जलवायु

जलवायु परिवर्तन से बढ़ रहा है अंतरिक्ष में कचरे का प्रदूषण: शोध

पृथ्वी की निचली कक्षा में 10 सेमी से अधिक व्यास वाले 30,000 से अधिक ट्रैक करने योग्य मलबे के टुकड़े और 1 सेमी से अधिक 10 लाख मलबे के टुकड़े हैं

Dayanidhi

इस बात के कई प्रमाण हैं कि ऊपरी वायुमंडल की जलवायु बदल रही है। जबकि निचले स्तरों पर तापमान बढ़ रहा रहा है जिसका असर मध्य और ऊपरी वातावरण पर दिखाई दे रहा है।

ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण के नए शोध के अनुसार, पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ 2) के बढ़ते स्तर के चलते बहुत अधिक ऊंचाई पर वायु घनत्व में लंबे समय में गिरावट आएगी। इस तरह कम होते घनत्व से 90 से 500 किमी की ऊंचाई के बीच ऊपरी वायुमंडल में परिक्रमा करने वाली वस्तुओं पर खिंचाव कम होगा, जिससे अंतरिक्ष में मलबे का जीवनकाल बढ़ जाएगा और मलबे और उपग्रहों के बीच टकराने का खतरा बढ़ जाएगा।

ऊपरी वायुमंडल में घनत्व कम होने की वजह से उपग्रहों के अंतरिक्ष में मलबे से टकराने की अधिक आशंका है।

जैसे-जैसे लोग नेविगेशन प्रणालीमोबाइल संचार और पृथ्वी की निगरानी के लिए उपग्रहों पर अधिक निर्भर होते जा रहे हैं, अगर अरबों डॉलर की लागत वाले उपग्रह क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, तो इनके टकराने की बड़ी समस्या पैदा हो सकती है।

जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित अध्ययन, अगले 50 वर्षों के लिए ऊपरी वातावरण में जलवायु परिवर्तन का पहला वास्तविक आकलन प्रस्तुत करता है। हालांकि कई अध्ययनों ने निचले और मध्य वातावरण में होने वाले बदलावों की जांच की है, लेकिन बहुत अधिक ऊंचाई वाले परिदृश्यों में शोध बहुत सीमित है।

मार्च 2021 तक पृथ्वी की निचली कक्षा में 2,000 किमी की ऊंचाई पर लगभग 5,000 सक्रिय और निष्क्रिय उपग्रह थे। यह संख्या पिछले दो वर्षों में 50 फीसदी  बढ़ गई थी। विभिन्न कंपनियां अगले दशक में हजारों और जोड़ने की योजना बना रही हैं। एक बार इनका काम खत्म होने के बाद, उपग्रह कक्षा में जाते रहते हैं लेकिन वायुमंडलीय खिंचाव के कारण धीरे-धीरे धीमी गति से चलते हैं, जब तक कि वे निचले वातावरण में जलते नहीं हैं, तब तक उनकी कक्षीय ऊंचाई कम हो जाती है।

इंटर-एजेंसी अंतरिक्ष मलबे की समन्वय समिति द्वारा निर्धारित वर्तमान दिशानिर्देश के मुताबिक उपग्रह ऑपरेटर यह सुनिश्चित करते हैं कि 25 वर्षों के भीतर निष्क्रिय उपग्रहों को हटा दिया जाए, लेकिन कम वायुमंडलीय घनत्व के योजना और गणना में गलतियां हो रही हैं।

निचले वायुमंडल के विपरीत, मध्य और ऊपरी वातावरण ठंडा रहा है। यह उन ऊंचाई पर सेवा मुक्त उपग्रहों और अंतरिक्ष मिशन से संबंधित मलबे जैसी वस्तुओं पर खींचने के लिए व्यावहारिक प्रभाव के साथ घनत्व में गिरावट की ओर जाता है। कम खिचाव के साथ इन वस्तुओं का जीवनकाल बढ़ जाता है, वस्तुएं अधिक समय तक कक्षा में रहती हैं और सक्रिय उपग्रहों के साथ-साथ अन्य अंतरिक्ष मलबे के साथ टकराने का अधिक खतरा होता है।

ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण में एनईआरसी के एक स्वतंत्र शोधकर्ता इंग्रिड कॉनसेन ने 2070 तक ऊपरी वातावरण में बदलावों का अनुकरण करने के लिए 500 किमी ऊंचाई तक पूरे वातावरण के वैश्विक मॉडल का उपयोग किया। उन्होंने अपने अनुमानों की तुलना पिछले 50 वर्षों के आंकड़ों से की और पाया कि भविष्य के मध्यम उत्सर्जन परिदृश्य के तहत भी अनुमानित औसत ठंडे और ऊपरी वायुमंडल घनत्व में गिरावट अतीत की तुलना में लगभग दोगुनी गति से जारी है।

कॉनसेन का कहना है कि "पिछले 50 वर्षों में ऊपरी वातावरण में जलवायु के बीच हमने जो परिवर्तन देखे और अगले 50 के लिए हमारे पूर्वानुमान सीओ 2 उत्सर्जन का परिणाम हैं। यह समझना और पूर्वानुमान लगाना अति महत्वपूर्ण है कि जलवायु परिवर्तन इन क्षेत्रों को कैसे प्रभावित करेगा, विशेष रूप से उपग्रह उद्योग और नीति निर्माताओं के लिए जो उस उद्योग के लिए मानक स्थापित करने में शामिल हैं।

टकराने के खतरों के कारण उपग्रह ऑपरेटरों के लिए अंतरिक्ष में तेजी से बढ़ता मलबा एक बड़ी समस्या बन रही है, जो ऊपरी वायुमंडल के घनत्व में लंबे समय तक चलने वाली गिरावट पर असर डाल रही है। उन्होंने कहा यह काम अंतरिक्ष प्रदूषण की समस्या को नियंत्रित करने के लिए उचित कार्रवाई का मार्गदर्शन करने में मदद करेगा। साथ ही यह सुनिश्चित करेगा कि ऊपरी वातावरण भविष्य में उपयोग करने योग्य संसाधन बना रहे।

यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के अनुसार, पृथ्वी की निचली कक्षा में 10 सेमी से अधिक व्यास वाले 30,000 से अधिक ट्रैक करने योग्य मलबे के टुकड़े और 1 सेमी से अधिक 10 लाख मलबे के टुकड़े हैं।

आयनोस्फीयर - ऊपरी वायुमंडल का आवेशित भाग भी सीओ 2 की मात्रा बढ़ने के कारण, बल्कि पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन के कारण भी इसके बदलने का अनुमान है। आयनोस्फीयर में इलेक्ट्रॉनों के वितरण को समझना उन त्रुटियों को ठीक करने के लिए महत्वपूर्ण है जो वे जलवायु निगरानी के लिए उपयोग किए जाने वाले उपग्रह-आधारित समुद्र स्तर माप की गणना करते हैं।

इलेक्ट्रॉन गणना में सबसे बड़ा परिवर्तन दक्षिण अमेरिका, दक्षिणी अटलांटिक महासागर और पश्चिमी अफ्रीका में हो सकता है। अध्ययन में सलाह दी गई है कि आगे के अध्ययन इन परिवर्तनों की निगरानी करें और उपग्रह-आधारित आंकड़ों के प्रयोगों पर प्रभावों को नियंत्रित करने के लिए काम करें।