जलवायु

जलवायु में बदलाव से बढ़ रहा है टिड्डियों का प्रकोप, खाद्य सुरक्षा पर मंडरा सकता है खतरा

अध्ययन के मुताबिक बढ़ते तापमान से टिड्डियों की पाचन क्षमता बहुत बढ़ जाती है, एक बड़ा झुंड एक दिन में 90 मील की यात्रा कर सकता है तथा 35,000 लोगों के बराबर भोजन चट कर जाता है।

Dayanidhi

एक नए अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से टिड्डियों के झुंडों के बढ़ने में नाटकीय रूप से वृद्धि होगी, जिसके परिणामस्वरूप और भी अधिक फसलें इनकी चपेट में आ जाएंगी और खाद्य सुरक्षा को खतरा होगा। यह अध्ययन एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी (एएसयू) की एक शोध टीम द्वारा किया गया है।

अध्ययन में दुनिया की अलग-अलग टिड्डियों के साथ दक्षिण अमेरिकी टिड्डियों के शरीर विज्ञान पर एकत्र किए गए आंकड़ों के परिणामों की रूपरेखा तैयार की गई है। यह प्रजातियों के वितरण मॉडल जो तापमान के अलावा शरीर विज्ञान पर विचार करते हैं। टिड्डियों का व्यवहार फिर से बदल सकता है, जिसे हम जलवायु परिवर्तन के रूप में देख सकते हैं।

प्रमुख अध्ययनकर्ता जैकब यंगब्लड ने कहा कि हमारे अध्ययन का एक अनोखा पहलू यह है कि हमने इलाके की जांच, प्रयोगशाला प्रयोगों और कम्प्यूटेशनल मॉडलिंग सहित कई अलग-अलग शोध दृष्टिकोणों को एक साथ जोड़ा है। यंगब्लड एएसयू में जीव विज्ञान के शोधकर्ता हैं।

उन्होंने कहा इन दृष्टिकोणों को आपस में जोड़ने के लिए, हमने शोधकर्ताओं की एक टीम को इकट्ठा किया, जिसमें फिजियोलॉजिस्ट, इकोलॉजिस्ट, एंटोमोलॉजिस्ट और कृषक शामिल थे। इस तरह की टीम के साथ सहयोग करने से हमें टिड्डी के जीव विज्ञान के कई पहलुओं पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन करने में मदद मिली।

टिड्डियों का प्रकोप : पुराने समय से चली आ रही विपत्तियां

3200 ईसा पूर्व में प्राचीन मिस्र के फिरौन के दिनों से, टिड्डियां बड़े पैमाने पर झुंडों में निकल रही हैं जो फसलों और पौधों को लगभग पूरी तरह तबाह कर देते हैं

इस तरह के विनाशकारी झुंड अचानक क्यों आते हैं?

लोगों की तरह, टिड्डियां शर्मीली या मिलनसार भी हो सकती हैं। अधिकांश इलाकों में टिड्डियों की कम घनत्व वाली आबादी कई मौसम बिता सकती है, जिसे एकान्त चरण कहा जाता है।  

हालांकि, जब परिस्थितियां ठीक होती हैं, तो टिड्डियों की संख्या बढ़ जाती है, जिससे एक खतरनाक चरण शुरू हो जाता है, जो प्रति वर्ग किलोमीटर 8 करोड़ टिड्डियों के प्रवासी झुंड बनाने में सक्षम होते हैं।

प्रत्येक टिड्डी हर दिन 2 ग्राम तक वनस्पति को चट कर जाती है, बड़े आकार का एक झुंड एक दिन में 90 मील की यात्रा कर सकता है, जो 35,000 लोगों के बराबर भोजन को साफ कर जाता है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि उन्हें दुनिया का सबसे विनाशकारी कीट माना जाता है।

झुंडों के पीछे के कारणों को जानने में मदद करने के लिए, टीम ने दक्षिण अमेरिकी टिड्डे (शिस्टोसेर्का कैंसेलटा) के शरीर विज्ञान का अध्ययन किया।

यंगब्लड ने कहा हजारों टिड्डियों को एक साथ देखकर मुझे वास्तव में एहसास हुआ कि स्थानीय किसानों और भूमि प्रबंधकों के लिए टिड्डियां कितनी बड़ी समस्या हो सकती हैं।

टिड्डियों पर अधिकांश शोध उन कॉलोनियों पर किए गए हैं जिन्हें प्रयोगशाला में वर्षों से पाला गया है, इसलिए हमारा शोध उनके प्राकृतिक वातावरण में फैलने वाले टिड्डियों का अध्ययन करने का एक दुर्लभ अवसर था।

भविष्य में टिड्डियां किस तरह व्यवहार करेंगी?

यह अनुमान लगाने की कोशिश करने के लिए कि झुंड कहां प्रवास करेंगे वहां फसलों को कितना खतरा होगा? इसके लिए वैज्ञानिक प्रजातियों के वितरण मॉडल-कंप्यूटर एल्गोरिदम का उपयोग करते हैं, जो पर्यावरणीय आंकड़ों का उपयोग करके एक भौगोलिक क्षेत्र में प्रजातियों के वितरण का पूर्वानुमान लगाते हैं।

सबसे आम मॉडलिंग तकनीक सहसंबंधी मॉडल रही है। हालांकि, दुनिया भर में बदलती जलवायु के चलते, अनजान बदलने वाली चीजों को देखते हुए, इस पद्धति ने अपना असर खो दिया है।

शोध टीम ने अपने मॉडल को सूचित करने के लिए टिड्डी के शरीर क्रिया विज्ञान के बारे में आंकड़े एकत्र करते हुए एक मॉडलिंग दृष्टिकोण बनाया। इस मामले में, शोधकर्ताओं ने मापा कि टिड्डियां विभिन्न वातावरणों में भोजन को कितनी जल्दी पचाती हैं।

प्रोफेसर जॉन हैरिसन कहते हैं कि जलवायु में हो रहे बदलाव के प्रति जीव कैसे प्रतिक्रिया देंगे और जलवायु परिवर्तन के बावजूद मनुष्यों को जीवित रहने और समृद्ध होने में मदद करने के लिए, हमारे साथी जैविक जीवों के जटिल आंतरिक कामकाज के गहन अध्ययन की आवश्यकता होगी। 

टिड्डियों के झुंड की ताकत

पारंपरिक रूप से जुड़े मॉडल के लिए उपयोग किए जाने वाले पर्यावरणीय आंकड़े का एक प्रमुख हिस्सा तापमान है, जिसका टिड्डियों के खाने की आदतों पर बड़ा असर पड़ता है।

हालांकि, यह पर्यावरणीय आंकड़े केवल टिड्डियों की आबादी पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का पूरी तरह पूर्वानुमान नहीं लगा सकते हैं। सबसे पहले, मौजूदा टिड्डियां विभिन्न तापमानों में फसलों को चट कर सकती हैं। शाकाहारी के रूप में जो आसानी से उपलब्ध भोजन के लिए लंबी दूरी की यात्रा कर सकते हैं, टिड्डियां अपने पेट को जरुरत से अधिक तेजी से भर सकती हैं।

जबकि टिड्डियां तापमान की अलग-अलग सीमा में खा सकती हैं, पाचन के लिए अधिकतम तापमान बहुत अहम होता है।

यंगब्लड और उसके सहयोगियों ने इस तत्व को एक भारी टिड्डी आबादी के लिए एक निर्णायक मानदंड के रूप में रखा, जिसके परिणामस्वरूप प्रकोप अलग-अलग हो सकते हैं।

टीम ने मापा कि कैसे गर्म परिस्थितियों ने इलाके में धावा बोलने वाले टिड्डियों के खाने और पचाने की दरों को प्रभावित किया और इस आंकड़े का उपयोग वर्तमान और भविष्य के जलवायु परिदृश्यों में ऊर्जा मॉडल के लिए किया। इसके बाद, उन्होंने इस नए आंकड़े को एक नई प्रजाति वितरण मॉडल में उपयोग कर पूर्वानुमान लगाने वाला बदलाव स्थापित किया, जिसने कई परिदृश्यों में टिड्डियों के प्रकोप के फैलने की भविष्यवाणी की।

उनके पूर्वानुमानों से पता चलता है कि टिड्डे वर्तमान जलवायु की तुलना में भविष्य के मौसम में कहीं अधिक ताकतवर और वातावरण के अनुरूप ढलने में सक्षम होंगे।

नमी वाले मौसम में इनकी बढ़ती ताकत आबादी में वृद्धि को बढ़ावा देगी, जिससे झुंड और अधिक हो जाएंगे। भविष्य, गर्म जलवायु आबादी को तेजी से बढ़ने और विकसित करने में मदद करेगा, यह प्रति सीजन तीन पीढ़ियों के साथ अधिक वर्षों तक चलता रहेगा जिससे प्रकोप बढ़ने के आसार हैं।

दक्षिण अमेरिकी टिड्डियों की प्रवासी आबादी पर जलवायु परिवर्तन के कारण इनके भूमध्य रेखा से दूर अपनी सीमा को बढ़ाने की आशंका है। टिड्डी के शरीर क्रिया विज्ञान पर विचार करने वाले मॉडल वास्तव में विशिष्ट आपस में जुड़े मॉडल की तुलना में विस्तार की एक छोटी श्रृंखला का पूर्वानुमान लगाते हैं। लेकिन शरीर विज्ञान-आधारित मॉडल आबादी में वृद्धि दर की भविष्यवाणी करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप फसल को और भी अधिक नुकसान होने के आसार हैं।

पिछले मॉडल ने जलवायु परिवर्तन के तहत कीटों से फसल के नुकसान में 10 से 25 प्रतिशत की वृद्धि होने का पूर्वानुमान लगाया था, लेकिन वैज्ञानिकों को यह नहीं पता था कि क्या ये अनुमान दक्षिण अमेरिकी टिड्डे के लिए प्रासंगिक होंगी।

यंगलूड द्वारा बनाया गया नया मॉडल दक्षिण अमेरिकी टिड्डियों से फसल के नुकसान में 17 प्रतिशत की वृद्धि का पूर्वानुमान लगाते हैं, जो पहले के मॉडल से मेल खाता है।

यंगब्लड ने कहा कि एक साथ, इस जानकारी से किसानों और सरकारों को अगले प्रकोप के लिए आगे की योजना बनाने में मदद मिलेगी। यद्यपि इसमें और अधिक शोध की आवश्यकता है, यह शारीरिक मॉडलिंग दृष्टिकोण दुनिया भर में अन्य टिड्डियों की प्रजातियों के लिए भी प्रकोप का पूर्वानुमान लगाने में मदद कर सकता है।

टिड्डियों से पार पाने के लिए वैश्विक सहयोग

जीएलआई के निदेशक, एरियन सीज ने कहा कि टिड्डियां जटिल सामाजिक, पारिस्थितिकी और तकनीकी प्रणालियों का हिस्सा हैं, जिसके लिए दुनिया भर में लोगों को विषयों, क्षेत्रों और सीमाओं में एक साथ काम करने की आवश्यकता है। यह अध्ययन इकोलॉजिकल मोनोग्राफ में प्रकाशित हुआ है।