स्पेन की राजधानी मैड्रिड में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए चर्चा जारी है। वहीं, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए वैज्ञानिकों ने एक तरीका सुझाया है। शोधकर्ताओं ने कहा है कि ग्रीनहाउस गैस को कम करने में कार्बन भंडारण महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। ऐसे में दुनिया भर के प्रतिनिधियों के लिए यह सही समय है कि वे इस पर ध्यान दें। सम्मेलन में एक नया अध्ययन भी जारी किया गया है। इस अध्ययन के अनुसार यदि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को जमीन के अंदर संग्रहीत कर दिया जाए तो समस्या का हल हो सकता है।
यह अध्ययन ऑस्टिन में टेक्सास विश्वविद्यालय, नॉर्वेजियन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी और इक्विनोर रिसर्च सेंटर ने मिलकर किया है। शोधकर्ताओं ने कहा कि कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (सीसीएस) तकनीक का उपयोग कर ग्रीन हाउस गैस की समस्या को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। सीसीएस तकनीक वह है जो उद्योगों और बिजली संयंत्रों से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर करके जमीन के भीतर एक मील से अधिक की गहराई में इसका भंडारण कर देती है।
आईपीसीसी ने सीसीएस तकनीक के तहत 2050 तक दुनिया के उत्सर्जन में 13 फीसदी तक कम करने का लक्ष्य रखा है। कुछ नीति-निर्माताओं, उद्योग के प्रतिनिधियों और गैर-सरकारी संगठनों ने संदेह जताया है कि सीसीएस 13 फीसदी के इस लक्ष्य को सायद ही पूरा कर पाए? लेकिन नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट में प्रकाशित नए अध्ययन से पता चलता है कि सीसीएस अपने लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त कर सकता है।
कैसे होगा कार्बन कैप्चर
2050 तक आईपीसीसी के प्रति वर्ष 6 से 7 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड के लक्ष्य को संग्रहीत करने के लिए पर्याप्त जगह भी है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अगले 30 सालों में पूरी दुनिया में 10,000 से 14,000 सीओटू भण्डारण कुओं को स्थापित करना होगा। शोधकर्ताओं का कहना है कि तेल और गैस उद्योग पहले ही दिखा चुका है कि सीओ2 भण्डारण कुओं का तेजी से निर्माण संभव है। अगले तीन दशकों में दुनिया भर में सीसीएस तकनीक स्थापित हो जाएगी। जो कि पिछले 70 वर्षों में मैक्सिको की खाड़ी में तेल और गैस के बुनियादी ढांचे (इंफ्रास्ट्रक्चर) के विकास के बराबर है, या नॉर्थ सी में नॉर्वेजियन तेल और गैस के बुनियादी ढांचे के विकास का पांच गुना है।
नार्वेजियन यूनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के सहायक प्रोफेसर एंव शोधकर्ता फिलिप रिंगरोज ने कहा कि, इस अध्ययन के बारे में दिलचस्प बात यह है कि हमने कार्बन को नए तरीके से कम (डीकार्बोनाइजेशन) करने की चुनौती को स्वीकार किया है। तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस तक कम करने के लिए उत्सर्जन में कितनी कटौती करनी होगी। इसे प्राप्त करने के लिए कितने कुओं की आवश्यकता होगी। रिंगरोज ने आगे जोड़ते हुए कहा कि हम जल्द से जल्द इसका पता लगा लेंगे।
आईपीसीसी और अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने सीसीएस जैसी तकनिकों के माध्यम से, अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता और ऊर्जा उत्पादन और उपभोग को कम करके कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने का सुझाव दिया है। सीओ2 को कम करने की अन्य रणनीतियों में बिजली उत्पादन करने के लिए कोयले की जगह प्राकृतिक गैस शामिल करना। लकड़ी, बायोमास और अन्य कार्बन-आधारित खाना पकाने के ईंधन की जगह प्राकृतिक गैस का उपयोग करना। डीजल से चलने वाले वाहनों की जगह, इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग आदि से कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।