जलवायु

जलवायु संकट: 2050 तक जानलेवा गर्मी के संपर्क में होंगे और 24.6 करोड़ बुजुर्ग, एशिया, अफ्रीका होंगे सबसे ज्यादा प्रभावित

भारत में जहां 2020 में 69 वर्ष या उससे अधिक आयु के 5.2 करोड़ बुजुर्ग भीषण गर्मी की चपेट में थे। वहीं 2050 तक यह आंकड़ा 173 फीसदी बढ़कर 14.2 करोड़ पर पहुंच सकता है

Lalit Maurya

वैश्विक स्तर पर जिस तरह से तापमान में इजाफा हो रहा है, वो बुजुर्गों के लिए कहीं ज्यादा घातक होता जा रहा है। यही वजह है कि आने वाले कुछ दशकों में कहीं ज्यादा बुजुर्गों को भीषण गर्मी से जूझना पड़ सकता है।

बढ़ते तापमान के बुजुर्गों पर बढ़ते प्रभावों को लेकर की गई एक नई रिसर्च से पता चला है कि 2050 तक और 24.6 करोड़ बुजुर्गों को जानलेवा गर्मी का सामना करने को मजबूर होना पड़ेगा। आशंका है कि इससे सबसे ज्यादा प्रभावित एशिया और अफ्रीका में रहने वाले बुजुर्ग होंगें।

एक तरफ बढ़ता तापमान नित नए रिकॉर्ड बना रहा है, साथ ही बदलती जलवायु के साथ गर्मी, लू, बाढ़, सूखा जैसी चरम मौसमी घटनाओं का प्रकोप भी बढ़ रहा है। ऐसा ही कुछ इस साल भी देखा गया जब साल के शुरूआती चारों महीनों ने बढ़ते तापमान के नए रिकॉर्ड बनाए हैं।

वहीं दूसरी तरफ दुनिया की आबादी बड़ी तेजी से बूढी हो रही है। वैश्विक आबादी कितनी तेजी से बूढी हो रही है, यह अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि 2050 तक दुनिया में 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के बुजुर्गों की आबादी बढ़कर दोगुनी हो जाएगी।

ऐसे में उम्मीद है कि 2050 तक 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों की संख्या बढ़कर 210 करोड़ पर पहुंच सकती है। इनमें दो-तिहाई से ज्यादा लोग निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रह रहे होंगें। गौरतलब है कि यह क्षेत्र विशेष रूप से जलवायु में आते बदलावों और चरम मौसमी घटनाओं के प्रति भी संवेदनशील हैं।

देखा जाए तो भीषण गर्मी और लू की घटनाओं का बार-बार घटना और इसकी अवधि और कहर में इजाफा होना लोगों के स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। बुजुर्गों को इससे कहीं ज्यादा खतरा रहता है, क्योंकि कहीं न कहीं उम्र बढ़ने के साथ शरीर कमजोर होता जाता है। ऐसे में शरीर के लिए अपने तापमान को नियंत्रित करना कठिन हो जाता है।

इसकी वजह से गर्मी, सर्दी जैसे मौसमी बदलावों को सहने की क्षमता कम होती जाती है। नतीजन उनपर इस तरह के बदलावों का जोखिम भी बढ़ जाता है। ऐसे में बढ़ती गर्मी की वजह से उनके स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं और बदतर हो सकती हैं।

ऐसी ही एक चरम मौसमी लू की घटना 2015 में दर्ज की गई, जिसने भारत, पाकिस्तान में 3500 से ज्यादा जिंदगियों को निगल लिया था। इनमें से ज्यादातर उम्र दराज लोग थे। इस तरह की घटनाएं इस बात का ज्वलंत उदाहरण है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पहले से कहीं ज्यादा प्रबल होते जा रहें हैं, जो कमजोर आबादी के लिए काल बन रहे हैं।

भारत में तेजी से बूढी हो रही आबादी, बढ़ रहा जोखिम

भारत के मामले में भी ऐसा ही कुछ देखा गया है। इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023 के मुताबिक 2050 भारत में 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों की हिस्सेदारी बढ़कर 20.8 फीसदी हो जाएगी। यानी की देश में बुजुर्गों की संख्या बढ़कर करीब 34.7 करोड़ पर पहुंच जाएगी। वहीं सदी के अंत तक यह आंकड़ा बढ़कर 36 फीसदी पर पहुंच जाएगा।

गौरतलब है कि 2022 में देश की कुल आबादी में बुजुर्गों की हिस्सेदारी साढ़े दस फीसदी की थी। मतलब की 2022 में 14.9 करोड़ लोगों की उम्र 60 या उसके पार थी। देखा जाए तो देश में तेजी से बुजुर्ग होती यह आबादी जलवायु में आते बदलावों के प्रति भी बेहद संवेदनशील है। भारत जैसे देशों में एक बड़ी आबादी ऐसी है जिसके लिए एयरकंडीशन तो दूर की बात पंखा-कूलर भी लक्जरी से कम नहीं।

इस अध्ययन के मुताबिक भारत में जहां 2020 में 69 वर्ष या उससे अधिक आयु के 5.2 करोड़ बुजुर्ग भीषण गर्मी की चपेट में थे। वहीं 2050 तक यह आंकड़ा 173 फीसदी बढ़कर 14.2 करोड़ पर पहुंच सकता है।

इस रिसर्च में यूरो-मेडिटेरेनियन सेंटर ऑन क्लाइमेट चेंज, इटली और बॉस्टन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता शामिल थे, उन्होंने दुनिया भर में विभिन्न आयु वर्ग के लोगों के अत्यधिक उच्च तापमान के संपर्क में आने के रुझानों का विश्लेषण किया है। इस विश्लेषण के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुए हैं।

इस विश्लेषण के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि 2050 तक, 69 वर्ष या उससे अधिक आयु की 23 फीसदी आबादी ऐसे क्षेत्रों में रहने को मजबूर होगी, जहां तापमान 37.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक होगा। बता दें कि यह तापमान स्वास्थ्य के नजरिए से सुरक्षित नहीं है और उसे गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। वहीं 2020 के आंकड़ों पर गौर करें तो 14 फीसदी बुजुर्ग ऐसे थे जो इस जानलेवा गर्मी में जीवन बसर करने को मजबूर थे।

रिसर्च से यह भी पता चला है कि 2050 तक और करीब 24.6 करोड़ बुजुर्गों को इन परिस्थितियों का सामना करने पर मजबूर होना पड़ सकता है। रिसर्च में इस बात की भी पुष्टि की है कि 2050 तक, दुनिया के हर हिस्से में बुजुर्गों आबादी के भीषण गर्मी के संपर्क में आने का जोखिम दोगुना हो जाएगा। हालांकि एशिया और अफ्रीका पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ेगा, क्योंकि इन क्षेत्रों में इस तरह के खतरों से निपटने के पर्याप्त साधन मौजूद नहीं हैं।