समुद्र के बढ़ते जलस्तर के कारण दुनिया भर में 10 करोड़ इमारतें खतरे में पड़ सकती हैं। मैकगिल विश्वविद्यालय के अध्ययन के अनुसार, अगर जीवाश्म ईंधन का उपयोग नहीं रोका गया, तो सदी के अंत तक तटीय शहरों में लाखों लोग और अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी।
नतीजे दर्शाते हैं कि अगर समुद्र का स्तर महज 0.5 मीटर भी बढ़ता है, जोकि उत्सर्जन में कटौती के बावजूद संभव है तो इसकी वजह से करीब 30 लाख इमारतें पानी में डूब सकती हैं।
वहीं यदि बढ़ते उत्सर्जन को जल्द न रोका गया और समुद्र का स्तर पांच मीटर या उससे ज्यादा बढ़ गया, तो यह खतरा कई गुना बढ़ जाएगा। ऐसी स्थिति में 10 करोड़ से अधिक इमारतें खतरे में आ सकती हैं।
चिंता की बात है कि अधिकतर खतरे में आने वाली इमारतें घनी आबादी वाले निचले इलाकों में हैं। इसका मतलब है कि पूरे मोहल्ले, बंदरगाह, रिफाइनरी और सांस्कृतिक धरोहर स्थलों जैसी महत्वपूर्ण संरचनाएं भी बाढ़ की चपेट में आ सकती हैं।
एक नए अध्ययन से पता चला है कि अगर जीवाश्म ईंधन के उपयोग को सीमित न किया गया तो दक्षिण के तटीय शहरों में सदी के अंत तक 10 करोड़ से अधिक इमारतें जलमग्न हो सकती हैं।
वैज्ञानिकों के मुताबिक इसके प्रभाव सिर्फ इमारतों तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि इसकी वजह से लाखों लोगों का जीवन और अर्थव्यवस्था भी खतरे में पड़ जाएगी। यह अध्ययन मैकगिल विश्वविद्यालय से जुड़े वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किया गया है, जिसके नतीजे नेचर जर्नल अर्बन सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित हुए हैं।
गौरतलब है कि यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है जिसमें अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और मध्य व दक्षिण अमेरिका के तटीय इलाकों में समुद्र के बढ़ते स्तर का इमारत-दर-इमारत असर आंका गया है। शोधकर्ताओं ने सैटेलाइट की मदद से तैयार नक्शों और ऊंचाई से जुड़े आंकड़ों की मदद से अनुमान लगाया कि आने वाले वर्षों में समुद्र का स्तर बढ़ने पर कितनी इमारतें डूब सकती हैं।
धीरे लेकिन लगातार बढ़ रहा है समुद्र का स्तर
इस अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता प्रोफेसर नताल्या गोमेज का इस बारे में कहना है, "समुद्र का बढ़ता स्तर जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ते तापमान का धीमा लेकिन अटूट नतीजा है, जो पहले ही तटीय आबादी को प्रभावित कर रहा है और आने वाली कई सदियों तक करता रहेगा।“
उनके मुताबिक, लोग अक्सर समुद्र के कुछ सेंटीमीटर या एक मीटर बढ़ने की बात करते हैं, लेकिन अगर जीवाश्म ईंधनों का उपयोग जल्द न रोका गया, तो यह स्तर कई मीटर तक बढ़ सकता है।
कम वृद्धि में भी जोखिम अधिक
इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने समुद्र के स्तर में 0.5 मीटर से लेकर 20 मीटर तक की बढ़ोतरी के कई अनुमानित परिदृश्यों का अध्ययन किया है। इसके नतीजे दर्शाते हैं कि अगर समुद्र का स्तर महज 0.5 मीटर भी बढ़ता है, जोकि उत्सर्जन में कटौती के बावजूद संभव है तो इसकी वजह से करीब 30 लाख इमारतें पानी में डूब सकती हैं।
वहीं यदि बढ़ते उत्सर्जन को जल्द न रोका गया और समुद्र का स्तर पांच मीटर या उससे ज्यादा बढ़ गया, तो यह खतरा कई गुना बढ़ जाएगा। ऐसी स्थिति में 10 करोड़ से अधिक इमारतें खतरे में आ सकती हैं।
चिंता की बात है कि अधिकतर खतरे में आने वाली इमारतें घनी आबादी वाले निचले इलाकों में हैं। इसका मतलब है कि पूरे मोहल्ले, बंदरगाह, रिफाइनरी और सांस्कृतिक धरोहर स्थलों जैसी महत्वपूर्ण संरचनाएं भी बाढ़ की चपेट में आ सकती हैं।
अध्ययन से जुड़े अन्य शोधकर्ता प्रोफेसर जेफ कार्डिले का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, "हैरानी की बात है कि समुद्र के स्तर में मामूली बढ़ोतरी से भी इतनी बड़ी संख्या में इमारतें खतरे में पड़ सकती हैं। कुछ तटीय देशों पर यह असर दूसरों की तुलना में कहीं ज्यादा होगा, क्योंकि यह उनके भौगोलिक ढांचे और इमारतों की स्थिति पर निर्भर करता है।“
शोधकर्ताओं का मानना है कि यह अध्ययन शहरी योजनाकारों, नीति निर्माताओं और समुदायों के लिए बेहद अहम जानकारी प्रदान करता है, जिससे वे भविष्य में समुद्र के बढ़ते स्तर से निपटने की तैयारी कर सकें।
भारतीय शहर भी सुरक्षित नहीं
समुद्र के बढ़ते जलस्तर से भारतीय शहर भी सुरक्षित नहीं है। एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि यदि उत्सर्जन पर लगाम न लगाई गई तो समुद्र के बढ़ते जलस्तर की वजह से मुंबई में करीब 830 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पानी में डूब जाएगा, जो सदी के अंत तक 1,377.13 वर्ग किलोमीटर तक पहुंच सकता है। मतलब की मुंबई का करीब 21.8 फीसदी हिस्सा पानी में डूबा होगा।
इसी तरह अगले 16 वर्षों में चेन्नई का 7.3 फीसदी (86.8 वर्ग किलोमीटर) हिस्सा पानी में डूबा होगा। यह क्षेत्र सदी के अंत तक बढ़कर 18 फीसदी (215.77 वर्ग किलोमीटर) से ज्यादा हो जाएगा। इसी तरह 2040 तक यनम और थूथुकुड़ी में करीब दस फीसदी हिस्सा पानी में डूब जाएगा। पणजी और चेन्नई में यह आंकड़ा पांच से दस फीसदी के बीच रहने का अंदेशा है। वहीं समुद्र का बढ़ता जलस्तर कोच्चि, मैंगलोर, विशाखापत्तनम, हल्दिया, उडुपी, पारादीप और पुरी में एक से पांच फीसदी जमीन को निगल सकता है।
अन्य रिसर्च से पता चला है कि लक्षद्वीप के आसपास समुद्र का जलस्तर 0.4 से 0.9 मिलीमीटर प्रतिवर्ष की दर से बढ़ सकता है। इसकी वजह से चेतलाट और अमिनी जैसे छोटे द्वीपों में बड़े पैमाने पर भूमि नुकसान की आशंका है। प्रोजेक्शन मैपिंग से पता चला है कि अमिनी द्वीप में मौजूदा तटरेखा का लगभग 60 से 70 फीसदी और चेतलाट में 70 से 80 फीसदी भूमि को नुकसान पहुंच सकता है।
हर किसी पर पड़ेगा थोड़ा-बहुत असर
प्रोफेसर एरिक गैल्ब्रैथ ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “जलवायु परिवर्तन और समुद्र के बढ़ते स्तर का असर हम सभी पर पड़ेगा, चाहे हम समुद्र किनारे रहते हों या नहीं। हम सभी का जीवन उन वस्तुओं, खाद्य पदार्थों और ईंधनों पर निर्भर है जो बंदरगाहों और तटीय ढांचों की मदद से हम तक पहुंचते हैं। ऐसे में अगर यह तटीय ढांचे प्रभावित हुए, तो पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था और खाद्य व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो सकती है।“
इस अध्ययन के साथ शोधकर्ताओं ने एक इंटरएक्टिव मानचित्र भी तैयार किया है जो नीति निर्माताओं को यह समझने में मदद करेगा कि किन क्षेत्रों को सबसे अधिक खतरा है। यह आंकड़े तटीय सुरक्षा ढांचा तैयार करने, भूमि उपयोग संबंधी योजनाओं में बदलाव करने या कुछ मामलों में व्यवस्थित पलायन जैसी जलवायु अनुकूलन रणनीतियों को आकार देने में भी मददगार साबित हो सकते हैं।
अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता माया विलार्ड-स्टीपन का कहना है, “समुद्र के स्तर में थोड़ी बहुत वृद्धि को टाला नहीं जा सकता। लेकिन जितनी जल्दी तटीय समुदाय इसकी तैयारी शुरू करेंगे, इस बात की उतनी ही अधिक संभावना है कि वे भविष्य में सुरक्षित और समृद्ध रह सकेंगे।“