जलवायु

जलवायु आपातकाल, कॉप-25: प्रदूषण फैलाने वाले देश नहीं कर पाए कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल

जी20 में शामिल देश दुनिया के कार्बन उत्सर्जन में 78 फीसदी योगदान देते हैं, लेकिन केवल 6 देश ऐसे हैं, जो पेरिस जलवायु समझौते का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं

Tarun Gopalakrishnan, Kapil Subramanian

दुनिया की 20 शीर्ष अर्थव्यवस्था जिसे जी20 भी कहा जाता है, दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन में 78 फीसद का योगदान देती है। लेकिन, इनमें से महज छह देश ही पेरिस समझौते में कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए निर्धारित लक्ष्य को पूरा करने के करीब हैं। हालांकि, पेरिस समझौते के अधिकांश लक्ष्यों पर अमल नहीं हुआ है, वे दुखद हालत में हैं।

यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) में शामिल 197 देश आगामी 2 दिसंबर से मैड्रिड में शुरू हो रहे कॉन्फ्रेंस में शामिल हो रहे हैं। इस कॉन्फ्रेंस को कॉप25 भी कहा जाता है और यह 13 दिसंबर तक चलेगा। कॉन्फ्रेंस में वर्ष 2016 में लागू हुए पेरिस समझौते के बाद जलवायु परिवर्तन को लेकर की गई कार्रवाइयों का जायजा लिया जाएगा तथा नए व कठोर लक्ष्य निर्धारित करने की योजना तैयार की जाएगी। इसकी घोषणा  वर्ष 2020 में होनी तय है।

कॉप25 एक बेहद अहम मौका होता है, जिसके जरिए तमाम देश पेरिस समझौते में तय किए गए कार्बन उत्सर्जन कम करने के लक्ष्य की ओर दोबारा बढ़ सकते हैं।

गौरतलब हो कि पेरिस समझौता पहला वैधानिक दस्तावेज था, जिसमें तापमान को नियंत्रित रखने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। यह देशों पर दबाव बनाता है कि वह प्री-इंडस्ट्रियल स्तर पर औसतन वैश्विक तापमान में इजाफा 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखे। ये समझौता देशों को औसतन तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने के लिए भी प्रेरित करता है। ये मुख्य रूप से स्वतः प्रेरित सहयोग यानी नेशनली डेटरमाइंड कंट्रीब्यूशन्स या एनडीसी के तहत काम करता है।

हालांकि, एनडीसी के सभी वादों को भले ही पूरा कर लिया जाए, लेकिन तापमान को नियंत्रित कर पाना मुश्किल लग रहा है। इस साल नवंबर में आई यूनाइटेड नेशंस एनवायरमेंट प्रोग्राम्स एमिशन गैप रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक औसत तापमान वर्ष 2100 तक 3.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा।

वर्ष 2018 में वैश्विक स्तर पर 55.3 गिगाटन कार्बन डाई-ऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ। अगर वैश्विक तापमान के इजाफे को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखना है, तो वर्ष 2030 में कार्बन उत्सर्जन को 25 गीगा टन तक रखना होगा और वहीं, तापमान 2 डिग्री सेल्सियस तक रखना हो, तो कार्बन उत्सर्जन 41 गीगा टन तक सीमित करना होगा।

हालांकि, एनडीसी के सभी लक्ष्य को पूरा कर लेने के बावजूद वर्ष 2030 तक कार्बन का उत्सर्जन 54 गिगाटन होगा। लेकिन, मौजूदा नीतियां एनडीसी की अपेक्षा कम महात्वाकांक्षी हैं और इस कारण वार्षिक कार्बन उत्सर्जन करीब 60 गीगा टन तक पहुंच जाएगा।

देखा जाए, तो लक्ष्य और उसके हासिल के बीच गहरा अंतर है और इसकी मुख्य वजह अधिकांश देशों में एनडीसी को लेकर महात्वाकांक्षा में कमी है। असल बात तो ये है कि पेरिस समझौते को लागू करने का पूरा मसला ही अब इस सवाल पर टिक गया है कि वर्ष 2015 में एनडीसी के तहत पहले चरण का जो लक्ष्य रखा गया था, देश उस रास्ते पर हैं कि नहीं। समझौते में ये तय हुआ था कि हर पांच वर्ष के अंतराल पर देश नया  व उत्तरोतर महात्वाकांक्षी लक्ष्य तय करेंगे और एनडीसी के दूसरे चरण की घोषणा 2020 होनी है।

दिलचस्प ये भी भी है कि ज्यादातर देश दूसरे एनडीसी की घोषणा की तैयारी तो दूर एनडीसी के पहले चरण के लक्ष्य को ही पूरा करना चाह रहे हैं।

जी20 में 19 देश और यूरोपीय संघ शामिल हैं। वर्ष 2019 की एमिशन गैप रिपोर्ट के मुताबिक, इनमें से सात देश अपने एनडीसी को पूरा करने में विफल रहेंगे, जबकि महज तीन देश ही लक्ष्य की राह पर हैं। वहीं, अन्य तीन देश अपने लक्ष्य से कम से कम 15 प्रतिशत से अधिक हासिल करेंगे जबकि तीन देशों का प्रदर्शन कैसा रहेगा, ये अनिश्चित है।