जलवायु

भूमि का सही उपयोग व आहार में बदलाव से थम सकता है जलवायु परिवर्तन

Dayanidhi

एक नए अध्ययन के मुताबिक, बीफ के 100 ग्राम हिस्से के बदले मटर से बने प्रोटीन को अपनाने से 16 किमी गाड़ी चलाने से बचने के समान जलवायु संबंधी फायदा मिलता है। इसके विपरीत, एक लीटर गाय के दूध की जगह सोया दूध लेने से जलवायु को सीधे फायदा नहीं होगा।

फिर भी, प्रभावी भूमि उपयोग नीति, आहार में सरल बदलाव करने से जलवायु संबंधी फायदे हो सकते हैं। जिससे मांस और गाय के दूध के बजाय पौधे से आधारित प्रोटीन अपनाने से जलवायु संबंधी फायदे क्रमशः 48 किमी और छह किमी गाड़ी चलने के बराबर बढ़ सकते हैं।

बांगोर विश्वविद्यालय के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा किए गए इस नए अध्ययन में इस बात का पता लगाया गया है कि, कैसे आहार में सामान्य बदलाव करने से पर्यावरण में सकारात्मक योगदान दिया जा सकता है।

हालांकि, आपस में जुड़े कृषि-खाद्य प्रणालियों और भूमि उपयोगों के जटिल प्रभावों के कारण, कुछ बदलावों के लिए वे फायदे दूसरों की तुलना में बहुत अधिक हैं। उदाहरण के लिए, सोया दूध को अपनाने का मतलब बीफ उद्योग के लिए उपलब्ध बछड़ों में कमी हो सकती है, जबकि मांस और डेयरी की कम मांग का मतलब अन्य उपयोगों के लिए अधिक भूमि का उपलब्ध होना है, जैसे कि उस भूमि पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए पेड़ उगाना आदि।

जर्नल ऑफ क्लीनर प्रोडक्शन में प्रकाशित अध्ययन, जर्मन कृषि प्रणालियों पर आधारित है, लेकिन परिणाम यूरोपीय और अन्य देशों में व्यापक रूप से लागू होते हैं। निष्कर्ष जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में उपभोक्ताओं और नीति निर्माताओं की स्पष्ट भूमिका की ओर इशारा करते हैं।

कुल मिलाकर, अध्ययन इस बात की पुष्टि करता है कि पशुधन प्रोटीन से हटकर पौधे से आधारित प्रोटीन की ओर बढ़ना हमारी जलवायु के लिए फायदेमंद है। इससे यह भी पता चलता है कि दूध के बजाय बीफ के लिए ये फायदे कहीं अधिक हैं।

प्रमुख अध्ययनकर्ता और बांगोर विश्वविद्यालय शोधकर्ता मार्सेला पोर्टो बताती हैं कि, हमने मांस के बदले मटर को अपनाने के संभावित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन परिणामों की गणना करने के लिए फार्म मॉडलिंग, परिदृश्य विश्लेषण और परिणामी जीवन चक्र मूल्यांकन के एक गठजोड़ को लागू किया।

प्रोटीन और सोया दूध के लिए गाय का दूध। इस प्रक्रिया ने जर्मनी के भीतर कृषि योग्य और पशुधन प्रणालियों के साथ-साथ वस्तुओं के लिए वैश्विक बाजारों में बदलते प्रभावों के एक जटिल परिदृश्य को दिखाया।

फलियां जैसे मटर और सोयाबीन, सीधे हवा से नाइट्रोजन स्थिर करती हैं, जिससे रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता कम हो जाती है और ये आहार प्रोटीन और फाइबर के अहम स्रोत हैं। पशुधन प्रणालियों की तुलना में, उन्हें सुपाच्य प्रोटीन की एक इकाई का उत्पादन करने के लिए आवश्यक भूमि के केवल कुछ ही भाग की आवश्यकता होती है। खाद्य प्रणालियों में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए इन "कम उपयोग वाली फसलों" का उपभोग बढ़ाना अहम है।

हाल के दशकों में, पूरे यूरोप में फलियों की लोकप्रियता में गिरावट आई है क्योंकि खाद्य प्रणालियों ने लोगों और पशुओं के लिए कैलोरी पैदा करने वाली कम मात्रा में अधिक कीमत वाली फसलों पर ध्यान केंद्रित किया है। लेकिन सकारात्मक रूप में फलियों के फिर से उत्पादन में रुचि बढ़ रही है।

बांगोर विश्वविद्यालय में अध्ययन समन्वयक डेविड स्टाइल्स कहते हैं कि, पेरिस समझौते के जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए खाद्य प्रणालियों और भूमि उपयोगों में आवश्यक बदलाव लाना जरूरी है।

अध्ययन उस बड़ी भूमिका पर प्रकाश डालता है जो भूमि उपयोग, नीति नैतिक उपभोग विकल्पों से जलवायु संबंधी फायदा उठाने में निभा सकती है। विश्व स्तर पर खाद्य उत्पादन के लिए उपयोग की जाने वाली अधिकांश भूमि के लिए पशुधन उत्पादन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार है।

प्रभावी नीतियां जो जलवायु परिवर्तन के लिए प्रकृति-आधारित समाधानों को बढ़ावा देती हैं, जैसे पशुओं को पालने में उपयोग होने वाली, बची हुई भूमि पर वनीकरण, में बदलाव के जलवायु संबंधी फायदों को तीन गुना तक बढ़ा सकती हैं।