जलवायु

हाथी की प्रजातियों को गायब करने के लिए जिम्मेवार है जलवायु परिवर्तन

Dayanidhi

नए शोध में दावा किया गया है कि हाथियों की विभिन्न प्रजातियों और उनके पूर्वजों पर अत्यधिक पर्यावरणीय बदलाव का असर पड़ा जिसकी वजह से ये गायब हो गए। जबकि अब तक यह माना जाता रहा है कि प्राचीन समय में लोगों द्वारा शिकार के चलते ये विशालकाय जानवर गायब हो गए थे।

अध्ययन में इस दावे को खारिज किया गया है कि प्राचीन समय में मानव शिकारियों ने हजारों साल पहले विलुप्त होने वाले विशाल हाथियों और मास्टोडों को मार डाला। निष्कर्ष इस बात की तस्दीक करते है कि पिछले हिमयुग के अंत में अंतिम विशालकाय मास्टोडॉन्ट के विलुप्त होने के बारे में एक सुराग मिलता है। जिससे पता चलता है कि लाखों वर्षों पहले जलवायु में आए बदलाव के चलते हाथियों तथा इन जैसे विशालकाय जानवरों में गिरावट आई थी।

हालांकि हाथी आज अफ्रीकी और एशियाई उष्णकटिबंधीय इलाकों में केवल तीन लुप्तप्राय प्रजातियों तक ही सीमित हैं। ये विशाल शाकाहारी जीव बड़े समूह में रहते हैं, जिन्हें सूंड वाले के रूप में जाना जाता है। इनमें अब पूरी तरह से विलुप्त हो चुके मास्टोडोंट, स्टीगोडॉन्ट और डीनोथेरेस भी शामिल हैं। केवल 7 लाख साल पहले, इंग्लैंड में तीन प्रकार के हाथी पाए जाते थे, जिनमें दो विशाल प्रजातियां और समान रूप से सीधे और नुकीले दांत वाले हाथी शामिल थे।  

अल्काला के ब्रिस्टल और हेलसिंकी विश्वविद्यालयों के जीवाश्म विज्ञानियों के एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने हाथियों और उनके पहले के (पूर्ववर्तियों) के विकास और नष्ट होने पर अब तक का सबसे विस्तृत विश्लेषण किया है। जिसमें इस बात की जांच की गई कि कैसे 185 विभिन्न प्रजातियों ने वहां रहने के लिए अपने आपको ढाल लिया था, जिनका विकास 6 करोड़ साल पहले उत्तरी अफ्रीका में शुरू हुआ था।     

इस समृद्ध विकासवादी इतिहास की जांच करने के लिए, टीम ने लंदन के प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय से लेकर मॉस्को के पेलियोन्टोलॉजिकल इंस्टीट्यूट तक, दुनिया भर में संग्रहालय के जीवाश्म संग्रह का सर्वेक्षण किया। शरीर के आकार, खोपड़ी के आकार और उनके दांतों की चबाने वाली सतह जैसे लक्षणों की जांच करके, टीम ने पाया कि सभी सूंड वाले जानवरों के आठ समूहों में से एक ढल नहीं पाया था।

ब्रिस्टल स्कूल ऑफ अर्थ साइंसेज विश्वविद्यालय के डॉ. झांग हानवेन ने कहा कि उल्लेखनीय रूप से 3 करोड़ साल पहले सूंड वाले जानवरों के विकास की पूरी पहली छमाही में आठ में से केवल दो समूह विकसित हुए थे।    

उस समय के अधिकांश सूंड वाले जानवर एक छोटे आकार से लेकर एक सूअर के आकार तक के थे जो शाकाहारी नहीं थे। कुछ प्रजातियां हिप्पो जितनी बड़ी हो गईं, फिर भी ये वंश विकासवादी थे, वे सभी हाथियों से बहुत कम मिलते जुलते थे।  

लगभग 2 करोड़ साल पहले सूंड के विकास का क्रम नाटकीय रूप से बदल गया, क्योंकि एफ्रो-अरेबियन प्लेट यूरेशियन महाद्वीप में टकरा गई थी। अरब ने यूरेशिया में नए आवासों का पता लगाने के लिए और फिर बेरिंग लैंड ब्रिज के माध्यम से उत्तरी अमेरिका में अलग-अलग तरह के मास्टोडॉन्ट-ग्रेड प्रजातियों को रहने के लिए आवास दिए।

प्रमुख अध्ययनकर्ता डॉ जुआन कैंटलापीड्रा ने कहा अफ्रीका से दूर सूंड वाले जानवरों के फैलने से पड़ने वाले प्रभाव को हमारे अध्ययन में पहली बार प्रमाणित किया गया था।  

प्राचीन उत्तरी अफ्रीकी जातियों में बहुत कम अंतर था, जिनका विकास धीमी गति से हो रहा था। फिर भी हमने पाया कि अफ्रीका से बाहर सूंड वाले जानवरों का विकास 25 गुना तेजी से हुआ। यहां देखा गया कि एक ही निवास स्थान में कई सूंड वाली अलग-अलग प्रजातियां थी। एक मामला 'फावड़ा-टस्कर्स' के विशाल, चपटे निचले दांतों का है।   

30 लाख वर्ष पहले तक अफ्रीका और पूर्वी एशिया के हाथी और स्टीगोडॉन्ट इस निरंतर विकासवादी बदलाव के अनुरूप अपने आपको ढालने में सफल रहे। हालांकि, आने वाले हिम युग से जुड़े पर्यावरणीय समस्याओं के चलते उन्हें कड़ी टक्कर मिली, जीवित प्रजातियों को नए, अधिक कठोर आवासों के अनुकूल होने के लिए मजबूर होना पड़ा। सबसे चरम उदाहरण ऊनी मैमथ का था, जिनके घने, झबरा बाल और मोटी खाल, बड़े-बड़े दांत थे।    

टीम ने विश्लेषणों के आधार पर अफ्रीका, यूरेशिया और अमेरिका के लिए क्रमश 24 लाख साल पहले शुरू होने वाली अंतिम सूंड वाले (प्रोबोसिडियन) जानवरों के विलुप्ति की पहचान की।

अध्ययन से स्पष्ट है कि प्राचीन मनुष्यों के विस्तार तथा उनके शिकार करने से विशालकाय शाकाहारी जानवरों का सफाया नहीं हुआ। अध्ययनकर्ता ने बताया कि हमें इस तरह के परिणाम की उम्मीद नहीं थी। ऐसा प्रतीत होता है कि हाल के भूवैज्ञानिकों ने इतिहास में सूंड वाले जानवरों के विलुप्त होने के पीछे प्राचीन लोगों को कसूरवार ठहराया गया है जबकि ऐसा नहीं है।

डॉ. झांग ने कहा कि हमारे आंकड़े प्रागैतिहासिक हाथियों का सफाया करने में पुरातन मनुष्यों की भूमिका के बारे में कुछ हालिया दावों का खंडन करता है। यह शोध नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित हुआ है।