जलवायु

घास के मैदानों में रहने वाले पक्षियों के चहकने को शांत कर रहा है जलवायु परिवर्तन

वर्चुअल मॉडल का अनुमान है कि पक्षियों का चहकना सूखे के कारण शुष्क हवा ने उनके आपसी संचार पर रोक लगा दी है

Dayanidhi

घास के मैदानों में रहने वाले पक्षी गाते हैं, लेकिन कोई उसे सुन नहीं सकता। जीव विज्ञानी जानना चाहते हैं कि आखिर वे शांत क्यों हो गए?

एक नए अध्ययन में पाया गया है कि इसके लिए जलवायु परिवर्तन से तेज हुई सूखे की परिस्थितियां जिम्मेदार हो सकती हैं। क्योंकि पक्षियों का चहकना शुष्क हवा में उतनी दूर तक नहीं पहुंच पता है। अपने इलाकों की रक्षा करने या एक साथी खोजने की कोशिश करने वाले पक्षियों के लिए इसके हानिकारक परिणाम हो सकते हैं।

जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, दक्षिण-पश्चिमी राज्यों में घास के मैदानों में सूखे के लगातार और गंभीर होने के आसार होते हैं। ओक्लाहोमा विश्वविद्यालय (ओयू) के शोधकर्ताओं की एक टीम ने जानना चाहा कि ये शुष्क स्थितियां पक्षियों के संवाद करने के तरीके को कैसे प्रभावित कर सकती हैं।

यह पता लगाने के लिए, शोधकर्ताओं ने एक कंप्यूटर के अंदर एक घास के बड़े मैदान के वातावरण का सिमुलेशन या अनुकरण किया और इसे वर्चुअल पक्षियों से भर दिया। प्रत्येक पक्षी को एक निर्धारित क्षेत्र दिया गया था, जिसके भीतर उसे आराम करने, चलने या गाने की आजदी थी।

उनके सिमुलेशन में नकली पक्षी का चहकना वास्तविक दुनिया के ध्वनिक नियमों पर आधारित थे, जिसका अर्थ है कि यह आवाज शुष्क हवा की तुलना में नम हवा में आगे बढ़ती है। पानी की कमी से बचने के लिए पक्षी भी गर्म, शुष्क परिस्थितियों में कम चहकते हैं। अंत में, शोधकर्ताओं ने गणना की कि इनमें से कितने वर्चुअल पक्षी विभिन्न जलवायु परिदृश्यों के तहत अपने छह निकटतम पड़ोसियों के साथ सफलतापूर्वक संवाद कर सकते हैं।

एल्गोरिदम बड़े घास के मैदानों में, सूखे की स्थिति ने पक्षियों के लिए अपने पड़ोसियों के साथ संवाद करना कठिन बना दिया, शोधकर्ताओं ने इस बात की जानकारी इकोलॉजी एंड एवोलुशन में दी। विशेष रूप से, अपेक्षाकृत बड़े प्रदेशों वाले पक्षी जो मध्यम से उच्च माध्य आवृत्तियों पर गाते हैं, जैसे कि उत्तरी अमेरिका में पाए जाने वाले टिड्डे की गौरैया के सुनने की संभावना कम थी।

शोधकर्ताओं का सुझाव है कि ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि उच्च-आवृत्ति वाली ध्वनियां आसानी से चट्टानों, घरों और अन्य वस्तुओं के आसपास नहीं मुड़ सकती हैं।

उनमें कम-आवृत्ति वाली ध्वनियों की तुलना में अधिक तेजी से गायब होने की प्रवृत्ति होती हैं, इसलिए शुष्क हवा आवाज को और कम कर देती है इसलिए ध्वनि तरंगें दूर तक नहीं जा पाती हैं।

अध्ययनकर्ता और ओयू में एक संरक्षण जीव विज्ञानी जेरेमी रॉस कहते हैं, मॉडलिंग से पता चलता है कि सूखा यहां रहने वाली पक्षियों पर दुधारी तलवार की तरह है। न केवल वे कम चहचहा सकते हैं और इनको अपने गीतों को सुनने में परेशानी हो सकती है, बल्कि उन्हें पानी की तलाश में अधिक समय देना पड़ सकता है, इस तरह साथी खोजने के लिए उनके पास बहुत कम समय होता है।

रॉस ने गौर किया कि छाया वाले आश्रयों या पानी वाली जगहों को बढ़ाने से पक्षियों को सूखे के दौरान अपने दिनचर्या को पूरा करने में मदद मिल सकती है, लेकिन इससे उनके गीतों को संबधित पक्षियों तक पहुंचने में मदद नहीं मिलेगी।

प्रमुख अध्ययनकर्ता रॉस ने कहा कि तेजी से शुष्क होती दुनिया में, घास के मैदानों में रहने वाली पक्षी शायद वैसी नहीं लगे जैसे वे होते थे। जीव विज्ञानी मीलिन पंडित कहते हैं, कुछ प्रजातियां कम आवृत्तियों पर गायन करके या ऊर्जा बचाने के लिए कम बार गाकर अपने आपको ढाल सकती हैं।   

अब तक, इन प्रभावों को केवल वर्चुअल या आभासी पक्षियों में ही खोजा गया है। अय्यूब कहते हैं, अब सवाल यह है कि क्या सूखे के कारण होने वाली समस्याएं वास्तव में जंगल में रहने वाली पक्षियों की प्रजातियों में होती हैं और क्या यह उनके लिए मायने रखती है।

पंडित अब ओक्लाहोमा, टेक्सास और न्यू मैक्सिको में एकत्रित किए गए पक्षियों के गीतों की रिकॉर्डिंग का विश्लेषण करके उस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास कर रहे हैं। जलवायु के पूर्वानुमानों के साथ इन ध्वनिक आंकड़ों की तुलना करके, शोध दल को यह जानने की उम्मीद है कि भविष्य में सूखे की स्थिति में घास के मैदानों में रहने वाली पक्षियों के चहकने को कैसे खतरे में डाल सकती है।