जलवायु

इंसानों और जंगली जानवरों के बीच संघर्ष बढ़ा रहा है जलवायु परिवर्तन

भारत में जलवायु परिवर्तन के चलते नीली भेड़ों की पसंदीदा वनस्पति का उगना कम हुआ, भेड़ें अपना पेट भरने हेतु लोगों की फसलों को खाने के लिए कम ऊंचाई वाले हिस्सों में जाने लगीं

Dayanidhi

जलवायु में हो रहे बदलावों के चलते लोगों और वन्यजीवों के बीच संघर्ष बढ़ने की जानकारियां सामने आई हैं। मानव-वन्यजीव संघर्ष तब होते हैं जब लोग और वन्यजीव एक ही इलाके में चले जाते हैं या भोजन जैसे समान संसाधनों के लिए मुकाबला करते हैं।  

अध्ययनों से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन पारिस्थितिक तंत्र को तनावपूर्ण बना रहा है। जिसके चलते वहां रहने वाले जीवों के व्यवहार में बदलाव आ रहा है जो मानव-वन्यजीव संघर्षों को अंजाम दे रहा है। इस तरह के बदलाव लोगों और जानवरों के बीच संपर्कों और मुकाबला को और गहरा कर सकते हैं। अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन मानव गतिविधियों और वन्यजीव आबादी के बीच मुकाबलों को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है।

यह अध्ययन वाशिंगटन विश्वविद्यालय और पारिस्थितिकी तंत्र केंद्र में जीव विज्ञान के सहायक प्रोफेसर ब्रियाना अब्राहम की अगुवाई में किया गया है। प्रोफेसर अब्राहम ने बताया कि मानव-वन्यजीव परस्पर प्रभाव के अध्ययन में जलवायु परिवर्तन को शामिल करने से वैज्ञानिकों को इन संघर्षों को कम करने के तरीकों को खोजने में मदद मिलेगी। इस तरह वे नीति निर्माताओं, विशेषज्ञों और आम नागरिकों को मानव-वन्यजीव संघर्ष होने से पहले ही सचेत कर सकते हैं।    

अब्राहम ने कहा कि 2015 और 2016 में अमेरिका के पश्चिमी तट पर मछली पकड़ने के उपकरण में फंसी व्हेल की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही थी। उत्तरी अमेरिका के तट पर अभूतपूर्व समुद्री लू (हीटवेव) महसूस की गई थी जिसके दो प्रभाव थे। सबसे पहले, व्हेल उन जगहों का पीछा करने के लिए आगे बढ़ीं, जहां उनका शिकार लू के दौरान चला गया था। दूसरा, इसने डंगनेस क्रैब फिशिंग सीजन का समय बदल दिया। समुद्र में व्हेल अपने उपलब्ध स्थान का उपयोग कैसे करती है और मछली पकड़ने के समय में परिवर्तन होने की वजह से व्हेल के फसने का दौर शुरू हुआ था।  

उन्होंने आगे जोड़ते हुए कहा दूसरा उदाहरण बोत्सवाना सरकार की एक रिपोर्ट से सामने आया। रिपोर्ट के मुताबिक यहां पर मानव-वन्यजीव संघर्षों की सबसे अधिक वारदातें हुई। जो 2018 में अत्यधिक सूखे के दौरान मुख्य रूप से बड़े मांसाहारी जानवरों ने यहां के पालतू पशुओं का शिकार करना शुरू किया था।   

जलवायु परिवर्तन से किस तरह बढ़ रहे हैं मानव-वन्यजीव संघर्ष

अब्राहम ने बताया कि मानव-वन्यजीव संघर्षों का व्यापक अध्ययन किया गया है। शोध से पता चलता है कि जैव विविधता, मानव स्वास्थ्य, अर्थशास्त्र, जीवन की गुणवत्ता और भी बहुत सारी चीजें एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। लेकिन इन संघर्षों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर विचार करने के लिए, वैज्ञानिकों द्वारा किए गए ठोस प्रयास से हमें यह अनुमान लगाने में मदद मिल सकती है कि ये संघर्ष कब होंगे और शायद हम उनसे बच भी सकते हैं।

मानव-वन्यजीव संघर्ष जलवायु परिवर्तन संबंधी मामले दर्जनों से भी अधिक हैं। लेकिन ये घटनाएं अलग-अलग हैं, उनकी एक दूसरे से तुलना करना कठिन है। अन्य पर्यावरणीय परिस्थितियां मानव-वन्यजीव संपर्क के बीच अधिक सीधा संबंध बनाते हैं, जैसे व्हेल का जालों में फंसना।

अब्राहम ने कहा की कुछ ही अध्ययनों ने जलवायु और मानव-वन्यजीव संघर्ष के बीच संबंध को पहचाना है। जिसमें हाल ही में प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ की रिपोर्ट भी शामिल है। लेकिन व्यापक वैज्ञानिक समुदाय द्वारा यह प्रत्यक्ष मान्यता नहीं मिली है कि जलवायु परिवर्तन अधिक तीव्र और बार-बार मानव-वन्यजीव संघर्षों को बढ़ावा देने वाला है।

शोधकर्ता का मानना है कि अधिकतर अध्ययनों ने जलवायु की भूमिका पर विचार नहीं किया है। यह इतनी जटिल प्रक्रिया है इसे समझना काफी कठिन है। बहुत सारे ऐसे कारण होते हैं जो संघर्षों को पैदा करते हैं। उन्हें समझने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र को समझना आवश्यक है। साथ ही सामाजिक या आर्थिक कारण भी है जो लोगों को जगहों या संसाधनों का उपयोग करने के लिए प्रेरित करते हैं जिससे जानवरों के साथ मुकाबला होने के अधिक आसार होते हैं।   

वन्यजीवों के संपर्क में आने पर लोगों में कितनी सहनशीलता है और वे उन मुठभेड़ों और संपत्ति के नुकसान या वन्यजीवों से होने वाले आर्थिक नुकसान के प्रति कैसे प्रतिक्रिया करते हैं। इस संदर्भ में वन्यजीवों के प्रति मानवीय संबंध या दृष्टिकोण एक बड़ी भूमिका निभाते हैं।  

अब्राहम ने बताया कि बहुत सारे मामले ऐसे हैं जहां चरम मौसम की घटना के दौरान या उसके तुरंत बाद संघर्ष में वृद्धि देखी गई है। जैसे कि समुद्री लू (हीटवेव) जिसने पश्चिमी तट में व्हेल से उलझने की घटनाओं में वृद्धि को बढ़ावा दिया, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्षों में वृद्धि हुई। दूसरी और बोत्सवाना के भीषण सूखे ने मानव-वन्यजीव संघर्षों को हद तक बढ़ाया।  

जलवायु परिवर्तन के कारण संघर्षों में वृद्धि देखी जा सकती है। न्यू मैक्सिको में दो दशक के एक अध्ययन में बताया गया है कि काले भालू के मनुष्यों और पशुओं के संपर्क में आने की आवृत्ति अल नीनो, ला नीना चक्र के साथ घटती-बढ़ती रहती है।

मूल रूप से, ला नीना भालुओं के लिए सूखे की स्थिति पैदा करता है। इस दौरान वे भोजन के लिए दूर-दूर तक भटकते हैं और फिर पालतू पशुओं के संपर्क में आने से ये उनका शिकार करते है, संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं और कचरे में खाना ढूंढने के लिए खुदाई करते हैं।  

लंबे समय तक चलने वाला जलवायु परिवर्तन भी संघर्ष पैदा करता है। भारत में लंबी अवधि के जलवायु परिवर्तन के चलते नीली भेड़ों या भड़ल के लिए पसंदीदा वनस्पति की मात्रा को कम कर दिया है, जो फिर अपना पेट भरने के लिए लोगों की फसलों को खाने के लिए कम ऊंचाई वाले हिस्सों में चले जाते हैं। यह अपने आप में एक संघर्ष है, लेकिन भराल की आवाजाही ने हिम तेंदुओं को भी नीचे की और आकर्षित किया है, जो संघर्ष को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हैं।

मानव-वन्यजीव संघर्षों के कुछ कारण जिनके बारे में बहुत कम जानकारी है। बहुत सारे अध्ययनों में मानव-वन्यजीव संघर्षों को देखा है। पश्चिमी और मध्य अफ्रीका के कुछ हिस्सों में, अध्ययनों ने बबून आबादी के उदय को जोड़ा है, जिनके कारण बाल श्रम को बढ़ावा मिला। बबून बहुत आक्रामक होते हैं जो फसलों को नष्ट कर सकते हैं और फसलों की रक्षा के लिए बच्चों को स्कूलों से बाहर निकाल दिया गया।

इन संघर्षों की वजह से बीमारियां भी बढ़ सकती हैं। अमेरिका में, प्यूमा को हटाने से हिरणों की आबादी बेहिसाब बढ़ गई, जिसके कारण लाइम रोग में वृद्धि हुई। आप नई-नई बीमारियों को भी सामने आते हुए देख सकते हैं, क्योंकि जब इंसान और वन्य जीव निकट संपर्क में आते हैं तो जानवरों से इंसानों में बीमारियों के फैलने का मौका मिलता है।

अब्राहम ने कहा मानव-वन्यजीव संघर्षों का अध्ययन करके उन्हें कम करने में मदद मिल सकती है। ऐसे बहुत सारे अच्छे उदाहरण हैं जहां संघर्षों को कम किया गया है। हाथी कभी-कभी फसलों को खाने के लिए कृषि क्षेत्रों में जा सकते हैं। शोधकर्ताओं ने पाया है कि मधुमक्खी के छत्ते की "बाड़" लगाने से वास्तव में इन्हें रोका जा सकता है। यह अध्ययन साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

मानव-वन्यजीव संघर्षों को कम करने के प्रयास

जलवायु परिवर्तन के कारण मानव-वन्यजीव संघर्षों को कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं। उदाहरण जो वास्तव में काम कर रही है, वह है वेस्ट कोस्ट से व्हेल के उलझने को लेकर है। समुद्र संबंधी स्थितियों, पशु व्यवहार और मानव व्यवहार के बीच एक स्पष्ट संबंध है। कैलिफोर्निया डिपार्टमेंट ऑफ फिश एंड वाइल्डलाइफ, जो डंगनेस क्रैब फिशरी को नियंत्रित करता है।

डंगनेस क्रैब फिशिंग सीजन की शुरुआत और समाप्ति की तिथियां तय करते समय वास्तविक समय की समुद्र संबंधी स्थितियों को ध्यान में रखना शुरू किया है। यह जाल में व्हेल के उलझने की संभावना को कम करने की कोशिश करने का एक ठोस प्रयास है। अब्राहम ने कहा यह एक नीति है जो जलवायु परिवर्तनशीलता को ध्यान में रखती है।

शोध और इनसे निपटने के प्रयासों को और विकसित करने की जरूरत है। यदि आप जानते हैं कि अल नीनो वर्ष में एक निश्चित संघर्ष बढ़ेगा, उदाहरण के लिए, आपके पास एक संघर्ष को कम करने की नीति हो सकती है और अल नीनो का पूर्वानुमान लगा कर इसे लागू किया जा सकता है।