जलवायु

2020 में भारत में 40 लाख लोग हुए विस्थापित, चीन सबसे आगे

विश्व प्रवासन रिपोर्ट 2022 के मुताबिक, 2020 में जलवायु परिवर्तन की वजह से आ रही प्राकृतिक आपदाओं के चलते सबसे अधिक लोग विस्थापित हुए

Richard Mahapatra
जलवायु परिवर्तन के चलते उपजी प्राकृतिक आपदाओं के चलते विस्थापन बढ़ रहा है। इसने अभी तक ऐतिहासिक वजहों यानी संघर्षों और हिंसा के कारण होने वाले विस्थापन की प्रवृत्ति को बदल दिया है। संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (आईओएम) द्वारा हर दूसरे साल प्रकाशित होने वाली वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट 2022 के मुताबिक, ‘2020 में 145 देशों और क्षेत्रों के 3.7 करोड़ नए लोग प्राकृतिक आपदाओं के चलते विस्थापन का शिकार हुए।’

बीते साल कोविड-19 महामारी को थामने के बावजूद इसमें 2019 की तुलना में आपदा, संघर्ष और हिंसा के कारण कुल आंतरिक विस्थापन में वृद्धि दर्ज की गई। 2019 में जहां देशों की सीमाओं के अंदर 3.15 करोड़ लोग विस्थापित हुए थे, वहीं 2020 में 4.5 करोड़ लोगों को अपने देश में ही विस्थापन के लिए मजबूर होना पड़ा।

रिपोर्ट में आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र (आईडीएमसी) द्वारा नियमित आंकड़ों के मिलान का हवाला दिया गया है। नए विस्थापन पर नवीनतम आंकड़ों में वे लोग हैं, जो अचानक शुरू हुई आपदाओं के कारण और अपने देश के भीतर ही विस्थापित हुए हैं। आईडीएमसी के अनुसार, धीमी गति से हमला करने वाली आपदाओं और दो देशों के बीच होने वाले विस्थापन को न शामिल करने के कारण विस्थापन के आकड़े अभी भी पूरे नहीं है।

बीते साल नए विस्थापन के ज्यादातर मामले जलवायु से संबंधित घटनाओं से जुड़े हैं - जैसे कि 1.46 करोड़ लोग तूफानों के चलते विस्थापन कर गए तो 1.41 करोड़ लोगों को बाढ़ के कारण विस्थापन करना पड़ा। 2020 में तापमान में तेज वृद्धि की वजह से 46000 नए लोगों को जबकि सूखे के कारण 32,000 नए लोगों को अपना घर छोड़कर कहीं और बसने के लिए मजबूर होना पड़ा। आईओएम रिपोर्ट के मुताबिक, ‘2008 से 2020 के दौरान सूखे के कारण 24 लाख नए लोगों को और 11 लाख लोगों को तापमान मे तेज वृद्धि के चलते विस्थापन करना पड़ा था।’

वैश्विक स्तर पर विस्थापन से जुड़ी यह प्रमुख रिपोर्ट जलवायु में परिवर्तन को प्रेरित करने वाले कारकों जैसे - तीव्र आपदाओं और मौसमी घटनाओं के चलते जगह बदलने और प्रवासन पर ध्यान केंद्रित करती है।

इससे पहले, विश्व बैंक ने अनुमान लगाया था कि उप-सहारा अफ्रीका, दक्षिण एशिया और लैटिन अमेरिका में जलवायु परिवर्तन संबंधी घटनाओं के कारण 2050 तक 14.3 करोड़ लोग अपने देश के अंदर ही विस्थापित होने के लिए मजबूर होंगेे। संयुक्त राष्ट्र की ही दूसरी एजेंसी, यूनाईटेड नेशंस कंवेंशन टू कॉम्बैट डि-सर्टिफिकेशन (यूएनसीसीडी) का आकलन था कि साल 2000 से 2015 की तुलना में 2059 तक सूखे के चलते अफ्रीका में 2.2 करोड़ और लोग, दक्षिण अमेरिका में 1.2 करोड़ लोग और एशिया में एक करोड़ लोगों को विस्थापन करना पड़ेगा।

ऐतिहासिक रूप से लोग संघर्षों और हिंसा के कारण नई जगह पर रहने जाने के लिए मजबूर होते थे लेकिन हाल के सालों में इस प्रवृत्ति मे बदलाव आया है। आईओएम रिपोर्ट के मुताबिक, ‘ इधर के किसी भी साल में, संघर्ष और हिंसा से नए विस्थापित लोगों की तुलना में आपदाओं के चलते नए विस्थापित होने वाले लोगों की तादाद ज्यादा है। इसके चलते संबंधित देश के अलावा कई और देश भी आपदा से होने वाले इस विस्थापन से प्रभावित होते हैं,’।

जब से आईडीएमसी ने 2018 में आपदाओं से विस्थापित हुए लोगों के आंकड़ों का बाकी आंकड़ों के साथ मिलाव करना शुरू किया है, तब से इससे प्रभावित होने वाले लोगों का यह समूह बढ़ रहा है।

जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ रहे विस्थापन की त्रीवता के बारे में इस तथ्य से अनुमान लगाया जा सकता है कि 2020 में दुनिया भर में कुल विस्थापन में से 76 फीसदी की वजह यही एक कारक था। दुनिया के 42 देशों ने अपने देश में विस्थापन की वजह संघर्ष और हिंसा को बताया तो लगभग 144 देशों ने प्राकृतिक आपदाओं को इसकी वजह बताया।

दिसंबर 2019 में प्रकाशित पिछली वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट में पाया गया था कि 2018 में दुनिया के 148 देशों में आंतरिक विस्थापन झेलने वाले 2.8 करोड़ लोगों में से 61 फीसदी लोगों को प्राकृतिक आपदाओं की वजह से विस्थापित होना पड़ा था।

वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट 2022 के मुताबिक, बीते साल फिलीपींस में सबसे ज्यादा 51 लाख लोगों को प्राकृतिक आपदाओं की वजह से विस्थापन का शिकार होना पड़ा। एशिया में आपदाओं के कारण सबसे बड़ा विस्थापन दर्ज किया गया। चीन में 2020 के अंत तक 50 लाख और भारत में लगभग 40 लाख नए लोग प्राकृतिक आपदाओं के चलते विस्थापन का शिकार हुए।

आईओएम के महानिदेशक एंटोनियो विटोरिनो के मुताबिक, ‘हम ऐसे विरोधाभास के साक्षी बन रहे हैं, जिसे मानव-इतिहास में पहले कभी नहीं देखा गया। कोविड-19 महामारी के चलते जहां अरबों लोगों को पूरी तरह से एक ही जगह टिककर रहना पड़ रहा है, वहीं करोड़ों लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें अपने ही देश में विस्थापन का दंश झेलना पड़ा है। ’