जलवायु

जलवायु संकट: मध्य एशिया के मैदानी इलाके गर्म और शुष्क रेगिस्तान में बदल रहे हैं, पहाड़ों पर बढ़ी बारिश

शोधकर्ताओं ने पाया कि मध्य एशिया के हवा के तापमान में 1990 से 2020 के बीच औसतन 5 डिग्री सेल्सियस तक की बढ़ोतरी हो गई है

Dayanidhi

मध्य एशिया की 60 फीसदी से अधिक हिस्सों की जलवायु शुष्क और अर्धशुष्क है। ऐसी जलवायु में फसल पैदा करने और प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता पर जलवायु की विविधताओं का विशेष रूप से असर पड़ता है।

यहां तक ​​कि मामूली सूखे वाले सालों में भी कृषि उपज का काफी नुकसान होता है। जिसके कारण स्थानीय अर्थव्यवस्था तबाह हो जाती है और देशों के वित्त और सामाजिक स्थिरता को खतरा होता है।

इस प्रकार यह समझना महत्वपूर्ण है कि इस क्षेत्र में जलवायु कैसे बदल रही रही है और यह परिवर्तन इस क्षेत्र को किस दिशा में ले जा रहा है।

शोधकर्ताओं की एक टीम ने ग्लोबल वार्मिंग के तहत बदलती परिस्थितियों के बारे में अधिक जानने के लिए मध्य एशिया में मौसम का क्षेत्र-दर-क्षेत्र अध्ययन किया। अध्ययन में क्यूई हू और जिहांग हान ने वर्णन किया है कि कैसे उन्होंने इलाकों पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों के बारे में अधिक स्थानीय आधार पर जानकारी हासिल करने के लिए इस क्षेत्र को अलग-अलग हिस्सों में विभाजित किया।

यह अध्ययन नेब्रास्का विश्वविद्यालय के प्राकृतिक संसाधन स्कूल और पृथ्वी और वायुमंडलीय विज्ञान विभाग के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है।

जैसे-जैसे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ रहा है, दुनिया भर के वैज्ञानिक यह समझने के लिए हाथ-पांव मार रहे हैं कि एक गर्म होती दुनिया कैसी दिखेगी। इस नए प्रयास में, हू और हान ने अध्ययन को मध्य एशिया पर केंद्रित किया है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान और चीन के कुछ पश्चिमी हिस्से जैसे देश शामिल हैं।

मध्य एशिया का अधिकांश भाग शुष्क है और इसका अधिकतर भाग रेगिस्तानी है। शोध से पता चला है कि जैसे-जैसे क्षेत्र गर्म हो रहा है, यह भी सूखता जा रहा है, अध्ययन में बताया गया है कि इस क्षेत्र के कुछ हिस्से अंततः निर्जन हो जाएंगे।

इस नए प्रयास में, शोधकर्ताओं ने गौर किया कि मध्य एशिया में जलवायु परिवर्तन में अधिकांश शोधों ने पूरे क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किया है, जो कि  स्थानीय जलवायु में हो रहे बदलावों को कम करने के प्रयासों में योगदान नहीं करता है।

उस स्थिति को सुधारने के लिए, उन्होंने इस क्षेत्र को 11 जलवायु क्षेत्रों में विभाजित किया। उनमें से प्रत्येक के लिए जलवायु के आंकड़ों का अध्ययन किया ताकि यह देखा जा सके कि अब तक क्या-क्या बदलाव हो चुके हैं और यदि संभव हो तो भविष्य में होने वाले बदलावों का पूर्वानुमना लगाने के लिए ऐसा किया गया।

स्थानीय आधार पर क्षेत्रों को देखते हुए, शोधकर्ताओं ने पाया कि हवा के तापमान में 1990 से 2020 के बीच औसतन 5 डिग्री सेल्सियस तक की बढ़ोतरी हो गई है। उन्होंने यह भी पाया कि रेगिस्तानी इलाके बढ़ रहे हैं, उत्तर और पूर्व दोनों जगहों पर इनका विस्तार हो रहा है।

1980 के दशक के मध्य से मध्य एशिया के कई इलाकों में रेगिस्तान उत्तर की ओर 100 किमी से अधिक का विस्तार हुआ है।

रेगिस्तान में बदलने वाले अधिकांश क्षेत्रों में बारिश कम हो रही है। शोधकर्ताओं को कुछ पूर्वी पर्वतीय क्षेत्रों में भी अधिक वर्षा होने का पता चला है, लेकिन यह बर्फबारी के बजाय अधिक बार बारिश हुई है। बढ़ती बारिश के साथ-साथ बढ़ते तापमान ने अधिक ऊंचाई पर बर्फ और इसकी कमी को बढ़ा दिया है। यह अध्ययन जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।