जलवायु

जलवायु परिवर्तन से महिलाओं पर बढ़ रहा है सामाजिक और आर्थिक दबाव

जलवायु परिवर्तन से काम-धंधे के लिए पुरुषों को पलायन करना पड़ रहा है, जिससे महिलाओं को घर, बच्चों और खेतों की जिम्मेदारियां अकेले निभानी पड़ रही है

Lalit Maurya

एशिया और अफ्रीका में जलवायु परिवर्तन के चलते पुरुषों को अपने खेतों को छोड़कर काम-धंधे की तलाश में शहरों की ओर पलायन करना पड़ रहा है। जिससे घर पर रहने वाली महिलाओं पर काम का दबाव बढ़ रहा है। चूंकि पुरुषों के पलायन के बाद महिलाएं घर पर अकेली रह जाती हैं और उन्हें अकेले ही अपने बच्चों और खेतों का ध्यान रखना होता है| यही वजह है कि वो विषम परिस्थितियों में अपना जीवन जीने को मजबूर हैं। इससे उनके स्वास्थ्य पर भी असर पड़ रहा है। यह अध्ययन ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया (यूईए) द्वारा किया गया है, जोकि अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित हुआ है। 

इसके लिए शोधकर्ताओं ने भारत, नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ताजिकिस्तान, केन्या, घाना, नामीबिया, माली, इथियोपिया, सेनेगल में 25 स्थानों पर अलग-अलग मामलों का अध्ययन किया है। जिसके आधार पर वो इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि कैसे और किन तरीकों से महिलाओं की निर्णय लेने और सही विकल को चुनने की क्षमता, उन्हें जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करती है। रिपोर्ट के प्रमुख लेखक और यूईए में प्रोफेसर नित्या राव ने बताया कि, "हालांकि पुरुषों के पलायन को जलवायु परिवर्तन से निपटने की रणनीति के रूप में देखा गया है, लेकिन अगर महिलाओं के दृष्टिकोण से देखें तो इससे पुरुषों द्वारा घर की देखरेख करने और उसे चलाने में कोई मदद नहीं मिल रही।"

उन्होंने आगे बताया कि "हम जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए तकनीकी समाधान तलाश रहे हैं, चाहे वो बेहतर किस्म के बीज हो या बेहतर नस्ल के मवेशी, पर सामाजिक स्तर पर लोग कैसे इससे सामंजस्य बैठा सकते हैं इस ओर नहीं सोच रहे।“

चाहे भारत हो या पाकिस्तान, महिलाओं की है एक ही कहानी

चूंकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था और जनजीवन पूरी तरह प्राकृतिक संसाधनों पर ही निर्भर होता है। ऐसे में जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण में आ रही गिरावट का सीधा असर आम जन की जीविका पर पड़ता है। पुरुष तो इससे निपटने के लिए पलायन कर जाते हैं। पर इसका बोझ महिलाओं को ढोना पड़ता है। उदाहरण के लिए भारत में कर्नाटक के कोलार जिले को देख लीजिये जहां पानी की कमी के कारण कृषि उत्पादन कम हो गया । जिससे परेशान किसानों ने पलायन को ही बेहतर समझा।

दक्षिण भारत में रहने वाली एक 41 वर्षीय महिला ने बताया कि "खेतों पर काम करने के लिए श्रमिक बहुत मुश्किल से मिल पाते हैं, खासकर उस दौरान जब फसलों का मौसम होता है। और जो मिलते भी हैं वो बहुत अधिक पैसों की मांग करते हैं। इसलिए मैंने खेत पर अधिक काम करना शुरू कर दिया है, क्योंकि अब मेरे पास कोई विकल्प नहीं है। मेरे पति राजमिस्त्री का काम करते हैं, जो की काम-धंधे के लिए पड़ोस के शहर में गए हैं। ऐसे में अगर मैं अपने खेतों में काम नहीं करती हूं, तो मेरी फसलें मर जाएंगी ।"

ऐसा ही एक उदाहरण पाकिस्तान में देखने को मिला, जहां एक महिला ने बताया कि बाढ़ के चलते उसके क्षेत्र में कपास की अधिकतर फसल नष्ट हो गई है। जिससे उसकी मजदूरी पहले से 60 फीसदी घट गयी है। "काम के लिए पुरुष तो आसानी से पलायन कर सकते हैं, पर हमें पीछे रह कर घर-परिवार की देखभाल करनी पड़ती है।" केन्या में 22 वर्षीय महिला ने बताया कि उसके दो नवजात बच्चे हैं, जब उसका पति अपने पशुओं को चराने के लिए कई दिनों के लिए बाहर चला जाता है तो उसे अकेले ही अपनी दुकान, बच्चों और घर की देखभाल करनी पड़ती है।

शोधकर्ताओं के अनुसार पर्यावरण पर पड़ रहा प्रभाव उस समय भी महिलाओं पर अपना नकारात्मक प्रभाव डालता है, जब उन्हें पारिवारिक ओर सामाजिक सहयोग मिल रहा हो और उनके लिए देश में पर्याप्त कानूनी अधिकार उपलब्ध हों। शोध दिखता है कि पर्यावरण में आने वाले परिवर्तन से महिलाओं की जिम्मेदारियों को और बढ़ा देता है। विशेष रूप से जब वो युवा और कम शिक्षित हो तब यह बोझ और बढ़ जाता है। हालांकि पुरुषों के पलायन से पारिवारिक आय में वृद्धि होती है पर वो अनिश्चित और अनियमित होती है। जिसके चलते महिलाओं को अपना घर चलाने के लिए कम पारिश्रमिक और विषम परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। जिसका सीधा असर उनके स्वास्थ्य और पोषण पर पड़ता है।

प्रोफेसर राव के अनुसार "हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि कुछ सामान्य स्थितियां जैसे कि पुरुषों के पलायन और महिलाओं पर कम का बोझ, संस्थागत विफलता और गरीबी सभी मिलकर महिलाओं की पसंद और उनके निर्णय लेने की क्षमता को बाधित कर देती हैं। हालांकि, इन बाधाओं को अगर रचनात्मक तरीकों से हल कर लिया जाये, तो संभवतः जलवायु परिवर्तन से बेहतर तरीके से निपटा जा सकता है।" उनके अनुसार "परिवार की देखभाल और घरेलू काम के चलते महिलाओं का वर्कलोड बहुत अधिक बढ़ गया है, जिसका महिलाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।" "हमें इससे निपटने का तरीका ढूंढ़ने की जरूरत है।"