फुर्सत के पलों में झपकी लेते जानवर; फोटो: आईस्टॉक 
जलवायु

जलवायु संकट: इंसान ही नहीं जंगली जानवरों की भी नींदें उड़ा रहा बढ़ता तापमान

बेहतर और पर्याप्त नींद जहां शारीरिक तौर पर स्वस्थ बनाए रखने में मदद करती है। साथ ही यह मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है

Lalit Maurya

क्या बढ़ता तापमान सिर्फ हम इंसानों के लिए खतरा है? क्या धरती के दूसरे जीव जलवायु में आते इन बदलावों से सुरक्षित हैं? यदि कम शब्दों में इसका उत्तर दें तो जवाब है, ‘नहीं’। दुनिया भर में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जिनसे पुष्टि हुई है कि बढ़ता तापमान इंसानों के साथ-साथ ध्रुवीय भालू, पक्षियों, मछलियों, कीट-पतंगों सहित छोटे बड़े अन्य जीवों को भी प्रभावित कर रहा है।

बढ़ते तापमान और मौसमी बदलावों के जंगली जानवरों पर पड़ते प्रभावों को समझने के लिए किए ऐसे ही एक नए अध्ययन से पता चला है कि ऋतुओं और चरम मौसमी स्थिति में आ रहा नाटकीय बदलाव जानवरों की नींद को प्रभावित कर सकता है। इस रिसर्च के मुताबिक गर्मियों में अधिक तापमान जंगली जानवरों की नींद की गुणवत्ता को खराब कर सकता है, जिससे उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है।

क्वीन्स यूनिवर्सिटी बेलफास्ट, चेक यूनिवर्सिटी ऑफ लाइफ साइंसेज और स्वानसी यूनिवर्सिटी से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किए इस अध्ययन के नतीजे जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द रॉयल सोसाइटी बी: बायोलॉजिकल साइंसेज में प्रकाशित हुए हैं। गौरतलब है कि इससे पहले सर्रे विश्वविद्यालय ने भी अपने एक अध्ययन में खुलासा किया था कि जलवायु परिवर्तन हमारी नींद और उसकी गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है।

देखा जाए तो हम इस बारे में बहुत सीमित जानकारी रखते हैं कि पर्यावरण जंगली जानवरों की नींद को कैसे प्रभावित करता है। ऐसे में क्वीन्स यूनिवर्सिटी के नेतृत्व में जंगली सूअरों पर किए इस अध्ययन का उद्देश्य यह समझना था कि कैसे मौसम और जलवायु में आते बदलाव इन जीवों की नींद को प्रभावित कर रहे हैं।

जंगली जानवरों की नींद को लेकर किया यह अब तक का सबसे लम्बा और विस्तृत अध्ययन था। इस अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने चेक गणराज्य के दो स्थानों पर करीब 30 जंगली सूअरों की नींद और सोने के व्यवहार को रिकॉर्ड किया गया। शोधकर्ताओं ने जानवरों को परेशान किए बिना तीन वर्षों तक उनकी नींद को ट्रैक करने के लिए विशेष उपकरणों की भी मदद ली थी।

अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि गर्म, नम दिनों में नींद की मात्रा, दक्षता और गुणवत्ता काफी घट जाती है, जबकि दूसरी तरफ ठंडे मौसम, बर्फ और बारिश के दौरान नींद की गुणवत्ता में सुधार आता है।

अध्ययन में अलग-अलग जानवरों के बीच भी बड़ा अंतर देखा गया। पता चला है कि कुछ दूसरों की तुलना में बहुत कम सोते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि उनकी नींद 46 फीसदी तक कम हो सकती है। लेकिन वो अपनी कम नींद की भरपाई बेहतर गुणवत्ता से नहीं कर सकते। इसका मतलब है कि लंबे समय में पर्याप्त नींद न लेने से उन्हें कहीं ज्यादा समस्याएं हो सकती है।

क्यों जरूरी है अच्छी नींद

गौरतलब है कि न केवल हम इंसानों बल्कि अन्य जीवों के लिए भी नींद बेहद जरूरी है। पर्याप्त और बेहतर नींद जहां शारीरिक तौर पर स्वस्थ बनाए रखने में मदद करती है। साथ ही यह मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण होती है। यह शारीरिक गतिविधियों को सुचारु रखने में मदद करती है। यही वजह है कि बेहतर नींद लेने के बाद जब हम उठते हैं तो खुद को तरोताजा और ऊर्जावान महसूस करते हैं।

अध्ययन से जुड़े विशेषज्ञों का भी कहना है कि जो लोग आमतौर पर सामान्य से कम नींद लेते हैं, उनमें आगे चलकर दिमागी समस्याएं विकसित हो सकती हैं। यह स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि पर्याप्त नींद न लेने से उसके लम्बे समय तक प्रभाव पड़ सकते हैं।

क्वीन्स यूनिवर्सिटी और अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता डॉक्टर इसाबेला कैपेलिनी ने निष्कर्षों पर टिप्पणी करते हुए प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि, "नींद स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है। लेकिन जैसे-जैसे दुनिया गर्म हो रही है, और मौसम खराब हो रहा है। इसकी वजह से विशेष तौर पर निशाचर जीवों की नींद में खलल पड़ रहा है। ऐसे में इसका खामियाजा सेहत पर पड़ते प्रभावों के रूप में भुगतना पड़ सकता है।“

उन्होंने आशंका जताई है कि ऐसा हम इंसानों के साथ भी हो सकता है।

उनका आगे कहना है कि निष्कर्ष दर्शाते हैं कि जो लोग लगातार कम सोते हैं या अच्छे से नींद पूरी नहीं करते, उन्हें पर्याप्त नींद लेने के फायदे नहीं मिलते। उनके मुताबिक लम्बे समय तक पर्याप्त नींद न लेने से उन्हें कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। यही वजह है कि रोजमर्रा के दूसरे कामों के साथ इसपर भी पर्याप्त ध्यान देना जरूरी है।

शोधकर्ताओं को भरोसा है कि इस अध्ययन के जो निष्कर्ष सामने आए हैं, वो न केवल जानवरों बल्कि इंसानों की नींद और जीवन गुणवत्ता में सुधार लाने में मददगार साबित हो सकते हैं।