जलवायु

स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट रिपोर्ट: तीन साल के ला नीना के बावजूद 2022 में चरम मौसमी घटनाओं ने रिकॉर्ड तोड़ा

2022 में जहां पूर्वी अफ्रीका लगातार सूखा चपेट में था, वहीं पाकिस्तान में रिकॉर्ड बारिश के साथ चीन और यूरोप में लू का कहर अपने चरम पर था

Rohini Krishnamurthy, Lalit Maurya

21 अप्रैल, 2022 को जारी स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट 2022 रिपोर्ट ने एक बार फिर जलवायु में आते बदलावों को लेकर दुनिया को आगाह किया है। रिपोर्ट के अनुसार जहां 2022 में कई जलवायु रिकॉर्ड बने बिगड़े थे। वहीं साथ ही जलवायु में आते बदलावों का कहर जारी रहा, जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि मानव इन बदलावों के आगे कितना बेबस है।

इस बारे में रिपोर्ट जारी करने वाले संस्थान विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्लूएमओ) ने चेतावनी दी है कि मौसम और जलवायु से जुड़ी घटनाओं ने पारिस्थितिक तंत्र और पर्यावरण को प्रभावित करने के साथ-साथ इंसानों के लिए भी कई मानवीय पैदा किए हैं। डब्ल्यूएमओ के महासचिव पेटेरी तालस ने अपने एक बयान में कहा कि, “जबकि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि और जलवायु में होता बदलाव जारी है, ऐसे में दुनिया भर में आबादी चरम मौसमी और जलवायु घटनाओं से गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है।“

रिपोर्ट के मुताबिक जहां 2022 में पूर्वी अफ्रीका में लगातार सूखा पड़ा। वहीं पाकिस्तान में रिकॉर्ड बारिश दर्ज की गई, जबकि चीन और यूरोप भी इसके कहर से नहीं बच सके और रिकॉर्ड लू की चपेट में रहे। इससे न केवल करोड़ों लोग प्रभावित हुए, बल्कि साथ ही खाद्य असुरक्षा और बड़े पैमाने पर पलायन भी हुआ। आर्थिक रूप से देखें तो जलवायु के इस कहर ने अरबों डॉलर का नुकसान पहुंचाया।

यदि तापमान में होती वृद्धि को देखें तो 2022 में वैश्विक औसत तापमान औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.15 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। देखा जाए तो लगातार तीन वर्षों तक चले ला नीना ने भी इसमें कोई राहत नहीं दी। वहीं 2021 में वैश्विक तापमान औसत से 1.11 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था। हालांकि आपको बता दें कि ला नीना की घटनाओं के दौरान, वैश्विक तापमान सामान्य से ठंडा होता है, जिसका प्रभाव लगभग नौ महीने तक रहता है।

मैप 1992 से 2020 के औसत की तुलना में 2022 के तापमान में दर्ज बदलावों को दर्शाता है। स्रोत: स्टेट ऑफ ग्लोबल क्लाइमेट 2022

बनते-बिगड़ते जलवायु रिकॉर्ड

बढ़ता तापमान का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि 2015 से 2022 अब तक के आठ सबसे गर्म वर्ष थे। इसके अलावा, 2021 और 2022 में वैश्विक तापमान 2011 की तुलना में कहीं ज्यादा गर्म था, हालांकि पिछले साल ला नीना की घटना ने इसे काफी प्रभावित किया था।

यदि ग्रीनहाउस गैसों को देखें तो वातावरण में इनकी मात्रा भी 2021 में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई थी। आंकड़ों के मुताबिक 2021 में वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) का स्तर करीब 415.7 भाग प्रति मिलियन (पीपीएम) तक पहुंच गया, जोकि औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 149 फीसदी अधिक है। सीओ2 में होती वृद्धि का आलम यह है कि उसके बढ़ने की दर 2020-2021 में पिछले दशक की औसत वार्षिक वृद्धि दर को पार कर गई है।

ऐसा ही कुछ मीथेन (सीएच4) के साथ भी दर्ज किया गया, वातावरण में जिसका स्तर 2021 में करीब 1,908 भाग प्रति बिलियन (पीपीबी) तक बढ़ गया था। देखा जाए तो यह औद्योगिक काल से पहले की तुलना में करीब 262 फीसदी ज्यादा है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह गैस कार्बन डाइऑक्साइड से 84 से 86 गुणा ज्यादा खतरनाक है। आंकड़ों की मानें तो 2020-2021 की तुलना में 2021 में सीएच4 के स्तर में 18 पीपीबी की वृद्धि दर्ज की गई है। जो रिकॉर्ड पर सबसे बड़ी वार्षिक वृद्धि है। देखा जाए तो 2007 के बाद से होती इस वृद्धि में माइक्रोबियल या बायोजेनिक स्रोतों ने बड़े पैमाने पर योगदान दिया है। इसी तरह 2021 में नाइट्रस ऑक्साइड का स्तर भी करीब 334.5 पीपीबी पर पहुंच गया था, जोकि औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 124 फीसदी ज्यादा है।

इस बढ़ते तापमान और बदलती जलवायु में समुद्रों को भी गंभीर रूप से प्रभावित किया है। महासागरों में बढ़ती गर्मी और जमा ऊष्मा 2022 में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई। रिपोर्ट में आगाह किया है कि चूंकि ग्रीनहाउस गैसों द्वारा बढ़ती इस गर्मी का 90 फीसद हिस्सा समुद्रों द्वारा सोख लिया जाता है। ऐसे में यह बढ़ता तापमान समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के लिए गंभीर जोखिम पैदा कर रहा है।

2022 में ला नीना के बावजूद, कम से कम समुद्री लू की एक घटना ने सतह के 58 फीसदी हिस्से को प्रभावित किया है।  कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सैन डिएगो के अनुसार एक समुद्री लू, असामान्य रूप से उच्च समुद्री तापमान की अवधि है और जो अपनी अवधि और तीव्रता से परिभाषित होती है।

वर्तमान में समुद्र का वैश्विक औसत स्तर एक नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है, जोकि गंभीर मुद्दा है। रिपोर्ट के अनुसार इसमें वृद्धि की दर 1993 से 2002 की तुलना में 2013 से 2022 की अवधि में दोगुणी हो गई है। गौरतलब है कि जहां 1993 से 2002 में इसकी वार्षिक वृद्धि 2.27 मिलीमीटर थी जो 2013 से 2022 के बीच बढ़कर 4.62 मिलीमीटर प्रति वर्ष पर पहुंच गई थी।

ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में भी इस दौरान ग्लेशियरों को भारी नुकसान हुआ। बर्फ को हुए इस नुकसान ने 2005 से 2019 के बीच समुद्र के स्तर में होती वैश्विक औसत वृद्धि में 36 फीसदी का योगदान दिया था। जैसा कि हम जानते हैं कि समुद्र के गर्म होने से पानी फैलता है। ऐसे में इस घटना ने समुद्र के वैश्विक औसत स्तर की वृद्धि में 55 फीसदी का योगदान दिया।

बढ़ रहा लू, सूखे और बाढ़ का कहर

लगातार पांच सूखे मानसून देखने के जब बारिश औसत से कम हुई, पूर्वी अफ्रीका को गंभीर सूखे का सामना करना पड़ा। नतीजन इस क्षेत्र में रहने वाले करीब दो करोड़ लोगों को दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करना पड़ा।

वहीं इसके उलट हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में आई रिकॉर्ड तोड़ बारिश ने पाकिस्तान के कई हिस्सों को जलमग्न कर दिया। इसकी वजह से जहां 3.3 करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित हुए। वहीं 80 लाख लोगों को विस्थापन का दर्द झेलना पड़ा। यदि इस बाढ़ से हुए कुल नुकसान को देखें तो वो करीब ढाई लाख करोड़ रूपए ( 3,000 करोड़ डॉलर) के बराबर था।

यूरोप और चीन में इस दौरान लू का कहर जारी था। बढ़ती गर्मी ने स्पेन, जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और पुर्तगाल में 15,000 से ज्यादा लोगों को लील लिया। आधे जून से अगस्त के अंत तक चीन में लू का कहर जारी था जब देश ने सबसे गर्म मौसम का अनुभव किया। इस दौरान चीन ने इतिहास में अपनी दूसरी सबसे शुष्क गर्मी का भी सामना किया।

इस बारे में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस का कहना है कि, "हमारे पास ज्ञान, उपकरण और समाधान हैं। लेकिन हमें रफ्तार पकड़नी होगी। उनके मुताबिक हमें वैश्विक तापमान वृद्धि में होती वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए उत्सर्जन में जल्द भारी कटौती करने की जरूरत है। इसके लिए तुरंत जलवायु कार्रवाई की आवश्यकता है। उन्होंने अनुकूलन और इसका सामना करने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता को भी उजागर किया। उनका कहना है कि विशेष रूप से सबसे कमजोर देशों और समुदायों के लिए जिन्होंने इस खतरे को पैदा करने में सबसे कम भूमिका निभाई है, उनपर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।