई।  

इस मामले में सबसे अधिक प्रभावित देश दक्षिण अफ्रीका था। इस की रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण अफ्रीका ने पर्यावरण, वानिकी और मत्स्य पालन विभाग के लिए अपने बजट को कम कर दिया। विभाग के आवर्ती बजट में 2020 में नौ प्रतिशत की कमी की गई थी। जबकि जलवायु कार्यक्रमों के बजट में 33 प्रतिशत की कमी की गई थी। जलवायु परिवर्तन शमन के लिए आवंटन 44 प्रतिशत कम रहा। मूल योजना की तुलना में वायु गुणवत्ता और टिकाऊ प्रबंधन के बजट में 51 प्रतिशत की कटौती की गई।

इसी तरह, केन्या के ऊर्जा मंत्रालय के बजट में 23 प्रतिशत की कमी की गई, जो 2020-21 के बजट में सबसे बड़ी बजट कटौती में से एक है। रिपोर्ट के अनुसार, वैकल्पिक ऊर्जा प्रौद्योगिकी कार्यक्रम के तहत निवेश में 60 प्रतिशत की कमी की गई। जबकि कोयले पर केंद्रित बिजली उत्पादन कार्यक्रम इसी अवधि में 174 प्रतिशत बढ़ गया। 

इंडोनेशिया, पेरू और होंडुरास जैसे देशों में भी लगभग सभी क्षेत्रों में बजट में कमी देखी गई। अध्ययन में पाया गया कि कई देशों में जलवायु शमन की बजाय अनुकूलन के बजट में कटौती की गई, जबकि जीवाश्म ईंधन खर्च में वृद्धि हुई है।

जलवायु परियोजनाओं के लिए आधिकारिक विकास सहायता (ओडीए) 2019 और 2020 के बीच क्रमशः 4 प्रतिशत और 8 प्रतिशत अंकों की कमी आई है। रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु वाली परियोजनाओं के लिए ओडीए का अनुपात 18 प्रतिशत से गिरकर 14 प्रतिशत हो गया। अध्ययन में बताया गया है कि उन परियोजनाओं के लिए जहां 'जलवायु' महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु था, ओडीए 25 फीसदी से घटकर 17 फीसदी रह गया।

जलवायु वित्त वह धन है जो धनी देशों (जो ऐतिहासिक उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं) द्वारा विकासशील देशों को उत्सर्जन में कमी के उपायों और अनुकूलन के लिए भुगतान करने में मदद करने के लिए दिया जाता है। जलवायु वित्त मानक विकास सहायता के अतिरिक्त होना चाहिए।

ओईसीडी के महासचिव माथियास कॉर्मन ने कहा: "जलवायु वित्त 2019 में बढ़ता रहा, लेकिन 2020 में विकसित देशों का लक्ष्य 100 बिलियन डॉलर था, लेकिन इसमें 20 बिलियन डॉलर कम रहा।"

अध्ययन में कहा गया है कि विकासशील देशों को जलवायु-वित्त ट्रैकिंग सिस्टम बनाना और लागू करना चाहिए, जिससे सरकारी योजना और बजट में जरूरतों और मुख्यधारा की जलवायु कार्रवाई की पहचान करने में मदद मिलेगी। 

विकासशील देशों को अपनी-अपनी राष्ट्रीय क्षमताओं और परिस्थितियों के अनुसार जलवायु कार्रवाई को सरकारी नियोजन और बजट में मुख्य धारा में शामिल करना चाहिए।

विकासशील देशों को समय-समय पर अपने सशर्त और बिना शर्त राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) को प्राप्त करने के लिए आवश्यक जलवायु-वित्त सहायता की रिपोर्ट करनी चाहिए।

रिपोर्ट में जिन 17 देशों का विश्लेषण किया गया, उनमें बांग्लादेश, केप वर्डे, कंबोडिया, कोलंबिया, फिजी, घाना, ग्वाटेमाला, होंडुरास, इंडोनेशिया, केन्या, मैक्सिको, नेपाल, निकारागुआ, पाकिस्तान, पेरू, फिलीपींस और दक्षिण अफ्रीका शामिल थे।