एक नए अध्ययन के अनुसार मानवजनित जलवायु परिवर्तन से सदी के मध्य तक तेज उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की संख्या दोगुनी हो जाएगी। इन चक्रवातों के चलते दुनिया भर के बड़े हिस्से खतरे में पड़ जाएंगे। विश्लेषण में यह भी अनुमान लगाया गया है कि इन चक्रवातों से जुड़ी अधिकतम हवा की गति लगभग 20 फीसदी तक बढ़ सकती है।
दुनिया की सबसे विनाशकारी चरम मौसम की घटनाओं में से एक होने के बावजूद, उष्णकटिबंधीय चक्रवात अपेक्षाकृत दुर्लभ हैं। किसी दिए गए वर्ष में, विश्व स्तर पर केवल लगभग 80 से 100 उष्णकटिबंधीय चक्रवात बनते हैं, जिनमें से अधिकांश कभी भी टकराते नहीं हैं।
इसके अलावा, इनके सटीक वैश्विक ऐतिहासिक रिकॉर्ड नहीं हैं, जिससे यह अनुमान लगाना कठिन हो जाता है कि वे कहां घटित होंगे और इससे निपटने के लिए सरकारों को किस तरह की कार्रवाई करनी चाहिए।
इस सीमा का पता लगाने के लिए, साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय से इवान हाई को शामिल करने वाले वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह ने एक नया दृष्टिकोण विकसित किया। जिन्होंने वैश्विक जलवायु मॉडल के साथ ऐतिहासिक आंकड़ों को मिलाकर सैकड़ों हजारों कृत्रिम उष्णकटिबंधीय चक्रवात उत्पन्न किए।
इस अध्ययन की अगुवाई, वाले व्रीजे यूनिवर्सिटी एम्स्टर्डम के इंस्टीट्यूट फॉर एनवायर्नमेंटल स्टडीज के डॉ. नादिया ब्लोमेन्डल ने किया है। डॉ. ब्लोमेन्डल ने कहा कि हमारे परिणामों से पता चलता है की हम उष्णकटिबंधीय चक्रवात के खतरों में सबसे अधिक वृद्धि होने की आशंका वाले स्थानों की पहचान करने में मदद कर सकते हैं। स्थानीय सरकारें तब अपने क्षेत्र में खतरों को कम करने के उपाय कर सकती हैं, ताकि जान-माल के नुकसान को कम किया जा सके
उन्होंने कहा हमारे सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर, अब हम प्रत्येक तटीय शहर या क्षेत्र के लिए उष्णकटिबंधीय चक्रवात के खतरों का अधिक सटीक विश्लेषण कर सकते हैं।
शोधकर्ताओं ने कंप्यूटर से बनाए गए इन चक्रवातों के साथ एक बहुत बड़ा डेटासेट बनाया, जिसमें प्राकृतिक चक्रवातों के समान विशेषताएं हैं। अब शोधकर्ता इनके आधार पर जलवायु परिवर्तन के कारण अगले दशकों में दुनिया भर में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की घटना और व्यवहार को और अधिक सटीक रूप दिखने में सक्षम हैं। यहां तक कि उन क्षेत्रों में भी जहां उष्णकटिबंधीय चक्रवात शायद ही कभी आते हैं।
टीम ने विश्लेषण में पाया गया कि सबसे तीव्र चक्रवातों की आवृत्ति, श्रेणी 3 या जलवायु परिवर्तन के कारण विश्व स्तर पर दोगुनी हो जाएगी। जबकि कमजोर उष्णकटिबंधीय चक्रवात और उष्णकटिबंधीय तूफान दुनिया के अधिकांश क्षेत्रों में आम हो जाएंगे। इसका उलट बंगाल की खाड़ी होगी, जहां शोधकर्ताओं ने तीव्र चक्रवातों की आवृत्ति में कमी पाई।
सबसे अधिक खतरे वाले स्थान निम्न-आय वाले देशों में होंगे। जिन देशों में उष्णकटिबंधीय चक्रवात आज अपेक्षाकृत दुर्लभ हैं, आने वाले वर्षों में कंबोडिया, लाओस, मोज़ाम्बिक और कई प्रशांत द्वीप राष्ट्र, जैसे सोलोमन द्वीप और टोंगा सहित जोखिम में वृद्धि देखी जाएगी।
विश्व स्तर पर, एशिया में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के संपर्क में आने वाले लोगों की संख्या में सबसे बड़ी वृद्धि होगी, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और वियतनाम में अतिरिक्त लाखों लोग इसके सम्पर्क में आएंगे।
साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ इवान हाई ने कहा कि विशेष रूप से चिंता की बात यह है कि हमारे अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि कुछ क्षेत्र जहां वर्तमान में उष्णकटिबंधीय चक्रवात नहीं आते हैं, निकट भविष्य में जलवायु परिवर्तन के साथ इन चक्रवातों के वहां बढ़ने के आसार हैं।
डॉ हाई ने कहा हमने जो नया उष्णकटिबंधीय चक्रवात डेटासेट तैयार किया है, वह उष्णकटिबंधीय चक्रवात क्षेत्रों में बदलते बाढ़ के खतरे के मानचित्रण में बहुत मदद करेगा।
अध्ययन सरकारों और संगठनों को उष्णकटिबंधीय चक्रवातों से होने वाले खतरों का बेहतर आकलन करने में मदद कर सकता है। जिससे जोखिम कम करने की रणनीतियों को बनाने में सहायता मिल सकती है ताकि इसका असर और जान-माल का नुकसान को कम किया जा सके। यह अध्ययन साइंस एडवांस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।