क्या आप जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन पेड़ों की कई प्रजातियों को उनके भौगोलिक वितरण के ठंडे और नम क्षेत्रों की ओर धकेल रहा है। रिसर्च में सामने आया है कि जैसे-जैसे वैश्विक तापमान में इजाफा हो रहा है, उसके साथ-साथ पेड़ों की कई प्रजातियां ज्यादा अनुकूल क्षेत्रों की ओर रुख कर सकती हैं।
वृक्ष प्रजातियों का यह पलायन अपने आप में अनूठा है, जो स्पष्ट तौर पर पेड़-पौधों पर जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों को दर्शाता है। अल्काला और बर्मिंघम विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किए इस अध्ययन के नतीजे प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (पनास) में प्रकाशित हुए हैं। यह अध्ययन यूरोप और उत्तरी अमेरिका से जुड़े आंकड़ों पर आधारित है।
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने यूरोप और अमेरिका में पाए जाने वाली 73 प्रजातियों के 20 लाख से ज्यादा पेड़ों से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया है।
उन्होंने देखा कि क्या पेड़ों के घनत्व में परिवर्तन प्रत्येक प्रजाति की विशिष्ट विशेषताओं से जुड़ा हो सकता है, जैसे कि वे शुष्क परिस्थितियों को कितनी अच्छी तरह सहन करती हैं या उनके विस्तार की क्षमता कितनी है। हालांकि, अध्ययन में ऐसा कोई भी लक्षण नहीं मिला जो इन परिवर्तनों को स्पष्ट रूप से समझा सके।
रिसर्च से पता चला है कि उत्तरी गोलार्ध में पेड़ों की प्रजातियां ठंडे और नम क्षेत्रों में अधिक घनी हो रही हैं। गौरतलब है कि यह पहले पुख्ता सबूत है जो दर्शाते हैं कि जलवायु परिवर्तन महाद्वीपीय स्तर पर समशीतोष्ण वनों में करीब-करीब सभी प्रजातियों के पेड़ों की संख्या में बदलाव की वजह बन रहा है।
इस बारे में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता जूलेन एस्टिगरगा का कहना है कि, "स्पष्ट लक्षण की कमी यह दर्शाती है कि अधिकांश प्रजातियों में एक हद तक अनुकूलन क्षमता होती है।"
ऐसे में यह समझना महत्वपूर्ण है कि उत्तर के क्षेत्रों में अपने घनत्व में इजाफा करके पेड़ों की यह प्रजातियां जलवायु में आते बदलावों के प्रति कैसे प्रतिक्रिया कर रही हैं। उनके मुताबिक पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण, प्रबंधन और बहाली की योजना बनाने के लिए यह आवश्यक है।
वहीं अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर थॉमस पुघ के मुताबिक यूरोप में पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के लिए वर्तमान में पेड़ों की जिन प्रजातियों की मदद ली जा रही है, वो भविष्य में इन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त नहीं रह जाएंगी।
उनका आगे कहना है कि यदि इन बदलावों पर विचार नहीं किया जाता तो कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) को कैप्चर और स्टोर करने के लिए जो वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, वो उतने प्रभावी नहीं रह जाएंगें।
भारत में भी पेड़ों पर पड़ रहा है बदलती जलवायु का असर
भारत में भी पेड़ों पर किए कई अध्ययनों में इस बात के सबूत सामने आए हैं कि जलवायु में आता बदलाव पेड़ों पर गहरा प्रभाव डाल रहा है। दिसंबर 2022 में ऐसा ही कुछ देखा गया था जब दिसंबर के तीसरे सप्ताह से ही तेलंगाना और ओडिशा के आम के पेड़ों में बौरों का आना शुरू हो गया था, जो इसके सामान्य समय से कम से कम एक महीना पहले है।
विशेषज्ञों ने इसके लिए बेमौसम बारिश और सामान्य से ज्यादा गर्म होती सर्दियों को जिम्मेवार माना था। मार्च 2016 में जर्नल इकोलॉजी एनवायरनमेंट एंड कंजर्वेशन में प्रकाशित एक शोध से पता चला है कि जलवायु में आते बदलावों के चलते आम के पेड़ों में समय से पहले और बाद में बौरों का लगना उसकी एक विशेषता है।
वहीं एक अन्य रिसर्च से पता चला है कि हिन्दूकुश हिमालय क्षेत्र में बढ़ते तापमान के साथ देवदार के पेड़ों में 38 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई है। अध्ययन से पता चला है कि हिंदुकुश हिमालय वैश्विक औसत से कहीं ज्यादा तेजी से गर्म हो रहा है।
इस अध्ययन के मुताबिक मानसूनी क्षेत्र में उगने वाले हिमालय देवदार में बढ़ते तापमान के साथ गिरावट आ जाएगी और ऐसा भविष्य में गर्म होती सर्दियों और बसंत में बदलती जलवायु के कारण होगा।
ऐसी ही एक रिसर्च से पता चला है कि बढ़ते तापमान के साथ पहाड़ों पर मौजूद पेड़ अब पहले से अधिक ऊंचाई की ओर शिफ्ट हो रहे हैं, मतलब की पर्वतीय ट्री लाइन अब ऊंचाई की ओर शिफ्ट हो रही है।